हर आदमी कभी न कभी बीमार पड़ता है और जाने अनजाने एंटीबायोटिक का सेवन करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जहां यह बहुत फायदेमंद है तो नुकसानदेह भी कम नहीं। वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान के सामने सबसे बड़ी समस्या है-एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस। इस समस्या की जड़ है, एंटीबायोटिक का अनियंत्रित उपयोग।
बेअसर होती दवा
एंटीबायोटिक एक तरह के सूक्ष्म जीवों द्वारा दूसरे सूक्ष्म जीवों के खिलाफ बनाए गए वो रसायन हैं जो उस दूसरे वाले सूक्ष्म जीव के विकास या प्रजनन को अवरूद्ध कर देते हैं या उन्हें मार देते हैं। एंटीबायोटिक जीवाणुजनित रोगों के उपचार में एक कारगर हथियार है। हमारा शरीर खुद ही बहुत सी बीमारियों से लड़ने में सक्षम है लेकिन फिर भी कभी-कभी रोगाणुओं की संख्या तेजी से बढ़ जाने पर इसे मदद की जरूरत होती है और वो मदद एंटीबायोटिक प्रदान करता है। लेकिन एंटीबायोटिक्स का प्रयोग सर्दी, जुखाम जैसी सामान्य बीमारियों में करने से बचना चाहिए क्योंकि ये केवल जीवाणुजनित रोगों में ही कारगर है। हमारे शरीर में जीवाणु की संरचना से मिलती जुलती एक अंतः कोशिकीय संरचना भी पाई जाती है-माइट्रोकाॅन्डिया। अधिकतर एंटीबायोटिक्स जीवाणुओं के साथ-साथ हमारे माइट्रोकाॅन्ड्रिया पर भी असर करते हैं, जिसकी वजह से कमजोरी महसूस होती है। इसके अलावा कुछ लोगों को कुछ खास (विषेष तौर पर पेन्सिलिन) एंटीबायोटिक से एलर्जी भी होती है। अतः बिना चिकित्सकीय परामर्श के एंटीबायोटिक्स का सेवन नहीं करना चाहिए।
सुपरबग का खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार लगमग 53 प्रतिशत भारतीय एंटीबायोटिक्स का सेवन करते हैं। यदि बिना चिकित्सक की सलाह के वो उस एंटीबायोटिक का एक न्यूनतम खूराक (कोर्स) पूरा नहीं कर पाते तो यह समस्याएं पैदा करता है। यदि फिर से वही बीमारी उत्पन्न होती है तो वही एंटीबायोटिक कारगर नहीं होता क्योंकि जीवाणु उस खास एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न कर लेता है। हमारे आसपास कई ऐसे मरीज हैं जिनपर एंटीबायोटिक बेअसर हो चुके है। इसे मेडिकल भाषा में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस कहा जाता है।
एक स्थिति ऐसी भी आ जाती है जिसमें जीवाणु सभी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। इसे सुपर बग कहा जाता है। यह स्थिति इतनी खतरनाक हो जाती है, जिसमे व्यक्ति की मौत साधारण बीमारी से भी हो सकती है। इसलिए सुपर बग को एचआईवी एडस से भी खतरनाक माना गया है। डब्लूएचओ की रिपार्ट के अनुसार भारत में टीबी के सबसे ज्यादा मरीज हैं, जिसमें से दस प्रतिशत मरीज सुपर बग की समस्या से जूझ रहे है।
डब्लूएचओ ने एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह मनाना शुरू किया है। साथ ही ‘एंटीबायोटिक-हैन्डल विथ केयर’ के साथ समन्वय कर आम जन, नीतिनिर्माताओं व जनसामान्य को एंटीबायोटिक के सही उपयोग के प्रति सजगता अभियान भी चला रहा है। भारत सरकार ने भी ‘ग्लोबल एक्शन प्लान आॅन एंटीमाइक्रोवियल रेजिस्टेंस’ की तर्ज पर नेशनल एक्शन प्लान आॅन एंटीमाइक्रोवियल रेजिस्टेंस शुरू किया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने भी इसे एक गंभीर समस्या के रूप में चिह्नित किया है। जिसके तहत एंटीबायोटिक के उपयोग को कम करने एवं पशुधन उत्पादन में इसका इस्तेमाल कम या बन्द करने की योजना है।
व्योमेश विभव
शोधार्थी (जेआरएफ) जैव रसायन शास्त्र विभाग पटना विवि, पटना
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good article