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जन्मदिन विशेष: ताड़ी के शौकीन लालू इस वजह से पासी की लमनी तोड़ दिया करते थे

2015 में प्रकाशित हुई किताब RULED AND MISRULED- the story and destiny of Bihar के लेखक संतोष सिंह ने लालू प्रसाद के शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए लिखा है कि वे ताड़ी पीने के शौकीन थे और पैसे मांगने पर सबक सिखाने के लिए कहीं से एयरगन लाकर पासी की लमनी तोड़ दिया करते थे।

आपातकाल में जेल जाने से बचकर अस्पताल पीएमसीएच में रहने का बहाना करने वाले 25 आंदोलनकारियों में लालू प्रसाद भी थे। बीमारी की पुष्टि करनेवाली एक्स-रे जांच के लिए जिस बेरियम पाउडर की जरूरत होती थी, उसे लालू प्रसाद ने कर्मचारियों की मिलीभगत से आउट ऑफ स्टॉक दर्ज करा दिया करते थे।

पुस्तक में बताया गया है कि 1974 के आंदोलन पर शहरी और सवर्णवादी होने के कांग्रेस के आरोप से बचने के लिए जेपी ने लालू प्रसाद को महत्व दिया, उनकी किसी प्रतिभा के कारण नहीं। जेपी ने लालू की गिरफ्तारी के बाद पत्नी राबड़ी देवी को शगुन के रूप में 500 रुपये भिजवाए थे। उस समय के कद्दावर समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर भी लालू को महत्व नहीं देते थे। आज लालू प्रसाद की पार्टी जेपी-कर्पूरी के नाम भुनाती है, लेकिन इन नायकों के आदर्शों को भूल चुकी है।

लालू प्रसाद की राजनीतिक यात्रा में न पहले कभी कोई मूल्य था, न आज कोई नैतिकता। वे लोहिया-जेपी के गैर-कांग्रेसवाद के सहारे आगे बढ़े। जिस भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तानाशाही के खिलाफ केंद्रित जेपी आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने पहचान बनाई, आज वे उन्हीं आरोपों से घिर गए हैं। जीवन में खुशहाली की उम्मीदें रखनेवाले गरीब एक बार फिर संपत्ति बटोरने में जुटे लालू प्रसाद के बारे में सुनकर निराश महसूस कर रहा है। यह बिहार की कहानी है या नियति? जात- जमात में भरमाई गई जनता क्या इस लोकतंत्र में अपनी तकदीर लिख पा रही है?