कोरोनाकाल के बदले माहौल में शिक्षण का ढंग भी बदल रहा है। कोरोनाकल में तेजी से बढ़ रहे ऑनलाइन शिक्षा के आलोक में एक बार फिर शिक्षक और विद्यार्थियों के संबंधों में नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता है। संतुलित ढंग से विश्लेषण करने पर हम पाएंगे कि सबकुछ वैसा नहीं है, जैसा दूर से देखने में लग रहा है।
कोरोना संकट में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल तो खुली ही अब शिक्षा व्यवस्था की पोल भी खुल रही है। जिनके हाथ में धन है वे अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने की व्यवस्था करा रहे हैं। लेकिन, एक बात जो समझ में आती है। वह यह है कि ऑनलाइन पढ़ाकर बच्चों को बौद्धिक रूप से मजबूत नहीं बनाया जा सकता है। अभी विद्यालय के छात्र-अध्यापक ऑनलाइन पढाई के पीछे भाग रहे हैं।
लेकिन जो खबर मिल रही है कि बच्चे भी ऑनलाइन कक्षाओं से ऊब-से गए हैं। उन्हें अब स्क्रीन के सामने बैठने में परेशानी हो रही है। बहुत से माता-पिता ने अपने बच्चों में सिरदर्द होने की बात बतायी। कभी-कभी अध्यापक अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के कारण मजबूरी में पाठ पूरे करने में लग जाते हैं। लेकिन, हम यदि ऑनलाइन शिक्षण-व्यवस्था को विकल्प के तौर पर देखने लगें तो यह हमारी भूल साबित होगी। बच्चे जल्दी उकता जाते हैं तथा व्याकुल भी जल्दी हो जाते हैं। उन्हें भावनात्मक लगाव चाहिए जो उनके अध्यापक ही दे सकते हैं। बच्चों में चिड़चिड़ापन ज्यादा होने की शिकायत आ रही है। इससे उनका स्वास्थ्य-तंत्र गड़बड़ा सकता है। पहले से ही कोरोना से हमलोग परेशान हैं। इस ऑनलाइन शिक्षा के कारण और कोई नयी समस्या न आ जाए।
हम मानते हैं कि यह कमजोरी थोड़ी नयी है तथा समय के साथ परिस्थितियों में ढल जाएगी। पर इनका निदान व ईमानदार विश्लेषण आवश्यक है। इस परिस्थिति ने पहले से चली आ रही विसंगतियों व समस्याओं में कुछ नई चीजें जोड़ दी हैं। कुछ परेशानियों के नए कोण भी चमक उठे है। अंग्रेजी माध्यम का मंत्र जपती सरकारें जल्द ही उन लाखों ग्रामीण बच्चों से रूबरू होंगी, जो अपने माता-पिता के साथ किसी सुदूर राज्य से लौटे हैं और अभी तक उस राज्य की भाषा में शिक्षा पाते रहे है, जहां वे रह रहे थे।
इंटरनेट की पहुंच स्वयं इतनी विषमता ग्रस्त है कि ऑनलाइन कक्षाएं सबके लिए सुलभ नहीं बनाई जा सकती हैं। डिजिटलीकरण करनेवाली कम्पनियां और इसके जानकार अवश्य बताएँगे कि वे ऑनलाइन शिक्षा के रास्ते में होनेवाली कमियों को दूर कर देंगे। लेकिन यह उतना आसान नहीं है।
शिक्षा प्राप्त करने का सही स्थान तो विद्यालय ही है। विद्यालय का कोई विकल्प नहीं है। कोरोनावायरस के कारण अब विद्यालय में किस प्रकार का परिवर्तन किया जाए। इसके ऊपर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहले की तरह गुरुकुल व्यवस्था चलाने पर जोर दिया जा सकता है। कारण यह है कि विद्यालय में बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में शामिल होने का मौका मिलता है।
शिक्षा के इतर इन गतिविधियों से बच्चे का सर्वांगीण विकास होता है। बच्चा मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से मजबूती प्राप्त करता है। वह किसी भी परिस्थितियों में अपने को ढाल सकता है। इतिहास गवाह है कि भारतीय शिक्षा पद्धति ने ऐसे-ऐसे विद्वानों को जन्म दिया जिन्होंने नियति के हर झंझावातों को हँसते-हँसते झेला। श्रीराम यहीं पर हुए, जिन्होंने सुख-दुःख में एक कैसे रहा जाता है। इसकी शिक्षा दुनिया को बताई।