पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी को सहभागिता निभाने का वक्त – पप्पू वर्मा

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पटना : हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस को मनाए जाने के पीछे उद्देश्य है पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाना। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी को मिलकर लेना होगा संकल्प।इस बीच पटना विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य पप्पू वर्मा ने पौधारोपण कर कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी को सहभागिता निभाने का वक्त है।

संसार की कई प्रजातियां आज विलुप्त होने के कगार पर

मालूम हो कि पर्यावरण के अति क्षति होने के कारण बड़े पैमाने पर संसार की कई प्रजातियां आज विलुप्त होने के कगार पर है।आज कई प्रकार के पशु पक्षी सिर्फ फोटो में ही दिख रहे हैं। पर्यावरण पर अधिक हमला होने के कारण आज वैश्विक स्तर पर पूरे विश्व को कई प्रकार के वायरस का सामना करना पड़ रहा है। पशुओं के साथ क्रूरता मानव को दानव के रूप में बदल दिया है। आए दिन विकास के नाम पर सैकड़ो व हजारों वर्ष पुराना पेड़ को इनकी संरक्षण को बिना प्लानिंग किए हुए एक झटके में साफ कर दिया जा रहा है । पर्यावरण का अधिक दोहन के कारण आज मनुष्य का जीवन विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होकर नर्क के समान हो गया है।

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पर्यावरण और प्रकृति का शुद्ध सात्विक रूप भी काफी हद तक विकृत

संतुलित व मानव अनुकूल पर्यावरण ने अपने आंचल में प्रत्येक प्राणी को जीवन व्यतीत करने के लिए समस्त साधन उपलब्ध करवाया है जो जीवन जीने के लिए अनिवार्य होता है। लेकिन एक समय के बाद मानवीय जीवन में हुई विज्ञान एवं प्रायोगिक प्रगति और तकनीकी घुसपैठ ने ना केवल मानवीय जीवन की दिशा को परिवर्तित करके रख दिया अपितु पर्यावरण और प्रकृति का शुद्ध सात्विक रूप भी काफी हद तक विकृत कर दिया है।

पर्यावरण को बनाया जा रहा बलि का बकरा

विकास के पैमाना को प्राप्त करने के प्रतिस्पर्धा में मनुष्य ने प्राकृतिक को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने का काम किया है जबकि वास्तविक विकास का प्रतिमान कतई पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का इजाजत नहीं देता है। आज विकास का पैमाना तो यह हो चुका है कि जितना ज्यादा जो देश पर्यावरण को नुकसान करेगा वह उतना ही विकसित देशों की श्रेणी में अग्रणी गिना जाएगा यही कारण है कि आज विभिन्न राष्ट्रों के मध्य विकास की एक ऐसी निरर्थक होड़ मची हुई है जिसमे पर्यावरण को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।

दिन-रात पर्यावरण का गला घोटने में प्रयासरत हैं मनुष्य

इस क्रम में केवल विकसित राष्ट्र की नहीं अपितु विकासशील राष्ट्रों को भी विकसित होने का ऐसा चस्का लग चुका है कि वे दिन-रात पर्यावरण का गला घोटने में प्रयासरत नजर आ रहे हैं। विकसित राष्ट्रों को यह चिंता है कि विकास की गति को वो अगर तेज नहीं करेंगे तो उनका राष्ट्र अधिक दिनों तक विकसित नहीं राह पाएगा। वहीं विकासशील राष्ट्र तो पहले से ही विकसित बनने के लिए हर संभव तरीके से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति का किया जा रहा काम

पर्यावरण समस्या की स्थिति इतनी जटिल होती जा रही है कि वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले संस्थाओं द्वारा पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। इनके द्वारा बनाई गई योजनाओं का अनुपालन भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है।

अभी ही है सचेत होने का मौका

वर्मा ने कहा कि अनियंत्रित होते पर्यावरण के कारण आज न केवल मनुष्य के जीवन पर आपदाएं आ रही है बल्कि इन आपदाओं के कारण पशु पक्षियों की प्रजातियां सदैव के लिए लुप्त होती जा रही है। यदि हम समय रहते सचेत नहीं हुए तो वह समय दूर नहीं जब मनुष्य को सांस लेना भी दूभर हो जाएगा।

आज बाहर घूमते वक्त मास्क लगाकर सांसे लेना भी किसी उदाहरण से कम नहीं है। अब समझदारी इसी में है कि पर्यावरण के संकेत को समझकर पर्यावरण को बचाना ही हमारी समझदारी होगी।

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