पटना : बिहार में जातीय आधार पर वोट बटोरने का दावा करने वाले व्यक्ति आधारित बने छोटे दलों में कुलबुलाहट फिर शुरू हो गई है। विस चुनाव की आहट भांप अपने को महागठबंधन की छतरी तले बड़ा बनाने और दिखाने में जुटे इन छोटे और लगभग शून्य हैसियत वाले दलों की छटपटाहट भी आज बिखरी—बिखरी दिखी। शुक्रवार को पटना के पंचायत भवन परिषद में हुई इनकी संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में जहां जीतन राम मांझी गायब रहे, वहीं राजद ने महज कोरम पूरा करने के लिए अपने एक छोटे नेता को वहां भेज दिया।
एकजुटता बरकरार रखने की बेचैनी
साफ है कि महागठबंधन को बरकरार रखने की बेचैनी उन छोटे दलों में ज्यादा है, जिनका वास्तव में अभी तक कोई वजूद ही नहीं है। यही कारण है कि वाम दलों और महागठबंधन ने आज संयुक्त पीसी कर एकजुटता दिखाने की पूरी कोशिश की। लेकिन इस संयुक्त पीसी में आरजेडी का कोई बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ।
कुशवाहा, मुकेश साहनी की मजबूरी
महागठबंधन की संयुक्त पीसी में रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह, वीआईपी के मुकेश सहनी और वाम नेता शामिल हुए। आरजेडी ने कोरम पूरा करने के लिए पार्टी की तरफ से अर्जुन राय को भेज दिया। राजद से इसमें प्रदेश अध्यक्ष या महासचिव स्तर के किसी बड़े नेता का शामिल होना अपेक्षित था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जटिल सवालों का नहीं सूझ रहा जवाब
इस संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में महागठबंधन के जो भी नेता शामिल हुए, उन्होंने एक सूर से बिहार की नीतीश सरकार पर हमला बोला। अपराध, बेरोजगारी आदि इनके प्रमुख विषय रहे। लेकिन जब इनसे पूछा गया कि क्या विपक्षी एकता के लिए ये मुद्दे काफी हैं? क्या इन मुद्दों को आम लोगों तक जोरदार तरीके से ले जाने में महागठबंधन सक्षम है? मांझी जी कहां हैं? तेजस्वी कहां हैं? मीडिया वालों के इन जटिल सवालों पर कोई ठोस जबाव महागठबंधन के नेताओं के पास नहीं था।