मौत के तीन दिन बाद तक अस्पताल करता रहा ईलाज और बनाता रहा बिल
पटना : प्राइवेट स्कूल और निजी अस्पताल। सेवा के नाम पर संचालित इन दोनों व्यवसायों से बिहार की जनता त्राहि—त्राहि कर रही है। सत्ता और विपक्ष दोनों पक्ष के माननीयों की प्रत्यक्ष या परोक्ष भागीदारी इन व्यवसायों में है। तभी तो न इनपर कोई लगाम है न सत्ता या शासन की ऐसी कोई मंशा कि इन्हें किसी ठोस मापदंड के तहत लाया जाए। बस कुछ छोटे—मोटे और बेअसर से कानून बना दिए गए हैं। ऐसे में ये कैसे खुलेआम मनमानी करते हैं, इसकी ताजा मिसाल देखिए। राजधानी पटना के कदमकुआं स्थित न्यू बॉर्न केयर अस्पताल में एक नवजात की मौत के बाद भी वहां के चिकित्सक उसका तीन दिन तक इलाज करते रहे। परिजनों को तीन दिनों तक झांसे में रखते हुए वे इस दौरान आईसीयू, दवा वगैरह का बिल भी बनाते रहे। जबकि बच्चा तीन दिन पहले ही मर चुका था।
ऐसा तीन दिन तक चलता रहा लेकिन शक होने के बाद परिजनों ने जब अस्पताल प्रशासन से नवजात का हाल जानने की कोशिश की तो आईसीयू में एंट्री नहीं कराया गया। फिर परिजनों ने इसकी शिकायत पुलिस से की तब जाकर नवजात का शव परिजनों को दिया गया।
बताया जाता है कि पीड़ित परिवार आरा का रहने वाला है। एक परिजन ने बताया कि बच्चे की धड़कन तेज होने पर उसे न्यू बॉर्न केयर अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां 1 लाख से ज्यादा खर्च के बाद भी बच्चे को बचाया नहीं जा सका। आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि जब भी बच्चे को देखने की कोशिश की गई तो उन्हें शीशे के बाहर से ही दिखाया गया और बच्चे के जिंदा होने की झूठी तसल्ली दी गई। पुलिस छानबीन कर रही है जबकि अस्पताल प्रशासन आरोपों से इनकार कर रहा है। इससे पहले भी राजाबाजा में संचालित पारस अस्पताल पर पिछले वर्ष पैसे जमा नहीं करने पर बाजार समिति निवासी सब्जि विक्रेता के शव को बंधक रखने का मामला सामने आया था।