CAA और NRC विरोध के लिए ‘जुमे की नमाज’ क्यों?

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पटना : CAA और NRC के विरोध हेतु ‘जुमे की नमाज’ का जिस तरह इस्तेमाल हाल के दिनों में देखा गया, उसने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। जुमे की नमाज के लिए जमा हुई भीड़ को मस्जिद से उकसाना, फिर हथियारबंद हिंसक प्रदर्शन, पुलिस पर हमला और फायरिंग। नयी दिल्ली, यूपी, बिहार, बंगाल समेत देशभर में सरकारी फैसलों के विरोध का यह नया ट्रेंड कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और पत्थरबाजी से बहुत मिलता—जुलता है। दूसरी तरफ, CAA और NRC पर नेताओं की भाषा भी पाकिस्तानी सेना और उसके पपेट पीएम इमरान से बहुत मिलती जुलती है। आइए जानते हैं कि कहीं हम सत्ता के लिए संग्राम करते—करते अपने भारत के खिलाफ ही छिड़े अघोषित संग्राम का हिस्सा तो नहीं बन रहे।

अगर दूसरे समुदाय ने किया काउंटर तब?

भारत में CAA और NRC के नाम पर जो कुछ भी और जिस तरह से चल रहा है, वह खतरनाक संकेत है। लोकतांत्रिक हथकंडों की आड़ में भारत विरोध के इस नए तरीके से सबसे जयादा डर इस बात का है कि कहीं ‘जुमे की नमाज’ के जवाब में मंगलवार को ‘जय श्री राम’ और ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ होने लगा, तब क्या होगा? क्योंकि इतना तो तय है कि मस्जिदों से नमाज के बाद होने वाली तकरीर का ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करने वाले भी उसी रूप में देंगे। स्पष्ट है कि कुछ लोग हैं, जो भारत में माहौल बिगाड़ना चाह रहे।

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समूचे भारत में कश्मीर वाली साजिश

हाल में देश के विभिन्न भागों में जुमे की नमाज के बाद भड़की हिंसा अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गई है। हमें इनका जवाब ढूंढना ही होगा तथा उस समाज को भी चिन्हित करना होगा, जिस समाज के दंगाई सड़क पर सरकारी और निजी संपत्तियों में आगजनी के साथ−साथ हाथ में पत्थर लिए मरने−मारने पर उतारू थे। पुलिस को जिस तरह दंगाइयों ने अपना निशाना बनाया। वह सुनियोजित था। लखनऊ की बात की जाए तो यहां हिंसा का बंगाल और कश्मीरी कनेक्शन भी दिखाई दिया। राज्य के बाहर से आए युवा जिनके शरीर से लेकर पैरों तक में ब्रांडेड कपड़े और जूते नजर आ रहे थे, उनकी भी शिनाख्त शुरू हो गई है। तलाश उन लोगों की भी हो रही है जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर दूसरे राज्यों से आए दंगाइयों को ठहराने−खाने की व्यवस्था की।

नमाज के बाद ही क्यों होती है हिंसा

हिंसा का सबसे खतरनाक रूप 20 दिसंबर को जुम्मे की नमाज के बाद देखने को मिला। दर्जनों शहर हिंसा की आग में झोंक दिए गए। लोग सवाल करने लगे कि आखिर मस्जिद में नमाज पढ़ने गए नमाजी वहां से क्या यही ‘संदेश’ लेकर आते हैं। आम तौर पर नमाज पढ़ने आए भोले−भाले नमाजियों को कुछ लोग गलत राह दिखाने में कामयाब हो जाते हैं। समय की यह मांग है कि धर्म गुरुओं को तमाम किन्तु−परंतु से ऊपर उठकर इस बात पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए कि उनकी किसी कारगुजारी से धर्म की पवित्रता पर आंच न आए।

नेतृत्व का दिवालियापन और बेकाबू लोग

लोकतंत्र में मतभेद जताना या सरकार के किसी फैसले का विरोध करना जनता का मूल अधिकार माना जाता है। यही लोकतंत्र की विशेषता है कि यह अल्पमत रखने वालों को भी विरोध−प्रदर्शन का पूरा अधिकार देता है। समस्या तब आती है, जब ऐसे विरोध और प्रदर्शन की आड़ में देश विरोधी प्रोपेगेंडा और हिंसा को अंजाम दिया जाता है। लेकिन हमारे देश में जहां वोट के लिए नेता अपनी नैतिकता तक गिरवी रखने का कोई अवसर नहीं छोड़ते, वहां खुद को एक समुदाय विशेष का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने का यह मौका वे कैसे गंवाते। हालांकि इस चक्कर में भारत विरोध का ठप्पा और काउंटर वोट के गणित ने उन्हें भयभीत जरूर कर दिया है।

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