पितृ दिवस पर लेख्य-मंजूषा का त्रैमासिक कार्यक्रम ऑनलाइन एप्प पर सम्पन्न

1

पटना : साहित्यक संस्था लेख्य-मंजूषा के तहत रविवार को ऑनलाइन त्रैमासिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।लेख्य-मंजूषा के इतिहास में यह पहला मौका था जब त्रैमासिक कार्यक्रम ऑनलाइन एप्प ज़ूम व गूगल मीट के जरिये सम्पन्न हुई। इस ऑनलाइन त्रैमासिक कार्यक्रम में मुख्य वक्ता रास दादा रास थे।

कविता “पिता पत्थर है “का किया गया पाठन

swatva

दार्शनिक कवि रास दादा रास ने आज पितृ दिवस के उपलक्ष में अपनी पंक्तियों के माध्यम से लोगों को पितृ दिवस की शुभकामनाएं देते हुए जीवन में पिता का महत्व पर संदेश देने का काम किया। उन्होंने अपनी कविता “पिता पत्थर है ” के माध्यम से वर्तमान परिवेश में एक परिवार के प्रति पिता की क्या कुछ भूमिका होती है ,यह बतलाने का भी कार्य किया।

पिता को समर्पित रहा त्रैमासिक कार्यक्रम

पितृ दिवस पर आयोजित यह गद्य त्रैमासिक कार्यक्रम पूर्णत पिता को समर्पित रही। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में कैलिफ़ोर्निया अमेरिका से नीलू गुप्ता जी ने पिता के बारे में कहा कि पिता नारियल की तरह ऊपर से कठोर और अंदर से नर्म होते हैं। उन्होंने अपनी रचना का पाठ करते हुए कहा कि “माँ-पिता एक समान, मैं किसे करूँ प्रथम प्रणाम? मैं दोनों को करूँ एक साथ प्रणाम”।वहीं इस कार्यक्रम में उपस्थित पटना के वरिष्ठ कवि घनश्याम जी ने कहा कि ईश्वर पर लिखना सरल है, किंतु माँ-पिता पर कुछ भी लिखना अत्यंत कठिन है। माँ-पिता का दर्जा ईश्वर से भी ऊपर है।

कार्यक्रम में उपस्थित विदुषी साहित्यकार आदरणीय डॉ. अनीता राकेश ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि “कठोर आवरण के भीतर शुद्ध सात्विक निर्मल जल , श्वेत दल युक्त पिता के इस स्वरूप का दिग्दर्शन जब होता है तो चौंकाने वाला ही होता है | यह मौन रह कर गरल पान करने वाला वह नीलकंठी शिव है जो सदैव पूजित नहीं होता |धीरता की पाषाण प्रतिमा बन काल के प्रहार का सामना करता पिता का व्यक्तित्व समस्त व्रणों का हलाहल आत्मसात् करता जाता है।

पिता होता है सबसे सशक्त इंसान

गौरतलब है कि आज के कार्यक्रम को दो सत्रों में बाँटा गया था। प्रथम सत्र का आयोजन ज़ूम एप्प और द्वितीय सत्र का आयोजन गूगल मीट एप्प पर किया गया।प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव जी ने अमेरिका से लाइव होते हुए पितृ दिवस पर कहा कि “माँ होना जिस दिन सुनिश्चित हो जाता है उस दिन से पिता होना भी तय होता है। आज भी समाज में पुरुष की जिम्मेदारी होती है घर, पत्नी व बच्चों का हर तरह से ख्याल रखना। पति के रूप में थोड़ा कमजोर भी हो सकता है परन्तु पिता के रूप में सशक्त इंसान होता है।

पिता के प्रति हर बच्चा होता है ऋणी

पिता के प्रति हर बच्चा ऋणी होता है। इस लिए उनको आभार प्रकट करने के लिए या सम्मान देने के लिए एक दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता है। हम प्रति पल उनके प्रति अपने दायित्व को निभाने का प्रयत्न करते हुए उनका सम्मान करते है इसका विश्वास दिलाने की चेष्टा करते हैं”।

पत्रिका “साहित्यक-स्पंदन” का हुआ लोकार्पण

वहीं कार्यक्रम के शुरुआत होने के बाद संस्था की पत्रिका “साहित्यक-स्पंदन” (अप्रैल-जून 2020) का लोकार्पण हुआ। इस बार की पत्रिका काव्य कोष के संचालक राहुल शिवाय जी के देखरेख में दिल्ली में प्रकाशित हुई हुई है। पत्रिका पर रौशनी डालते हुए राहुल शिवाय जी ने कहा कि पितृ दिवस पर अत्यधिक रचनाओं के साथ-साथ वर्तमान में जो घटनाएं सब हुई है उन सब पर कुछ-न-कुछ रचना पत्रिका में छपी है।

अंतरराष्ट्रीय लघुकथा समीक्षा का हुआ आयोजन

पितृ दिवस के शुभ अवसर पर संस्था लेख्य-मंजूषा ने पिता पर आधारित लघुकथा पर “अंतरराष्ट्रीय लघुकथा समीक्षा 2020″ का आयोजन किया था। जिसमें 62 प्रतिभागियों द्वारा लिखित समीक्षा शामिल हुई। इन तमाम लिखित समीक्षाओं के समीक्षक अल्मोड़ा उत्तराखंड से वरिष्ठ साहित्यकार सोनम खेमकरण जी थे। सोनम खेमकरण जी ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि समीक्षा के लिया अच्छी लघुकथा का चुनाव कर लेना आधी जंग जीत लेना जैसा होता है। इन 62 समीक्षाओं में द्वितीय स्थान पर संस्था की पूनम कतरियार जी रही। पुनम कतरियार जी ने रामेश्वरम हिमांशु कम्बोज जी की लघुकथा “ऊँचाई” पर समीक्षा लिखी थी। इन 62 समीक्षा की पुस्तक जल्द ही लेख्य-मंजूषा संस्था के तरफ से प्रकाशित होने वाली है।

आज के कार्यक्रम का संचालन पटना के मशहूर शायर मो. नसीम अख्तर जी ने किया।धन्यवाद ज्ञापन युवा उपन्यासकार अभिलाष दत्ता ने किया।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here