एकाग्रता की पढ़ाई बगैर गुणात्मक शिक्षा बेमानी, एनआईटी में संगोष्ठी
पटना : ‘उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार: भारत केंद्रित’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में ऐसी शिक्षण पद्धति की वकालत की गयी जो छात्रों के मन को एकाग्र करे तथा उन्हें ज्ञान को व्यवहार में उतारने के योग्य बनाए। पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में रविवार को एनआईटी सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी में बिहार के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति भी उपस्थित थे।
बिहार के सभी विवि के वीसी हुए शामिल
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा का मूल आधार एकाग्रता है। लेकिन, शायद ही किसी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में एकाग्रता की शिक्षा दी जाती है। स्वामी विवेकानंद के एक वक्तव्य की चर्चा करते हुए कहा कि जिस शिक्षण संस्थान में एकाग्रता की शिक्षा दी जाती है, वहां के छात्र सम्पूर्ण जीवन दृष्टि के साथ एक सम्पूर्ण मानव बनते हैं। वे नौकरी पाने वालों की लाइन में नहीं खड़े होंगे और न बेरोजगारों की पंक्ति में खड़े होंगे।
व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली हो शिक्षा पद्धति
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की सभी समस्याओं एवं चुनौतियों का कारण चरित्र की कमी है। प्रकृति हमारी आवश्यकताओं को तो पूरा करती है लेकिन वह हमारी महत्वाकांक्षाओं को पूरी नहीं करती। चरित्र निर्माण से विमुख शिक्षा के कारण ही भ्रष्टाचार एवं अनाचार की समस्याएं पैदा हुई हैं। ऐसी शिक्षा हो जो व्यक्तित्व का समग्र विकास करे।
उन्होंने उच्च शिक्षा में शोध की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की। कहा कि शोध करने वाले छात्र अपने शोध के विषय का निर्धारण नहीं करते हैं। ऐसे में उनके द्वारा किए गए शोध की उपयोगिता व प्रामाणिकता संदेह के घेरे में होती है। भारत केंद्रित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब आध्यात्मिक शिक्षा है। आध्यात्मिकता का अर्थ भौतिकता की उपेक्षा नहीं होता, बल्कि जीवन मूल्यों के साथ उसका समन्वय एवं व्यापक हित के साथ जुड़ाव होता है। आध्यात्मिकता का मतलब जड़ता भी नहीं होता, बल्कि प्राचीन एवं आधुनिक का विवेकपूर्ण समन्वय होता है।
एनआईटी पटना के निदेशक प्रो. पीके जैन ने समारोह में शामिल अतिथियों का स्वागत किया। वहीं पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जीसीआर जायसवाल ने विषय प्रवेश कराया। प्रो. जायसवाल ने कहा कि प्राचीन काल से बिहार ज्ञान की भूमि रही है। आध्यात्मिक प्रकाश से ओतप्रोत बिहार में नालंदा व विक्रमशीला जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय थे। हमें अपने पूर्वजों से शिक्षा लेकर अपने शिक्षण पद्धति का पुनर्निर्माण करना होगा।
इस संगोष्ठी में महात्मागांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राठोर, मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरके वर्मा उपस्थित थे।