‘प्रधानमंत्री जी – आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी.’ इस ट्वीट के कुछ ही घंटे बाद उनका निधन हो गया, मानो उनकी आखिरी सांस इस घड़ी का ही इंतजार कर रही थी। यह ट्वीट था सुषमा स्वराज का। जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 अप्रभावी करने को लेकर ट्वीट करते हुए लिखी थी।
सुषमा स्वराज जिन्होंने न केवल अपने लगन से राजनीति में एक बड़ी जगह हासिल कि बल्कि महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के उत्थान के लिए अपने आप को स्वीकार कराया। उनकी छवि हमेशा एक शांत एवं प्रखर नेता के रूप में रही है। जब भी वे संसद में अपने शब्दों को रखना शुरू करती थीं, पूरा संसद शांत पड़ जाता था। अपनी बातों को सरल भाषा में कहते हुए जितना प्रभाव उनकी बातों में हुआ करता था। आज के नए सांसदों में विरले ही देखने को मिले। बात केवल संसद की ही नहीं है। वे जहाँ भी जाती थीं, लोग उनकी शांत शैली के साथ ही प्रभावित बातों के कायल हो जाते थे। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में उनके हिंदी में दिए गए भाषण को भला कौन भूला होगा। जिसने भी सुना, वह उनकी शैली का प्रशंसक ही बन गया।
सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था। इसी शहर से कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। 1973 में सुषमा स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की और यहीं उनकी मुलाकात स्वराज कौशल से हुई जो 1975 में उनके जीवनसाथी बने।
लोकसभा में चल रही बहस को दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण का फैसला
1979 में उन्हें जनता पार्टी की हरियाणा इकाई का अध्यक्ष चुना गया। बाद में भाजपा बनी तो सुषमा स्वराज इसमें शामिल हो गईं। 1990 में भाजपा ने उन्हें राज्य सभा भेजा। इसके छह साल बाद वे 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतीं। अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में सुषमा स्वराज सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गईं। इसी दौरान उन्होंने लोकसभा में चल रही बहस के दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण का फैसला किया था।
2014 में विदिशा से लोकसभा पहुंचीं। इसके बाद उन्होंने भारत की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री होने की उपलब्धि अपने नाम की। उन्हें राजनीति के साथ ही एक कुशल और परिश्रमी मंत्री के रूप में स्वीकार किया गया है। एनडीए के पीछे के पिछले कार्यालय कि सफलता में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। जब भी इस कार्यकाल का जिक्र होगा उन्हें एक अच्छे विदेश मंत्री के तौर पर जरूर याद किया जाएगा। उन्होंने एलिट माने जाने वाले विदेश मंत्रालय को आम नागरिक के लिए सुलभ बना दिया।
ये मैं ही हूं, मेरा भूत नहीं है
यही वजह थी कि कई बार लोगों को उनकी इस असाधारण सक्रियता पर यकीन नहीं होता था। एक बार तो सुषमा स्वराज से एक ट्विटर यूजर ने पूछा भी कि क्या उनकी जगह उनका कोई जनसंपर्क अधिकारी ट्वीट करता है. इस पर उनका जवाब था, ‘निश्चित रहें, ये मैं ही हूं, मेरा भूत नहीं है। विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ने कुलभूषण जाधव मामले की गूंज अगर वैश्विक स्तर पर इतनी बड़ी हो सकी तो इसमें सुषमा स्वराज का भी बड़ा योगदान था। इसके बाद 2017 में भारत और चीन के बीच पैदा हुए डोकलाम गतिरोध को दूर करने में उनकी भूमिका अतुल्नीय है।
छह साल तक पाकिस्तान की जेल में रहने के बाद लौटे भारतीय युवक हामिद अंसारी की मां फौजिया कहती हैं- ’’मैडम हमलोग के लिए फरिश्ता थीं। अब वो मेरे बेटे हामिद के रूप में हमलोग के जिंदा रहेंगी।’’
हामिद कहता है- ’’यह मेरी दूसरी जिंदगी, मैडम की वहज से है। वो मेरी मां जैसी थीं। विश्वास नहीं होता कि इतनी जल्दी हमें छोड़कर चली गईं।’’
भारत की प्यारी बेटी अब विदा हो चुकी है। कुछ रह गया है, तो सिर्फ उनकी यादें…
सुषमा का सफर
1952- 14 फरवरी को अंबाला छावनी में जन्म।
1973- सर्वोच्च न्यायालय में वकालत शुरू।
1975- स्वराज कौशल से विवाह।
1977-1982 और 1987-1989 के दौरान दो बार हरियाणा से विधायक।
1977- सबसे कम उम्र में हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री।
1996- अटल सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री।
1998- दिल्ली से विधायक चुनी गईं।
1998- दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
2009- लोकसभा में विपक्ष की नेता।
2014- मोदी सरकार में विदेश मंत्री।
सुषमा स्वराज 07 बार सांसद रहीं और 03 बार विधानसभा का चुनाव लड़ीं व जीतीं।