कोरोना के संदर्भ में सामाजिक दूरी के स्थान पर शारीरिक दूरी सही: डॉ शंकर लाल

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दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष सह संकायाध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार चौधरी द्वारा सामाजिक दूरी के स्थान पर शारीरिक दूरी के प्रयोग करने की अपील आज राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। देश की प्रतिष्ठित स्वास्थ्य से जुड़े समाचार पत्र ‘हेल्थवायर’ ने इस सन्दर्भ में खबर प्रकाशित करते हुए प्रो. विनोद कुमार चौधरी का उल्लेख किया है। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन और बीबीसी के रिपोर्ट का भी जिक्र करते हुए कहा गया है कि शारीरिक दूरी शब्द का प्रयोग उचित होगा।

आज इसी विषय को ध्यान में रखते हुए ‘कोरोना वैश्विक महामारी के रोकथाम में शारीरिक दूरी का महत्व” पर वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार के मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय समाजशास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ शंकर कुमार लाल ने कहा कि भारत में सोशल डिस्टेंसिंग यानी स्वयं को औरों से दूर कर लेने की अवधारणा नहीं रही है। कोरोना के बचाव में शारीरिक दूरी शब्द भारतीय समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में उचित है। भारत तो समूची दुनिया को कुटुंब मानता रहा है, लेकिन यह मानते हुए भी फिलहाल सदियों के आजमाए सामाजिक व्यवहार को छोड़ना है। एक तरह से भारत की यह लड़ाई उसकी जीवन शैली से है। भारत में बीमार व्यक्ति को भी अकेला नहीं छोड़ा जाता। परिजन उसे घेरे रहते हैं, सेवा करते हैं, किंतु विकसित देशों में बीमार व्यक्ति किसी से नहीं मिलता। यदि वह घर पर है तो घर के बाहर बोर्ड लगा रहता है: बीमार हैं, न मिलें। विकसित देशों में सोशल डिस्टेसिंग की आम अवधारणा रही है, जिसे अपने देश में लोग परिचित बीमार से न सिर्फ मिलते हैं, बल्कि मदद के लिए आगे रहते हैं। इस आदत को फिलवक्त बदल रहे है और नजदीकी सामाजिक है, परंतु दूरी शारीरिक है।

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केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ावा देने के लिए कहा है कि सभी शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण और मूल्यांकन करें। व्यवहारिक रूप में शारीरिक दूरी से विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन शिक्षण बहुत उपयोगी हो रहा है। परंतु, वर्तमान परिदृश्य में सामाजिक दूरी में ही भौतिक दूरी और शारीरिक दूरी अंतर्निहित है। विशाल सांस्कृतिक विविधता वाले समाज के लिए सामाजिक दूरी की तकनीकी प्रयोग करना और व्यवहार में लाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण होता है।

डॉ. लाल ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इस दूरी को 1 मीटर के रूप में पहचानता है। सीडीसी (CDC) 2 मीटर कहता है, जिससे सामाजिक दूरी का न्यूनतम माप निर्धारित होता है. यह एक शारीरिक दूरी है। परिवार कल्याण और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (MoHFW), गैर-दवा संक्रमण की रोकथाम और उसी के ख़िलाफ़ नियंत्रण हस्तक्षेप के रूप में सामाजिक दूरी को संदर्भित करता है।

इस वेबिनार में अपनी बात रखते हुए प्रो विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि कोरोना के बचाव हेतु अलगाव के मामले में, संदिग्ध व्यक्तियों को परिवार के बाक़ी सदस्यों से दूर रखा जाता है. यह एक साथ कितने प्रक्रिया में होता है, लेकिन संदर्भ बिंदु भिन्न होता है. अलगाव के साथ सामाजिक दूरी, एक धीमी प्रक्रिया है, और ज़ाहिर तौर पर लक्षण दिखने में कुछ सप्ताह लगते हैं. तत्काल नाटकीय प्रभाव की अपेक्षा करना निश्चित रूप से एक ग़लत आशंका है. कुछ ही समय में इसका दुस्प्रभाव तीव्र गति से बढ़ जाएगा अगर सामुदायिक रूप से सुरक्षित व्यवहार नहीं किया. जैसे- शारीरिक दूरी, साफ़-सफ़ाई, डॉक्टरों के निर्देशों का पालन, मास्क का उपयोग, स्वयं को साफ़ करना आदि। यह देखते हुए कि सामाजिक दूरी के तहत मानव अंतःक्रिया का पूर्ण समाप्ति उपयुक्त नहीं है, सामान्य अभ्यास शारीरिक रूप से स्वयं को दूर करना चाहिए. पूरी तरह से दूरी बनाना अवांछनीय है। शारीरिक दूरी को भावनात्मक पृथक्करण से अलग माना जाता है, जबकि ये पूर्णत: सही नहीं है।

स्वयं अलग-थलग की लंबी अवधि में सभी से दूरी बनाए रखने में, संदिग्ध व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक भलाई पर दुष्परिणाम पड़ता है. इसलिए समायोजन तदनुसार किया जाना चाहिए. ज़ाहिर तौर पर इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है. लेकिन संक्रमित या संदिग्ध बुज़ुर्गों को घर में ही अलग-थलग कमरों मे रखना, दूर से उनको सुविधाओं के अभाव और मृत्युशय्या पर देखना, दिल टूटने से अधिक बुरा कुछ और भी नहीं हो सकता है। प्रो. चौधरी ने आगे जोड़ते हुए कहा कि इस महामारी के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए, पूरी तरह से व्यवस्थित और संगठित प्रयास की ज़रूरत है। साथ ही शारीरिक दूरी का अभ्यास करते हुए, कोरोना संक्रमण को नियंत्रित जा सकता है। इस महामारी का समाधान सरकार और जनता एक साथ मिलकर करना होगा. हमें जीवन के साथ संघर्ष कर रहे लोगों के लिए सम्मानजनक व्यवहार के रूप में शारीरिक दूरी और सामाजिक एकजुटता का अभ्यास करना होगा। समाज तभी टिका रहता है जब संबंधों का जाल बिछा हुआ हो। अतः आज सामाजिक और भावनात्मक नजदीकी और शारीरिक दूरी मानव जीवन की आवश्यता है। इस वेविनार में समाजशास्त्र विभाग के स्नातोकोत्तर द्वितीय और चतुर्थ वर्ग के छात्र छात्रा सहित शोध छात्र आदि ने भाग लिया।

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