जाते—जाते ‘आज के नेताओं’ को बड़ी सीख दे गए जेटली

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नयी दिल्ली : जाते-जाते भी अरूण जेटली अपने व्यवहार से कुछ ऐसे मानक स्थापित कर गए, जो नैतिकता एवं मूल्य के रास्ते से भटक रही भारतीय राजनीति को सही राह दिखाते रहेंगे। बीमारी के कारण शारीरिक क्षमता में क्षरण और मृत्यु को नजदीक आते देख अरूण जेटली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर ‘मोदी—2.0’ सरकार में मंत्री पद की शपथ नहीं लेने की जानकारी दी थी। हालांकि प्रधानमंत्री उनके इस सुझाव को मानने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन अरूण जेटली ने अपनी अक्षमता की बात कहते हुए भारत सरकार के पैसे व मंत्री पद का दुरुपयोग नहीं होने देने की बात कही थी।

बीमारी को लेकर खुद त्यागा मंत्रीपद

बीमारी के बावजूद जेटली जी 2019 के आम चुनाव में भाजपा के लिए प्रमुख रणनीतिकार की भूमिका का निर्वहन करते रहे। भाजपा अपने बल पर स्पष्ट बहुमत को पार कर गयी। नरेंद्र मोदी की सरकार पहले से ज्यादा मजबूती के साथ वापस लौटी। चाणक्य के आदर्श जीवन को सामने रखते हुए जेटली ने स्वास्थ्य कारणों से मंत्रीपद लेने में अनिच्छा जाहिर की और अपने इस निर्णय पर अडिग रहे।

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सरकारी बंगला भी छोड़ा, नहीं ली कोई सुविधा

यही नहीं, अरूण जेटली ने अपना सरकारी बंगला भी छोड़ दिया। इससे भी आगे बढ़ते हुए पूर्व मंत्री और राज्यसभा सदस्य होने के नाते मिलने वाली सुविधाएं भी छोड़ दीं। वर्तमान समय में नेता अपनी इच्छा के बंगले और मुफ्त की सरकारी सुविधाओं के लिए सारी हदें पार कर जाते हैं। ऐसे में अरूण जेटली का यह व्यवहार भारत की राजनीति को नैतिकता व मूल्य की ओर लौटाने में सहायक होगा।

बंगला छोड़ने से पूर्व चुकाए बकाया बिल

ऐसे उदाहरण कम देखने को मिलते हैं, जब किसी ने खुद मंत्रीपद नहीं लेने का फैसला किया हो। चूंकि वे पिछली सरकार में नम्बर दो स्थान पर थे, तो नई सरकार में भी उन्हें वही सुख सुविधाएं मिलती जो उन्हें पूर्व की सरकार में हासिल हुईं थीं. लेकिन उन्होंने ये सब छोड़ दिया।अरुण जेटली ने सरकारी बंगला छोड़ने के पहले बिजली, पानी और टेलीफोन का बकाया बिल भी भुगतान कर दिया था। सरकारी आवास पर रोजाना आने वाले 25 अखबारों की कीमत का भुगतान कर उन्हें बंद करा दिया था।

स्टाफ के बच्चों को पढ़़ाया, विदेश भेजा

इतना ही नहीं, जेटली अपने निजी स्टाफ के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए भी चिंतित रहते थे।वे अपने स्टाफ के परिवार की देखरेख भी अपने परिजनों की ही भांति करते थे। यहां तक कि उनके कर्मचारियों के बच्चे चाणक्यपुरी स्थित उसी कार्मल काॅन्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं, जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं। अगर कर्मचारी का कोई प्रतिभावान बच्चा विदेश में पढ़ने का इच्छुक होता था तो उसे विदेश में वहीं पढ़ने भेजा जाता था, जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं। ड्राइवर जगन और सहायक पद्म सहित करीब 10 कर्मचारी जेटली परिवार के साथ पिछले दो-तीन दशकों से जुड़े हुए हैं। इनमें से तीन के बच्चे अभी विदेश में पढ़ रहे हैं।

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