पर्यावरणीय स्वीकृति पाने की बाध्यता समाप्त होने से चिमनी व्यवसाय को मिलेंगे लाभ

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पटना: बिहार ईट निर्माता संघ ने पर्यावरणीय स्वीकृति पाने की बाध्यता को समाप्त करने के सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए संघ के अध्यक्ष मुरारी कुमार मनु महासचिव प्रभात चंद्र गुप्ता ने कहा कि पर्यावरणीय स्वीकृति समाप्त होने से चिमनी व्यवसाय को कई लाभ मिलेंगे। उन्होंने कहा कि सर्व प्रथम लाभ यह कि प्रदूषण विभाग से सहमति पत्र प्राप्त करना आसान हो गया है।

पहले बिना पर्यावरणीय स्वीकृति के आप प्रदूषण विभाग से ईट भट्ठा संचालन के लिए सहमति पत्र का आवेदन तक दे ही नहीं सकते थे। दूसरा, बिना पर्यावरणीय स्वीकृति पहले न माइनिंग टैक्स जमा कर पाते और न परमिट ले सकते थे। अब इससे मुक्ति मिली है। तीसरा लाभ, जिस जमीन का आपने पर्यावरणीय स्वीकृति लिया था,वही से मिट्टी काट सकते थे। जिसका नाजायज फायदा खान विभाग और पुलिस उठाती थी।

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उन्होंने कहा कि मिट्टी लेने के लिए चिमनी मालिक को क्या-क्या करना पडता है, किसी से छुपा नही है। इस नियम का फायदा उठाकर लोकल नेता से लेकर जमीन मालिक भी परेशान करता था। चौथा लाभ, यह है कि पर्यावरणीय स्वीकृति नही रहने के कारण चाह कर भी प्रदूषण विभाग से सहमति पत्र नही मिलता था, जिससे लाखों रूपए दण्ड जमा करना पडता था।

पांचवा लाभ, पांच साल का प्रदूषण सहमति पत्र का शुल्क जमा करने के बाद पर्यावरणीय स्वीकृति कुछ समय तक ही मिलता था। जो अब नहीं होगा। विश्लेषण यह है कि पर्यावरणीय स्वीकृति पाने की लंबी प्रक्रिया और नौकरशाही के चक्कर से सभी निर्माता और चिमनी मालिक परेशान थे। वह एक ऐसा जहर था, जो धीरे धीरे ईंट व्यवसाय को खत्म कर रहा था। केंद्र सरकार के नए फैसले से बिहार के ईंट उद्योग को काफी राहत मिलेगी।

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