पटना : कोरोना काल में आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चल रहा सस्पेंस खत्म हो गया है। चुनाव आयोग ने एक बार फिर कहा है कि बिहार में तय समय पर ही विधानसभा चुनाव होंगे। इसके बाद बिहार के सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से इसकी तैयारी में लग गए हैं। इस बीच बिहार कांग्रेस के बड़े नेता सदानंद सिंह ने कहा कि इस बार पार्टी बिहार में 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
बिहार महागठबंधन में गांठ सुलझने की बजाए और उलझते जा रहा है। को-ऑडिनेशन कमेटी की मांग को लेकर गठबंधन के भीतर जंग छिड़ी हुई है। महागठबंधन में राजद छोड़ तमाम सहयोगी को-ऑडिनेशन कमेटी बनाने की मांग कर रहे हैं।
मालूम हो कि कुछ दिन पहले ही बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल पटना पहुंचकर पार्टी के सभी नेताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी तैयारी में जुट गई है और कांग्रेस अभी तक संभावित जिलों में अपने उम्मीदवार भी नहीं चुन सकी है। जिसके बाद गोहिल ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को कहा कि आप लोग उन विधानसभा सीटों का चयन करें जहां पर 2015 में जेडीयू चुनाव लड़ी थी।
कांग्रेस की दलील नीतीश कुमार जब महागठबंधन में थे 102 सीटों पर लड़े थे चुनाव
इसके बाद यह भी देखें कि जिस पर राजद की मजबूत दावेदारी नहीं हो उसकी सूची तैयार करें। इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में राजद के कैंडिडेट जिन सीटों पर तीसरे नंबर पर थे उन्हें तत्काल चिन्हित करें ताकि उस पर काम शुरू किया जा सके। कांग्रेस पार्ट इसबार 80 सीटों की मांग कर रही है। उसकी दलील है कि नीतीश कुमार जब महागठबंधन में थे 102 सीटों पर लड़े थे।
वहीं तेजस्वी यादव ऐसा करने के मूड में नहीं हैं क्योंकि उन्हें बखूबी पता है कि ज्यादा सीटें सहयोगी दलों को देने से सरकार बनाने में उनकी मुश्किल बढ़ जायेगी। सहयोगी दल कांग्रेस से लेकर सभी छोटे दल भी उनके नेतृत्व को लेकर सवाल खड़ा कर चुके हैं। ऐसे में जब सरकार बनाने की बारी आयेगी तो वो फिर से नखड़ा शुरू कर देगें।
सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी के अनुसार तेजस्वी यादव 170 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। वो पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि सीटों के बटवारे को लेकर वो किसी भी दल के नेता से बात नहीं करेगें। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के साथ ही सबको बात करनी पड़ेगी।
इस तरह के सीट बंटवारे को लेकर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं होने के कारण बिहार महागठबंधन में गांठ सुलझने की बजाए और उलझते जा रहा है। महागठबंधन की कुछ पार्टियां बहुत जल्द महागठबंधन से निकलकर किसी अन्य पार्टी की दामन थामने की कोशिश कर रही हैं।