पटना : माताएं काफी श्रद्धा के साथ संतान की दीर्घायु के लिए जीवित्पुत्रिका या जिउतिया पर्व मनाती हैं। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की उदया अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत दो अक्टूबर को मनाया जाएगा। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के करने से पुत्र शोक नहीं होता है।
क्षेत्रीय मान्यताओं के आधार पर इस व्रत में माताएं सप्तमी तिथि को दिन में नहाय खाय और रात्रि में विधिवत पवित्र भोजन करके अष्टमी तिथि के सूर्योदय से पूर्व सरगही कर सियारों को भोज्य पदार्थ अर्पण करके व्रत प्रारंभ करती हैं। फिर वे जीमूतवाहन की कथा का श्रवण और पूजन करती हैं। सूर्याोदय कालीन अष्टमी तिथि में व्रत करके तिथि के अंत में अर्थात नवमी तिथि में पारण करना वर्णित है।
सरगही – सोमवार की रात्रि 2.45 से पहले
पारण – बुधवार सूर्योदय के उपरांत
क्या है जीमूतवाहन की कथा
राजा जिमूतवाहन अत्यन्त दयालु एवं धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने सर्पों की रक्षा हेतु अपने शरीर को विष्णु के वाहन गरूड़ के समक्ष भोजन हेतु समर्पित कर सर्पों की माता को पुत्र शोक से बचाया। राजा के इस परोपकारी कृत्य से गुरूड़ अति प्रसन्न हुए तथा राजा के कहने पर सभी मारे गये। सर्पों को उन्होंने पुनः जीवित कर दिया। इसी कारण इस व्रत में राजा जीमूतवाहन की पूजा होती है तथा इस व्रत को जीवत्पुत्रिका व्रत कहा जाता है।