पीके की गुजरात में इंट्री
अमित शाह की गैर-मौजूदगी के दौरान प्रशांत किशोर की गुजरात में इंट्री हुई। दरअसल प्रशांत किशोर ने एक इंटरव्यू में कहा था मैं मोदी जी से जुड़ने से पहले संयुक्त राष्ट्र के लिए अफ्रीकी देशों में कुपोषण के लिए काम करता था । पीके ने कहा था कि 2011 में वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था और इस काम में उनके साथ जुड़कर काम करने की इच्छा जताई थी। प्रशांत किशोर का प्रस्ताव अच्छा लगने के कारण मोदी ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। उसके बाद 2012 के चुनाव में पीके ने मोदी के लिए काम किया।
लेकिन, प्रशांत किशोर मोदी के करीब इसलिए जा पाए, क्योंकि मोदी के भरोसेमंद सहयोगी रहे अमित शाह 2002 और 2007 के चुनावों को मैनेज करने के लिए गुजरात में मौजूद थे। लेकिन, 2012 के विधानसभा चुनाव से दो साल पहले ही उनके लिए मुश्किल खड़ी हो गई थी। केंद्र में यूपीए सरकार के समय सीबीआई ने उन पर 2010 में सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में साजिश रचने का आरोप लगाते हुए चार्जशीट दाखिल की , जिसकी वजह से 25 जुलाई, 2010 को अमित शाह को सीबीआई के सामने सरेंडर करना पड़ा। इसके बाद अगले कुछ महीने उन्हें न्यायिक हिरासत में अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल में बिताने पड़े। बाद में अमित शाह को गुजरात हाईकोर्ट से जमानत मिली, मगर इस शर्त पर कि वे राज्य में नहीं रहेंगे। अमित शाह को इसके बाद अगले सवा साल तक गुजरात से बाहर ही रहना पड़ा। 2012 में जब वो नारायणपुरा सीट से चुनाव लड़ रहे थे तो चुनाव से ठीक पहले उन्हें कोर्ट से गुजरात आने की इजाजत मिली थी। तब तक पीके मोदी से जुड़ चुके थे।
प्रशांत किशोर के बारे में एक बात यह भी कहा जाता है कि वे किसी और के काम का क्रेडिट खुद ले लेते हैं। जैसे ‘चाय पर चर्चा’ ये राहुल गुप्ता नाम के एक आईआईटी ग्रेजुएट ने सुझाया था, जो 2014 के अभियान से पहले सीएजी से जुड़ा था और चाय पीते-पीते ये नाम अचानक उसके जेहन में आया था। यह व्यक्ति पहले ‘सिटिजंस फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस’ यानी सीएजी से जुड़ा हुआ था, जो कि अब नई संस्था एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स यानी एबीएम के तौर पर काम कर रही है। जो काम 2014 लोकसभा चुनावों के पहले सीएजी के बैनर तले हो रहा था। वही काम अब एबीएम के जरिए हो रहा है।
प्रशांत किशोर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि मेरा मोदी जी से अलग होने का कारण यह भी रहा होगा कि मैं सीएजी का बुनियादी ढांचा खड़ा करना चाहता था। लेकिन, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद पास पर्याप्त समय नहीं था जिसके कारण मुझे लगा कि अब यह काम नहीं हो। दरअसल सीएजी में प्रोफेशनल लोगों की टीम जुटाने की बात थी। तथा इसमें वैसे लोगों को कुछ देने की बात थी जो चुनाव के समय में मोदी के लिए काम कर रहे थे।
मोदी के करीबी रहे एक बड़े पत्रकार ने ज़िक्र किया था कि प्रशांत किशोर भाजपा में बड़ा पद चाहते हैं। लेकिन, जानकार बताते हैं कि मोदी के जेहन में साफ था कि वे अपने तीन दशक पुराने सुख-दुख के साथी और भरोसेमंद सहयोगी अमित शाह के मुकाबले प्रशांत किशोर को तरजीह नहीं दे सकते।
मोदी से फिर जुड़ना चाहते थे
2018 में प्रशांत किशोर ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी के करीब जाने की सोची। लेकिन, मोदी ने कुछ भी वादा करने की जगह अमित शाह से मिलने की सलाह दी। सूत्रों की मानें तो जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने 2019 कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की। मालूम हो कि 2014 में इस कमेटी के अध्यक्ष मोदी खुद थे।
शाह द्वारा साफ़ शब्दों में मना करने के बाद प्रशांत किशोर बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने की मांग करते रहे, जब वह नहीं हुआ तो फिर राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने की मांग रखी। इतना भी स्वीकार नहीं होने के बाद प्रशांत किशोर ने भाजपा से यह मांग कर दी कि उनके पसंद के 5 लोगों को राज्यसभा सांसद बनाया जाए। प्रशांत किशोर के यह प्रस्ताव को अमित शाह ने सिरे से नकार दिया। अंततः शाह ने प्रशांत किशोर को सेक्रेटरी बनाने को तैयार हो गए। आखिर यह सौदा इतना बुरा नहीं था शाह के लिए, क्योंकि प्रशांत किशोर कुछ चीजों को जनता तक पहुँचाने की माद्दा रखते हैं। सचिव बनाने का दिन भी तय हो गया था। लेकिन, दूसरों के काम की वाहवाही लूटने वाले प्रशांत किशोर को यह पद छोटा लगने लगा।