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भोला पासवान शास्त्री की जयंती पर बोले सुमो, केवल आरक्षण से दलितों का उत्थान नहीं

पटना: सोमवार को राजधानी के विद्यापति भवन में वर्तमान विधान परिषद सदस्य एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ संजय पासवान की संस्था कबीर के लोग द्वारा ‘दलित नेतृत्व’ विषय पर चर्चा हुई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बताया कि भाजपा सरकार ने दलितों के उत्थान के लिए उल्लेखनीय कार्य की है।

सुमो ने कहा कि भाजपा का मानना है कि केवल आरक्षण देने से दलितों का उत्थान नहीं हो सकता। इसके लिए उन्हें स्तरीय शिक्षा देने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसीलिए बिहार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा में पास करने वाले दलित छात्रों के लिए 1 लाख और बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास करने वाले दलित छात्रों के लिए 50 हजार रूपये देने का प्रावधान की है। ताकि वे ठीक ढंग से मुख्य परीक्षा की तैयारी कर सकें।

इसके आलावा मोदी ने कहा कि राजग ने पंचायती राज में दलितों को आरक्षण दिया। 23 वर्षों बाद 2003 में बिहार में हुए पंचायत चुनाव में संविधान में प्रावधान के बावजूद ST/ST समाज को बिना आरक्षण दिये चुनाव करा लिया गया। 2005 में हमारी सरकार आने के बाद हमलोगों ने 17% का आरक्षण दिया, जिसके परिणामस्वरुप बिहार में लगभग ढ़ाई हजार जनप्रतिनिधि SC/ST समाज के बने हैं।

सुशील मोदी ने संजय पासवान की सराहना करते हुए कहा कि पिछले 29 वर्षों से वे भोला पासवान शास्त्री की जयंती मना रहे हैं। आज की राजनीति में भोला पासवान शास्त्री ने जिस राजनीतिक विचार को जिया, वह हमारे लिए अनुकरणीय है। तीन बार वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे लेकिन, उनका चरित्र और व्यवहार उज्जवल रहा। मोदी ने कहा कि राजग की सरकार ने दलितों के मंत्रालय का नाम अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण मंत्रालय किया। पहले इस विभाग के पास 40 करोड़ का बजट था अब इस विभाग का बजट 1700 करोड़ है।

वहीं राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास करने वाले कामेश्वर चौपाल ने कहा कि राजनीतिक दल, दलितों के बीच वैमनस्य फैलाकर अपना लक्ष्य साधना चाहते हैं, ऐसे में दलित नेताओं को अपने व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए और हमारे बीच प्रेम का संबंध हो। उन्होंने मूल से जुड़े रहने और दलित महापुरुषों के ऊपर साहित्य लिखने के लिए युवाओं से आह्वान किया और बाबा साहब को इस शताब्दी का मनु बताया।

बेबी कुमारी ने भारत को कर्म प्रधान देश बताया तथा शिक्षित बनने और संघर्ष करने को जीवन मूल्य बताया। बबन रावत ने साहित्य या लेखन में दलित महापुरुषों को स्थान न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण बताया। गजेंद्र मांझी ने कहा कि जातीय धुर्वीकरण छोड़ कर वर्गीकरण करने की आवश्यकता है। सूरजभान कटारिया ने सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के लिए अपने किए गए कामों को बताया।