क्या भारत ने खोज लिया कोरोना का तोड़? 30 देशों ने मोदी से मांगी ये दवा

0

नयी दिल्ली : दुनियाभर के 30 देशों ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा की डिमांड की है। यह दवा सबसे ज्यादा भारत में ही बनती है और मलेरिया तथा गठिया के शिकार लोगों के काम आती है। ऐसे में क्या कोरोना महामारी ने एकबार फिर दुनिया को भारत के विश्वगुरु वाले महत्व को मानने पर मजबूर कर दिया है। क्या भारतीयों ने कोरोना का तोड़ खोज लिया है। आइये जानते हैं कि कोरोना मरीजों के लिए क्यों जरूरी हो गई है यह भारतीय दवा।

चीन के वुहान में पहली बार हुआ कोरोना में इस्तेमाल

दरअसल, चीन में जब कोरोना महामारी आउट आफ कंट्रोल हुई तो वहां के रिसर्चरों ने विभिन्न दवाओं को अपने मरीजों को देना शुरू किया। उन्होंने यह पाया कि क्लोरोक्विन दवा जो मलेरिया के इलाज के लिए भारत में इस्तेमाल होती है, उसका प्रभाव कोरोना मरीजों पर भी काफी उत्साहजनक है। उन्होंने इसका प्रयोग शुरू कर दिया जिससे वहां के कोरोना पीड़ितों को काफी राहत मिली। यह इस दवा के कोरोना मरीजों पर शुरुआती प्रयोग की कहानी थी।

swatva

फ्रांस के मशहूर फिजीशियन ने किया 80 लोगों पर ट्रायल

इसके बाद फोकस शिफ्ट हुआ यूरोप में जहां इटली, स्पेन, फ्रांस और अमेरिका में कोरोना ने विनाश का बवंडर मचाना शुरू किया। फ्रांस के एक जाने माने फिजिशियन डॉ. एडी राउल ने तब भारतीय दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन और इरीथ्रोमासिन नामक एंटिवायोटिक के मिश्रण का इस्तेमाल कोरोना मरीजों पर शुरू किया। डॉ. राउल ने करीब 80 कोरोना मरीजों पर इस दवा का प्रयोग किया। नतीजे काफी प्रभावी मिले और 80 में से 78 कोरोना मरीज ठीक हो गए। केवल 2 मरीजों पर इस दवा का खास असर नहीं हुआ।

अमेरिका में भी डॉक्टरों ने माना भारतीय दवा का लोहा

अब बारी आई अमेरिका की जिसे कोरोना ने घुटनों के बल ला दिया है। अमेरिका में इस भारतीय दवा को काफी पहले खारिज किया जा चुका था। वहां मलेरिया व इस जैसी बीमारियों में इस दवा का इस्तेमाल काफी कम किया जाता है। लेकिन वहां भी कोरोना संकट में शोधकर्ताओं ने कोरोना मरीजों पर जब इस भारतीय दवा का प्रयोग किया तो नतीजा चौंकाने वाला मिला। बस फिर क्या था, अमेरिका, ब्राजील, स्पेन, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, खाड़ी देशों समेत दुनिया के 30 देशों ने भारत से यह दवा सप्लाई करने का अनुरोध कर दिया।

सिनकोना की छाल से भारत में 9 कंपनियां बनाती हैं दवा

भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। भारतीय जलवायु में मलेरिया एक आम बीमारी है जिसके लिए यहां 50 के दशक से ही यह दवा बनाई और इस्तेमाल की जाती है। यूरोप और अन्य देशों में मलेरिया का प्रकोप कम है और वहां इस दवा को वे बिल्कुल खारिज कर चुके हैं। भारत में 9 कंपनियां यह दवा बनाती हैं और इसका कच्चा माल—सिनकोना वृक्ष की छाल, भी यहां बहुतायत से मिलती है। सिनकोना एक प्रकार का पेड़ है जिसके छाल से मलेरिया की दवा कुनैन या क्लोरोक्विन बनती है।

इंडिया फर्स्ट के बाद भारत करेगा दुनिया को दवा सप्लाई

इधर कोरोना के बढ़ते प्रसार को देखते हुए भारत ने भी इस दवा के निर्यात पर पाबंदी लगा रखी है। भारत में भी कोरोना तेजी से पैर पसार रहा है जिसके लिए उसे भी इस दवा की बड़ी मात्रा अपनी बड़ी आबादी के लिए रखनी होगी। दूसरी तरफ भारत विश्वबंधुत्व वाले अपने संस्कारों से भी बंधा हुआ है। ऐसे में भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि वह अपनी जरूरत का स्टॉक रखने के बाद शेष विश्व में प्रभावित देशों को इस दवा की सप्लाई के लिए निर्यात प्रतिबंधों को हटा लेगा। यानी भारत एक बाद फिर पूरी दुनिया के कोरोना पीड़ित देशों को यह दवा निर्यात करेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here