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कन्हैया का विरोध करने वाले राजद को क्यों चाहिए सीपीआई का साथ?

कोरोना संकट के बावजूद तय समय पर विधानसभा चुनाव होने के बाद प्रदेश में राजनीतिक सुगबुगाहट तेज हो गई है। इस बीच महागठबंधन को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। दरअसल, 2019 के आम चुनाव में सीपीआई और राजद आमने-सामने थी. लेकिन, इस चुनाव में राजनीतिक समीकरण देखते हुए राजद ने मांझी की भरपाई करने के लिए सीपीआई और सीपीएम को साथ ले आई है।

इसको लेकर सुशील मोदी ने कहा कि राजद के रवैये से अपमानित अनुभव करने के बाद सीनियर दलित नेता जीतनराम मांझी के महागठबंधन से बाहर आने से विपक्ष को जो नुकसान होगा, उसकी भरपायी वामपंथी दलों से हाथ मिलाने से नहीं होगी।

राजद ने क्यों बनाया सीपीआई को दोस्त

महागठबंधन में शामिल होने के बाद यह तय है कि छात्रसंघ चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में जय लालू लाल सलाम का नारा काफी गूंजने वाला है। विदित हो कि 2019 के आम चुनाव में सीपीआई द्वारा लाख मन्नतें के बाद भी तेजस्वी यादव बेगूसराय लोकसभा सीट से कन्हैया के खिलाफ डॉ तनवीर हसन को मैदान में उतार दी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि बेगूसराय सीट से भाजपा के चर्चित हिंदुत्ववादी नेता गिरिराज सिंह बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी।

राजद द्वारा कन्हैया का समर्थन नहीं किये जाने के पीछे यह बातें सामनें आई थी कि लालू यादव नहीं चाहते थे कि बिहार में तेजस्वी या तेजप्रताप के समकक्ष कोई नेता खड़ा हो, इसी कारणवश राजद ने कन्हैया को समर्थन नहीं करने का सोची।

लेकिन, इस चुनाव में CAA व NRC के मुद्दे पर काफी मुखर रहने वाले कन्हैया के प्रति सीमांचल के मुसलमानों का झुकाव स्वाभाविक है। यही कारण है कि मुस्लिमों के वोट का शत प्रतिशत महागठबंधन के पाले में गिरे इसलिए राजद ने मजबूरन सीपीआई के साथ गठबंधन की है। वैसे चुनावी सभा के दौरान यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि जिस कन्हैया व सीपीआई को तेजस्वी यादव एक विधानसभा व एक जिले की पार्टी बताते नहीं थकते थे, उसी कन्हैया के साथ मिलकर तेजस्वी यादव इस चुनाव में जय लालू लाल सलाम करते नजर आ सकते हैं!