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बक्सर में धान के बिछड़े पर टिड्डीयों के हमले से किसान परेशान

बक्सर : राजस्थान, मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के बाद टिड्डी दलों का हमला अब उत्तर प्रदेश से बिहार के सीमावर्ती जिलों में देखने को मिल रहा है। बक्सर ज़िले में टिड्डी दलों ने दस्तक दे दी है, जिले में इन दिनों किसान खरीफ़ फ़सल के अंतर्गत धान के बिछड़े तैयार कर रहे है। पर टिड्डी दलों के हमले ने उनकी परशानी बढ़ा दी है।

जिले के अधिकांश किसान रोहिणी नक्षत्र में ही धान की नर्सरी डाल चूके है। बीज डाले इन्हे एक सप्ताह से उपर होगया है। बिछड़े अब हरे होने लगे है। लेकिन किसान टीड्डीयों के प्रकोप से परेशान हैं। हरे बिछड़े पर इन दिनों इनका प्रकोप इतना बढ़ गया है कि किसान इसको लेकर काफी चिंतित नजर आ रहे है।

असंख्य टीड्डी धान की नर्सरी को बर्बाद कर रही है। कटरिया गांव के रहनेवाले किसान योगेश उर्फ भोला पाण्डेय, सूजीत चौबे, कठजा के किसान जगनारायण उपाध्याय, अशोक उपाध्याय, कजरियाँ के किसान, दीनदयाल पाण्डेय, अशोक साह ने बाताया कि टीड्डी का प्रभाव इतना ज्यादा है कि फसल पनप ही नही पा रहा है।

ऐसे में जानकारी के अभाव में स्थानीय दुकानदारों से दवा लाकर छिड़काव भी कर रहे है लेकिन वे सब बेअसर है। इस समस्या को लेकर हमने कृषि विज्ञान केन्द्र लालगंज के कीट वैज्ञानिक रामकेवल से बात की। उन्होंने बताया कि ये टीड्डी दल नहीं है, लेकिन टीड्डी ही है। हलाकि इनके प्रकोप से भी फसल को नुकसान है,चूंकि अभी चारो तरफ खेतों मे घास नहीं उगी है। बीचड़ा ही हरा है। इसलिए बिछड़ो पर ही एकत्रित हो गये है। बारिश के बाद चारो तरफ घास उगते ही इनका प्रभाव कम हो जायेगा।

बचाव के तरीक़े

टिड्डियां हरी पतियों को खाते हैं ।ऐसे में नर्सरी समय से तैयार होने में दिक्कत आएगी। समय रहते फसल संरक्षण जरूरी है। फसल संरक्षण व कीट वैज्ञानिक रामकेवल ने इन टीड्डीयों के रोक थाम के लिए बताया कि किसान (क्लोरपायरीफॉस 50% ईसी) 2 ml या ( लैम्ब्डा-साइहलथोरिन 5% ईसी) 1.5 ml एक लिटर पानी में घोल बना कर पूरे बीचड़े में और 2 मीटर बाहर बहर चौहद्दी छिड़काव करें। यह छिड़काव छह दिन के अन्तराल पर फिलहाल करना होगा।

अन्य खेतों में घास उगने के बाद इनका प्रकोप कम हो जायेगा। चूंकि इस बर गर्मी कम पडी मौसम और वातावरण इनके अनुरूप रहा इस लिए इनकी संख्या इस साल अधिक देखने को मिल रही है। जिससे लोग भ्रमित हो रहे है कि टीड्डी दल का हमला है। टीड्डी दल मरूस्थलीय टीड्डी है, वे फसलों को काफी क्षति पहुंचाती हैं। यहां आम टीड्डी है जो उनके अपेक्षा कम खतरनाक है। किसानों की माने तो पक्षियों की संख्या कम होने से इनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। पक्षी इन कीट पतंगो का भक्षण करते थे।

चन्द्रकेतु पाण्डेय