पटना : बिहार के महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण पढ़ाई बाधित हो रही है। विभाग को कोट से लेकर विभिन्न स्तरों तक फजीहत झेलनी पड़ रही है। बिहार में कॉलेज और यूनिवर्सिटी लेवल पर लगभग 8000 शिक्षकों के पद रिक्त हैं। इसके बावजूद सरकार द्वारा शिक्षकों की भर्ती पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
राज्य भर में लगभग 2000 गेस्ट टीचर विभिन्न यूनिवर्सिटी के अंतर्गत कार्यरत
मालूम हो कि वर्तमान में राज्य भर में लगभग 2000 गेस्ट टीचर विभिन्न यूनिवर्सिटी के अंतर्गत कार्यरत हैं। इन सभी शिक्षकों की भागीदारी कॉलेज के एजुकेशन से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर पर प्रशासनिक कार्यों में भी है। जानकारी हो कि इनकी इन अतिथि शिक्षकों की पात्रता नियमित शिक्षकों की पात्रता जैसी ही है। लेकिन की स्थिति जस की बनी हुई है।
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय समेत अन्य कई विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के कई पद रिक्त
राज्य में वर्तमान में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय समेत अन्य कई विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के कई पद रिक्त हैं। इसके साथ ही कई कई कॉलेजों में सीनियर शिक्षक रिटायर हो रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार द्वारा उन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जब यह मामला तूल पकड़ा है तो बिहार विधान पार्षद डॉ संजीव कुमार सिंह ने इस समस्या सरकार के समक्ष उठाया है।
वर्ष 2010 के बाद से शिक्षकों की अस्थाई नियुक्ति बंद
डॉक्टर संजीव कुमार सिंह ने कहा कि वर्ष 2010 के बाद से ही शिक्षकों की अस्थाई नियुक्ति बंद है अगर राज्य में ही स्थिति रही तो इस विद्यालय स्तर पर शैक्षणिक कार्य काफी प्रभावित होंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब अतिथि शिक्षकों और नियमित शिक्षकों की नियुक्ति का आधार एक जैसा है तो इनका मानदेय भी कैसा होना चाहिए। यूजीसी की तरफ से इन्हें अधिकतम ₹50000 प्रति माह निर्धारित करने की बात कही गई है लेकिन बिहार सरकार के विश्वविद्यालयों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों को मात्र ₹25000 मिलता है। इसलिए मानदेय में यूजीसी के गाइडलाइन का अनुपालन हो।
इसके साथ ही अतिथि शिक्षकों के लिए कहा कि अतिथि शिक्षकों के लिए प्रस्तावित नई नियमावली में इनके लिए पद आरक्षित किया जाए क्योंकि अतिथि शिक्षक मानक और शर्त पूरा करने के साथ ही साथ वर्क एक्सपीरियंस भी रखते हैं इसलिए आने वाले नई नियुक्तियों में इन्हें वेटेज दिया जाना चाहिए। इससे उच्च शिक्षा व्यवस्था में तेजी से सुधार भी होगी।