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आखिर भाजपा प्रवक्ता ने क्यों कहा, तेजस्वी यादव दिल तोड़ना जानते हैं जोड़ना नहीं

पटना: रामा सिंह को राजद में शामिल कराने को लेकर भाजपा के प्रवक्ता अरविन्द कुमार सिंह ने कहा कि विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव दिल तोड़ना-तुड़वाना तो जानते हैं लेकिन जोड़ना नहीं। रघुवंश बाबू और रामा सिंह प्रकरण में यही है सांप-सीढ़ी का खेल। सिंह ने कहा कि 1980 में एक फिल्म आयी थी आशा।

इस हिट फिल्म का एक गीत विपक्ष के एक बड़े दल के साथ पूरी तरह फिट होता है। ‘शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है, लब तक आते-आते हाथों से सागर छूट जाता है..’ इसी में आगे की पंक्ति है, ‘ये दो दुश्मन हैं ऐसे, दोनों राज़ी हो कैसे एक को मनाऊँ तो, दूजा रूठ जाता है..’ दिल किसका-किसका टूटा, इसका कोई हिसाब नहीं, रघुवंश बाबू का टूटा, तो फौरन जोड़ने की कोशिश की गई। रामा सिंह दिल टूटा, तो कोई आंसू भी नहीं पोंछने वाला।

भाजपा नेता ने कहा कि दिल तोड़ने वाले के दरबार में यह कैसा न्याय है। क्या रामा सिंह बिना किसी संकेत के आने का मन बना लिये थे। तभी अगर रघुवंश बाबू की राय ले ली जाती तो किसी का न दिल टूटता और न टूटे दिल को जोड़ने की नौबत आती। खैर, यह किसी के घर का मामला है।

लेकिन, जब दरबाजे खुला छोड़कर आंगन में फौजदारी करोगे, गली में आते-जाते लोग झांकेंगे ही। इन्हें कौन समझाए, समझाने वाले तो जेल में हैं। वैसे दिल टूटने पर आवाज नहीं होती, इस दल के ज्यादातर नेता और कार्यकर्ता अपने टूटे दिल को थाम कर बैठे हैं। विपक्ष के युवा नेता किसके-किसके दिल की मरम्मत करेंगे।

रामा सिंह को लेकर यह चर्चा है कि लोजपा से राजद में पूर्व सांसद रामा सिंह पार्टी की नई पीढ़ी के सूत्रधार के पसंद बन गये और पहली पीढ़ी के विश्वासपात्र रघुवंश प्रसाद सिंह खारिज किए जाने लगे है। पार्टी में इस पसंद और नापसंद लाॅबी बन गयी है। यह लाॅबी लालू-राबड़ी परिवार में भी सक्रिय हो गई है। अर्थात पार्टी में भी दो फांक और राजद का मुख्यालय माने जाने वाला लालू परिवार में एक फांक।

सिद्वान्त की राजनीति और बेबाक छवि के लिए चर्चित रघुवंश बाबू पटना एम्स में विस्तर पड़े पशोपेश में हैं कि आगे क्या किया जाए। हालांकि करने के लिए रमा के नाम पर उन्होंने पहले ही पार्टी उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर अपनी मंशा साफ कर दी है।