बाढ़ राहत के लिए वरदान बने चिरांद में निर्मित छोटे नाव, फिशिंग व जलबिहार में भी उपयोगी
बाढ़ की विभिषिका से जूझ रहे बिहार के लोगों की जान-माल की रक्षा के लिए छोटी नावों के निर्माण में बिहार आत्मनिर्भर होने के रास्ते पर है। गंगा, सरयू और सोन के संगम पर स्थित सारण जिले के चिरांद गांव में छोटी से लेकर बड़ी नवों के निर्माण का कारखाना शुरू हो गया है। कम लागत पर सुरक्षा की दृष्टि से उतम नावों का निर्माण करने वाले इस कारखानें को भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय से मान्यता प्राप्त है। नाव निर्माण की परंपरागत तकनीक को आधुनिक शोधों से जोड़कर यहां नावों का निर्माण बिहार के युवा कारीगर कर रहे हैं। मात्र 60 हजार में 18 फीट लंबी और 4 फीट चैड़ी ऐसी नावें तैयार की जा रही है जिसका बहृद्देशीय उपयोग संभव है। बाढ़ राहत के लिए ये छोटी नावे वरदान साबित हो रही हैं।ं
ऐसा अद्भुत प्रयोग चिरांद गांव के रहने वाले पत्रकार श्रीराम तिवारी ने अपने गांव के कारीगरों व मल्लाहों को प्रशिक्षित करा कर किया है। इस कारखाने के शुरू होने की पृष्ठभूमि के बारे में श्रीराम तिवारी ने बताया कि बदले जमाने में लकड़ी की कमी के कारण नाव निर्माण अत्यंत महंगा हो गया है। मेरा गांव गंगा के तट पर है। यहां निवास करने वालों का रोजगार गंगा माता के सहारे चलती है जिसमें नावों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। मैने लकड़ी के नावों का विकल्प ढूंढना शुरू किया। इसके लिए मैने कोलकाता, मुम्बई, गोवा जैसे स्थानों पर जाकर नाव निर्माण से सम्बंधित तकनीक को जानने का प्रयास किया।
इसके बाद मैने अपने गांव के कुछ कारीगरों को वहां ले जाकर उन्हें नाव निर्माण का प्रशिक्षण दिलाया। मेरे गांव के ही प्रशिक्षक कारीगर ने सुरक्षा मानक पर उतम बड़े नावों का निर्माण कर दिया। लकड़ी के नावों से सस्ता और टिकाउ स्टील के नाव का निर्माण हमने अपने गांव में करने के बाद जब हमने पानी में उतारा तो खुशी कर ठिकाना नहीं था। धीरे-धीेरे मेरे इस प्रयोग के बारे में बिहार के नाविकों को पता चलने लगा और लोगों की मांग बढ़ने लगी। करीब एक वर्ष के परिश्रम के बाद मुझे स्टील के नाव की मांग बढ़ने लगी। तीन वर्ष पूर्व हमारे सारण जिले मेें भयंकर बाढ़ आ गयी। उस समय मैं भी राहत कार्य में लगा हुआ था।
बाढ़ के पानी के बीच घारों में राहत पहुंचाते समय मुझे लगा कि यदि छोटे नाव होते तो हम उन तक आसानी से राहत पहुंचा सकते थे तथा लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल सकते थे। उसके बाद हम इस काम में लग गए। इससे जुड़े तकनीकी व सुरक्षा सम्बंधी बातों को लेकर लघु शोध के बाद हमने छोटे नाव के निर्माण का काम शुरू कर दिया। इस काम में हमें सफलता मिली है। उतर बिहार में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है। बाढ़ के समय लोगों को राहत पहुंचाने के लिए जितनी मात्रा में छोटी नावों की आवश्यकता होती है वह नहीं मिलती।
हमारा प्रयास है कि हम इस समस्या का समाधान कर सके। श्रीतिवारी कहते हैं कि मेरे कारखाने में निर्मित छोटे नावों में मोटर भी लगाया जा रहा है। मोटरयुक्त छोटे नाव की कीमत 1 लाख दस हजार पड़ रहा है जो बहुत कम है। मेरे कारखाने में बने इन नावों का उपयोग छोटे बड़े तालाबों, झालों या नदियों में मछली मारने व जलबिहार के लिए किया जा सकता है।