न मीसा की सुनते हैं न तेजप्रताप को भाव देते हैं, तेजस्वी तो औरंगजेब हो गए- जायसवाल
तेजस्वी का खुद अपने परिवार से घमासान चल रहा है, यह जानी हुई बात है। वे न तो मीसा की सुनते हैं न तेजप्रताप को भाव देते हैं, वे तो बिल्कुल औरंगजेब की तरह कर रहे हैं। तेजप्रताप और मीसा का उनसे छ्त्तीस का आंकड़ा चल रहा है।
पटना: चुनाव की सरगर्मी बढ़ते ही बिहार में पोस्टर को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। चुनाव को लेकर सभी दलों के तरफ से अलग-अलग पोस्टर जारी किए जा रहे हैं। आमतौर पर पोस्टर व बैनर पर वैसे लोगों की तस्वीर होती है, जो पार्टी के चर्चित और जनाधार वाले नेता होते हैं।
लेकिन, इस चुनाव में राजद ने बड़ा एक्सपेरिमेंट करते हुए राजधानी के अलग-अलग जगहों पर राजद द्वारा चस्पाये गए पोस्टर से तेजस्वी को छोड़कर सारे नेता गायब हैं। राजद द्वारा जारी पोस्टरों पर साफ देखा जा सकता है कि राजद के संस्थापक लालू यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी समेत राजद के किसी भी नेताओं को पोस्टर पर जगह नहीं दी गई है।
इसको लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवल ने तेजस्वी पर निशाना साधते हुए कहा कि तेजस्वी यादव को देखकर औरंगजेब की याद आती है। स्वर्गीय रघुवंश बाबू के साथ उन्होंने जो किया, सो तो सबको याद ही होगा, लेकिन अपने पिता के साथ, आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद जी के साथ वह क्या करना चाहते हैं, यह थोड़ा शोध का विषय है। आप कहीं भी देख लीजिए, तेजस्वी के अलावा किसी का चेहरा आरजेडी के पोस्टर पर नहीं लगता, लालू प्रसाद पूरी तरह से गायब हैं। आखिर, तेजस्वी का एजेंडा क्या है, वे उस चेहरे से क्यों भाग रहे हैं, जो उनके पिता भी होते हैं।
जायसवाल ने कहा कि क्या तेजस्वी अपनी विरासत पर शर्मिंदा हैं, अगर उन्हें लगता है कि उनके पिता और माता के शासनकाल में जो कांग्रेस के साथ मिलकर कुशासन और अराजकता का निर्माण किया गया, वह शर्मिंदगी की वजह है तो उन्हें पूरे राज्य की जनता से माफी मांगनी चाहिए, न कि छद्म आवरण में राजनीति करनी चाहिए।
तेजस्वी का खुद अपने परिवार से घमासान चल रहा है, यह जानी हुई बात है। वे न तो मीसा की सुनते हैं न तेजप्रताप को भाव देते हैं, वे तो बिल्कुल औरंगजेब की तरह कर रहे हैं। तेजप्रताप और मीसा का उनसे छ्त्तीस का आंकड़ा चल रहा है। तेजस्वी अपनी पार्टी के एकछत्र नेता बन गए हैं, जिनको लोकतंत्र से चिढ़ है। वह उस औरंगजेब की तरह हो गए हैं, जिसको न तो किसी पर भरोसा है, न वह किसी की बात सुनता है, न ही वह अपने सामने किसी को बढ़ने देना चाहता है।
तेजस्वी की राजनीति से ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ता के लिए अब वह लालू जी से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। राजद के अन्य सूत्रधारों से उनकी प्रतिद्वंदिता तो पहले ही जगजाहिर थी लेकिन अब लालू जी के साथ उनका यह व्यवहार उनके अति आत्मविश्वास और आसमान छूते अहंकार का परिचायक है जो बड़े बड़ों को ले डूबता है।