बिहार में हथकरघा क्षेत्र के पुनरुद्धार पर वेब संगोष्ठी का आयोजन

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पटना : राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर बिहार यंग थिंकर्स फोरम द्वारा आज एक वेब-संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी का विषय “बिहार में हथकरघा क्षेत्र के पुनरुद्धार” रखा गया । इसमें देश एवं विदेश के प्रख्यात विशेषज्ञों के हिस्सा लिया।

इस वेब-संगोष्ठी की पहली वक्ता प्रो (डॉ) एन.विजया लक्ष्मी, IAS (बिहार सरकार के प्रधान सचिव) थी । डॉ. लक्ष्मी ने प्रतिभागियों को हथकरघा उद्योग की मूलभूत बातें बताईं। उन्होंने बताया कि कैसे बिहार में असंगठित क्षेत्र होने की वजह से आज हथकरघा उद्योग का जो योगदान होना चाहिए वह कहीं नज़र नहीं आता है। उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए कि आज कैसे कांजीवरम साड़ी व कई अन्य उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल पाई है। उन्होंने बिहार की बात करते हुए बताया कि बिहार में हम भागलपुरी सिल्क या मधुबनी पेंटिंग की हीं सिर्फ बात करते हैं, पर हमें जरूरत है कई अन्य जैसे बावन बूटी और गया गमछा साड़ी की भी बात करें।

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डॉ. लक्ष्मी ने SWOT एनालिसिस करते हुए कई पहलुओं पर अपना विचार रखा। उन्होंने कहा कि आज हमें जरूरत है सभी के सहयोग की, अकेले सरकार या कोई अन्य कुछ नहीं कर सकता। सरकार को चाहिए कि वो हथकरघा उद्योग के लिए एक विभाग या निगम जैसी कोई पहल करे। सरकार को जरूरत है वो छोटे ऑपरेशन और पुरानी हो चुकी तकनीकों में इन्वेस्टमेंट करे। आज चीन और बांग्लादेश इस क्षेत्र में हमसे कहीं अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।

इसके साथ ही डॉ. लक्ष्मी ने बात की कैसे बिहार के अधिकारियों के ढुलमुल रवैये की वजह से बिहार, केंद्र से पूर्ण मदद नहीं ले पा रहा है। वहीं उन्होंने कहा कि हम उपभोक्ता को चाहिए कि इसका इस्तेमाल करें, इस बात पे उन्होंने एक उदाहरण देते हुए अपनी बात समझाई, पहले शादी-ब्याह में शादी का जोड़ा पहले स्थानीय होता था जो अब बड़े मिलों से आने लगा है। सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने कहा कि आज हथकरघा उद्योग एक बहुत बड़ा मंच है जहाँ हम महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे सकते हैं।

कार्यक्रम के दूसरे अतिथि,  हिंडोल सेन गुप्ता ने हैंडलूम क्षेत्र में काम करने के अपने वर्षों के अनुभव का जिक्र करते हुए अपना संबोधन प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि उनके अनुभव में स्थापित लक्जरी ब्रांडों की गुणवत्ता तुलना भारतीय वस्त्र और हथकरघा उत्पादों से हो ही नहीं सकती । उन्होंने चिंता व्यक्त की कि भौगोलिक संकेत (जीआई) टैगिंग पर्याप्त नहीं है और प्रत्येक राज्य अथवा क्षेत्र अपने आप में अद्वितीय है।

गुप्ता ने यह भी कहा कि अतुल्य भारत अभियान की तर्ज पर एक “अतुल्य भारत जीआई ’अभियान भी शुरू करना चाहिए जिससे हमारी भारतीय वस्त्र और हथकरघा कहानी को बेहतर ढंग से बाजार में प्रस्तुत किया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि मिथिला के काम के जादू को एक बड़े वैश्विक पटल पर ले जाने के लिए एक बड़ा घरेलू उपभोक्ता वर्ग होना चाहिए, और इसके लिए हमें अपने वस्त्र और हथकरघा को महत्व देना होगा।

उन्होनें कहा कि हमने अपने उत्पादों को वैश्विक बाजार के अनुकूल नहीं ढला है तथा इस सन्दर्भ में काफी काम करने की आवशकता है ताकि हमारे वस्त्र और हथकरघा उत्पादों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सके। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इन्वेस्ट इंडिया के कार्यक्रम के तहत बिहार के वस्त्र और हथकरघा उत्पादों की एक रिपोर्ट बनाई जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसका प्रचार किया जा सके। ऐसा कर के वस्त्र और हथकरघा उद्द्योगों को अपार बढ़ावा मिलने की उन्होंने उम्मीद जताई ।

गुप्ता ने ये भी उम्मीद जताई कि यह भारत में कपड़ा उद्योगों के पुनरुद्धार के युग की शुरूआत करेगा। उन्होंने प्रधानमंत्री के अथक प्रयासों के कारण खादी उद्योग का सबसे बड़ा एफएमसीजी ब्रांड बनने के बारे में दी। उन्होंने उपस्थित लोगों से प्रधानमंत्री  से प्रेरणा लेने तथा भारत को वस्त्र के क्षेत्र में वैश्विक नेता बनाने का संकल्प लेने को कहा।

इस कार्यक्रम में कुछ कलाकार, विशेषज्ञ और उद्यमी भी शामिल हुए| जिनमें नकीब अंसारी, अर्चना सिंह, उज्ज्वल कुमार, चंदना दत्त, शमीमुद्दीन अंसारी, उषा झा, इकबाल अंसारी और बाबर अंसारी थे, जिन्होंने वस्त्रों व अन्य हथकरघा उत्पाद से संबंधित, विशेष रूप से ज़मीनी हक़ीक़त में काम करने के बारे में अपने विचार, मुद्दों और अनुभवों को साझा किया। महामारी की स्थिति में उन्होंने कपड़ा उद्योगों की स्थिति को सुदृढ़ करने और कुशल श्रमिकों को सशक्त बनाने के लिए कई सुझाव दिए। यह आयोजन बिहार में हथकरघा और कपड़ा के पुनरुद्धार के लिए निर्धारित रोडमैप के साथ एक सकारात्मक टिप्पणी पर समाप्त हुआ।

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