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मुद्दा – हमारा समाज इतना हिंसक क्यों

साक्षात्कार – डॉ. विनोद पांडेय (मनोचिकित्सक)

1. आज के लोग इतने हिंसक क्यों हो रहे हैं?
उत्तर :- इसके जवाब को समझने के लिए हमें कुछ दूसरे बातों को समझना आवश्यक है। पहले के समय लोग संयुक्त परिवार में रहते थे। अब एकल परिवार ( न्यूक्लियर ) की अवधारणा बढ़ चुकी है। इसमें पति – पत्नी दोनों काम में व्यस्त रहते है। बच्चा आधा दिन स्कूल में रहता है , दोपहर में या तो वह बच्चा अकेले रहता है अथवा किसी दाई के साथ। ऐसे परिवार में आपसी संवाद न के बराबर होता है। बच्चों में सामाजिक भावना उतपन्न नहीं हो पाती है। अपने बातों को सही से रख पाने में दिक्कत होती है। इस स्थिति में बच्चे किसी को अपना आदर्श नहीं बना पाते हैं।
वे आसपास के चीज़ों से क्या सिख रहे हैं? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिसमें आये दिन केवल हिंसक तत्व को अधिक मात्रा में दिखाई जाती है।
जो एकदम गरीब तबके में जीने को मजबूर है , उनमें एक समय के बाद आपराधिक मनोवृत्ति खुद व खुद पनपे लगती है। इतने सारे परेशानियों के बाद लोग किसी भी नशे को अपना सहारा बनाने लगते है। बाद में वही नशा उनके दिमाग को काबू करने लगता है।
आज कल एक मानसिकता और देखने को मिली है , वह है ‘शार्ट कट’। कम समय अधिक से अधिक पाना। यह सोच इंसानों से नैतिकताओं का पतन करवा रही है।
आज के समय आकांक्षायें बढ़ गई है। क्षमता कम हो गयी है। अपनी इच्छाओं को हम काबू नहीं रख पा रहे है। इसलिए हम हिंसक हुए जा रहे है।
2. वर्तमान परिदृश्य में यौन हिंसा की घटना आए दिन सुनने को मिलती है। ऐसे घृणित अपराध के पीछे अपराधियों की क्या मानसिकता होती है?
उत्तर:- इसके दो तीन कारण आपको बताता हूँ-
(i). ड्रग्स की लत – शराब , गाँजा , अफीम इत्यादि। इन सभी चीज़ों में से किसी एक चीज़ का अधिक मात्रा में सेवन।
(ii). रिसर्च बताती है जो लोग रेप करते है उनके दिमाग में , जहां से सेक्स का उद्गम होता है। वहां किसी न किसी प्रकार की दिक्कत जरूर होती है। ऐसे लोग जैविक, मानसिक और सामाजिक रूप से बीमार होते हैं।
(iii). ऐसे लोगों को अपनी यौन उतेजना पर काबू नहीं होता है।
(iv). मनोविज्ञान में एक शब्द आता है ‘मूवमेंट्री मैडनेस’। जिसको हिंदी में क्षणिक पागलपन कहा जाता है। रेप करने वाले अपराधियों में यह चीज़ आम तौर पर पाई जाती है।
रेपिस्ट के कितने प्रकार है, इसपर विदेशों में चार खंडों में किताब प्रकाशित हुई है। दुर्भाग्य से अपने देश में इसपर इतना शोध नहीं हुआ है।
3. क्या पाश्चात्य संस्कृति के कारण ऐसे अपराध को बढ़ावा मिल रहा है?
उत्तर:- ऐसी घटनाओं के लिए पूर्ण रूप से तो नहीं। लेकिन आंशिक रूप से पाश्चात्य संस्कृति जरूर जिम्मेदार है। वहां की संस्कृति भोग विलास की है। पश्चिमी संस्कृति के कारण ही संयुक्त परिवार की अवधारणा टूटी है। एकल परिवार में रहने के नुकसान तो आप जानते ही है।
4. क्या नैतिक शिक्षा की कमी के कारण ऐसे अपराध बढ़ रहे हैं? भारतीय शिक्षा पद्धिति में नैतिक या संस्कृति को मुख्य पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए या नहीं?
उत्तर:- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के सभी स्कूल के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार किया है। जिसमें वह नैतिकता का पाठ , दिल से माफी मांगना सिखाया जाता है ( विदेशों में इसकी परीक्षण भी दी जाती है)।
भारत में इस चीज़ को बिल्कुल लागू करना चाहिए। सिर्फ प्राथमिक ही नहीं स्नातक स्तर तक। अगर यह लागू करने में कोई दिक्कत आती है तो स्कूल में पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों को पढ़ाई जा सकती है। इससे बच्चों के अंदर बौद्धिक विकास होगा।

5. कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में बताइए, जिससे लोगों को कुछ सिख मिल सके।
उत्तर:- दो घटनाओं का जिक्र करूँगा। जिसने मुझे भी अचम्भित कर के रख दिया था। मैं उन दो घटनाओं को आज भी याद कर के सीखने की कोशिश करता हूँ।
पहली घटना हिमाचल के एक गाँव की है। मैं उस वक़्त वहीं काम करता था।
एक दिन पुलिस एक विजय ( बदला हुआ नाम) नाम के लड़के को पकड़ कर हमारे यहाँ लायी। उस लड़के पर आरोप था कि उसने अपनी माँ की हत्या कुल्हाड़ी से मार के की थी। पहले मैं उसके पिताजी से बात किया। बात करने पर पता चला कि विजय एक मेधावी छात्र था। हर साल सरकार के तरफ से उसे छात्रवृत्ति मिलती थी। बाद में वह चंडीगढ़ चला गया इंजिनीरिंग करने के लिए। और वहीं कॉलेज में ही इसे गांजे की लत लगी। और नशे में ऐसा गिरफ्त हुआ कि कॉलेज भी छूट गया।
उसके बाद मैं विजय से जा कर बात किया। उसने बताया कि, वह पढ़ने में बहुत तेज था। लेकिन जब चंडीगढ़ गया तो वहाँ का दवाब वह झेल नहीं सका। अंग्रेजी की दिक्कत, नए लोगों से बात करने में दिक्कत, नयी जगह का दिक्कत। इसी सब के कारण मुझे गांजे की लत लग गयी। उसके बाद उसका यह हाल हो गया कि वह जिस दिन गाँजा नहीं लेता तो वह बेचैन होने लगता ।
उसने बताया कि उस दिन भी उसने गाँजा पिये हुए था। माँ ने उसे समझाया कि गाँजा पीना छोड़ दो। उसके बाद उसकी माँ जंगल की ओर चली गयी लकड़ी काटने। उसके पीछे पीछे विजय भी गया। उसने बताया वह माँ की मदद करने गया था। उसको लगा कि माँ के गले पर सांप है। वह सांप को मारने के लिए कुल्हाड़ी चलाया था। और उसमे इसकी माँ मर गयी ।
अब इस पूरी घटना में जो बातें सामने आई वह यह थी। जब हम अकेलेपन का शिकार होने लगते है तब हम नशे की ओर बढ़ते है। बाद में वह नशा हमें काबू करने लगता है। और नशा भ्रम की स्तिथि उत्पन्न करता है। अंग्रेजी में इसे “हल्लुसिनाशन” कहते है, जिसका अर्थ होता है मतिभ्रम होना। विजय के साथ भी यही हुआ था उसको सांप दिखना सिर्फ मतिभ्रम था। क्योंकि वारदात स्थल पर कोई सांप मरा हुआ नहीं मिला था।
जब भी आपको नशे की तलब लगे तो अपने दिमाग को दूसरे जगह व्यस्त करने की कोशिश कीजिए। उस वक़्त च्युइंग गम खाइए। नशे की उतेजना खुद ब खुद कम होने लगेगी।
दूसरी घटना हिस्टीरिया बीमारी को लेकर है। सामान्यतः अपने देश में हिस्टीरिया बीमारी को यौन कुंठाओ के रूप में देखा जाता है। लोगों का यह मानना है कि शादी करा देने से यह बीमारी का इलाज हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। इसी बीमारी से सम्बंधित एक केस मेरे पास आया था। उस केस में रीता ( बदला हुआ नाम ) नाम की औरत ने अपने सात साल के बेटे को नहर के पास ले जाकर मार दी थी और अपना भी गर्दन आधा काट ली थी।
जब पुलिस गिरफ्तार कर के हमारे पास लायी, तो उस वक़्त रीता बेहोश थी। जब उसे होश आया तो उसे कुछ भी याद नहीं था। दो महीने तक उसका इलाज चला। इस दो महीने के क्रम में जब मैंने रीता के माँ – पिता से बात किया तो पता चला रीता को बचपन में ही ऐसे दौरे आते थे। उसे देवी आना या भूत लगना मानकर ओझा सब के पास ले जाते थे।
यह ऐसी बीमारी है जिसमें क्षणिक आवेश में हमारे शरीर में इतनी ताकत आ जाती है जिसमे हमारा शरीर दस लोगों के बराबर ताकत आ जाती है। हिस्टीरिया एक मानसिक बीमारी है , जिसमे अचानक से दिमाग मे तनाव आ जाता है। जिस परिवार में हमेशा क्लेश होते रहता है वहां के बच्चों में यह बीमारी अक्सर पाई जाती है। इसमें व्यक्ति अपना होश थोड़ी देर के लिए खो देता है। होश आने पर उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है। इस स्तिथि में व्यक्ति हिंसक अपराध कर जाता है।
यह एक मानसिक बीमारी है, जिसका समय के साथ इलाज संभव है।
6. आपके नज़रिए से इन सभी चीज़ों निजात पाया जा सकता है?
उत्तर:- इस तरह की चीज़ों से निजात पाने के लिए , देश में सभी तरह के पोर्नोग्राफिक साइट पर प्रतिबंध लगे। जो भी इस तरह के साइट देखने के आदि हो चुके हैं, उनके इलाज का पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए।
बच्चों को स्कूली पढ़ाई के साथ -साथ नैतिक शिक्षा भी मिलनी चाहिए। पाठ्यक्रम में बच्चों को संयमी और मानसिक रूप से मजबूत बन सके इसकी व्यवस्था होनी चाहिए।
एक बेहतर तरीका है कि प्राचिन भारतीय साहित्य , पंचतंत्र या हितोपदेश सरीखे कहानियां पढ़ाई जाए।
अभिलाष दत्ता

 

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