पटना : महागठबंधन में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। अपनी डफली, अपना राग के कारण स्वर एक नहीं हो पा रहा। यह नजारा कल बंदी के दिन देखने को मिला जब कांग्रेस ने अपने ही गुट और पार्टी में सिमट कर सीसीए और एनआरसी का विरोध किया।
उधर, जीतनराम मांझी भी पटना की सड़कों पर नजर नहीं आए। वीआईपी का समर्थन स्वर महज मुजफ्फरपुर तक ही देखने को मिला। हालांकि सभी घटक दलों ने एक होकर विरोध करने का स्वांग जरूर किया।
सूत्रों ने बताया कि तेजस्वी यादव को महागठबंधन के नेता रास नहीं आ रहे। पार्टी में भी उनके व्यक्तित्व, उम्र और अनुभव को लेकर सर्वमान्यता नहीं है। यह अलग बात है कि वे कई सीनियर लीडरों को दरकिनार कर उपमुख्यमंत्री बन गये थे। पर, पार्टी संगठन में अब्दुलबारी सिद्दीकी सहित कई नेताओं को वे इसलिए रास नहीं आते कि उपमुख्यमंत्री के नाते प्रोटोकॅाल में बड़े हो जाते हैं और आगे की कुर्सी उन्हें मिल जाती है।
कमोबेश तेजस्वी की यही स्थिति दूसरे दलों में है। कांग्रेस में चाहे मदनमोहन झा हों अथवा अखिलेश प्रसाद सिंह संघर्ष कर राजनीति और समाज में उन्होंने अपनी जगह बनाई। नतीजा, वे लोग उन्हें वो तवज्जो नहीं देते जिसकी वे उम्मीद करते हैं।
कांग्रेस के कई सीनियर लीडर तो बंदी में गायब ही रहे। हालांकि उन पर नजर जदयू के प्रशांत किशोर की थी। उन्होंने ट्वीट भी किया कि कांग्रेस बंदी में कहीं नजर नहीं आ रही। इसके जवाब में मदनमोहन झा कहते हैं कि पीके के पास उपस्थिति दर्ज करना काग्रेस की मजबूरी नहीं है।
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