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आर्थिक विकास के लिए बदला जम्मू-कश्मीर का भूगोल

प्राकृतिक सोन्दर्य से परिपूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत की आज़ादी के समय से ही भारत सरकार और भारतीय सैनिकों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ था। हाल ही में केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत मिले विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया है। यह विशेष दर्जा जम्मू-कश्मीर को अलग संविधान, अलग झंडा और दोहरी नागरिकता प्रदान करता था। इस विशेष राज्य के दर्जे के तहत जम्मू-कश्मीर को केन्द्र सरकार से विशेष अनुदान भी दिया जाता रहा है। पर इतने अनुदान और रियायतों के बाद भी जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों से विकास के मामले में काफी पीछे छूट जाता है। अन्य राज्यों की तुलना में जम्मू-कश्मीर को कई गुना अधिक राशि उपलब्ध कराई जाती है। इतनी रियायतों के बाद भी जम्मू-कश्मीर विकास की दौड़ में काफी पीछे छूट जाता है।

पंजाब, हिमाचल प्रदेश से जम्मू-कश्मीर की विकास की तुलना

अनुच्छेद 370 के चलते जम्मू-कश्मीर में निवेश नहीं आ पा रहा था। जिसके कारण जम्मू-कश्मीर आर्थिक रूप से पिछड़ता ही जा रहा था। जम्मू-कश्मीर के पिछड़े पन का अंदाजा हम उसके पड़ोसी राज्यों पंजाब और हिमाचल प्रदेश से तुलना कर लग सकते हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर कुल 2,22,236 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। पर जम्मू-कश्मीर के 1,01,387लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पाकिस्तान और चीन ग़ैर क़ानूनी तौर पर कब्जा कीए हुए है।  जम्मू-कश्मीर तीन भू-भागों में बटा हुआ है। कश्मीर 15,948 वर्ग किलोमीटर, जम्मू 26,293 वर्ग किलोमीटर और लद्दाख 59,146 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। भोगौलिक दृष्टि कोण से सबसे छोटा क्षेत्र कश्मीर, पूरे राज्य को मिलने वाले अनुदान का एक बड़ा हिस्सा ले लेता है। कश्मीर की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। कश्मीर घाटी में कई धार्मिक स्थल हैं जो प्रति वर्ष लाखों तीर्थयात्रियों को खींच लाता है।

क्षेत्रफल की दृष्टि कोण से जम्मू-कश्मीर पंजाब से चार गुणा अधिक बड़ा है। पर पंजाब की अर्थव्यवस्था जहां 5.18 लाख करोड़ की है, वहीं जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था पंजाब की अर्थव्यवस्था का एक तिहाई से भी कम है। जम्मू-कश्मीर के दूसरे पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से तुलना करें तो यहां भी हमें निराशा ही हाथ लगी है। जम्मू-कश्मीर भारत के कुल भू-भाग का 3.2 प्रतिशत है और भारत की कुल जनसंख्या का मात्र एक प्रतिशत। हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या और क्षेत्रफल दोनों ही जम्मू-कश्मीर से लगभग आधी हैं। पर जब बात प्रति व्यक्ति आय की आती है तो जम्मू-कश्मीर काफी पीछे छूट जाता है। हिमाचल प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय जम्मू-कश्मीर की तुलना में 48 प्रतिशत ज्यादा है। हिमाचल प्रदेश की तुलना में जम्मू-कश्मीर को केन्द्र सरकार से 24 प्रतिशत ज्यादा  अनुदान मिलता है पर आर्थिक सूचकांक में जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश से बहुत ही पीछे है।  वित्त मंत्रालय से पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में मंत्रालय ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर पिछले चार वर्षों से 10,489 करोड़ प्रति वित्तीय वर्ष दिया जाता रहा है, जो हिमाचल प्रदेश को दिए गए राशि का लगभग 2,000 करोड़ ज्यादा है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर को वर्ष 2006 से मार्च 2016 तक 1.06 लाख करोड़ रूपए मिले हैं वहीं हिमाचल प्रदेश को 53,670 करोड़ रुपए ही मिलें हैं। राष्ट्रीय आय में जम्मू-कश्मीर का हिस्सा निरंतर ही कम होता जा रहा है। वर्ष 1999 में जहां जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय आय में 0.85 प्रतिशत था वो कम होते हुए आज 0.7 प्रतिशत पर आई है।

उद्योग की कमी से बढ़ी बेरोजगारी

जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, हथकरघा और पर्यटन पर निर्भर करता है। यहां छोटे और कुटीर उद्योग मुख्य रूप से उधमपुर, कठुआ और कश्मीर में है। जहां कांच, रेशम, भवन निर्माण के उपकरण सहित कई जरूरत की चीजों का निर्माण किया जाता है। अनुच्छेद 370 होने के कारण राज्य में बड़े उद्योग नहीं आ पाते थे। साथ ही साथ राज्य में राजनीतिक अस्थिरता और आतंकी गतिविधियों के कारण राज्य में बड़े उद्योग और निवेश नहीं हो पा रहे थे।

हाल में केन्द्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी कर दिया है। अब जम्मू-कश्मीर में  निवेश की सम्भावना खुल गई है। अब नए व बड़े निवेश राज्य में निवेश कर सकेंगे जिससे राज्य के युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। राज्य में शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होगी । अब तब राज्य में प्राकृतिक संसाधन होने के बावजूद भी राज्य उसका सही मायने में उपयोग नहीं कर पा रहा था। राज्य भारत का एक मात्र केसर का उत्पादन करने वाला राज्य है। उन के उत्पादन में राज्य पुरे भारत में दुसरे स्थान पर है। जम्मू-कश्मीर में पाए जाने वाले विललो लकड़ी जिससे किक्रेट खेल में इस्तेमाल में आने वाली बैट का निर्माण किया जाता है उसकी काफी मांग है। अनुच्छेद 370 हटाएं जाने और राज्य को केन्द्र साशित प्रदेश में बदल दिए जाने के बाद अब जम्मू-कश्मीर सिधे केन्द्र सरकार के अधीन हो जाएगा। केन्द्र की सारी योजनाएं और कानून राज्य में लागू होंगी।

ख़ुलेंगे  नए अवसर लगेंगे उद्योग

जम्मू-कश्मीर में पुरे भारत की मात्र एक प्रतिशत ही जनसंख्या निवास करती है फिर भी केन्द्र सरकार राज्य को अन्य राज्यों से ज्यादा अनुदान दिया करती थी बावजूद राज्य में विकास नाम मात्र ही थी। जम्मू और लद्दाख ये दोनों ही शांत क्षेत्र है। कश्मीर जहां मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी है , काफी उथल-पुथल रहता है। केन्द्र से आए अनुदान का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा कश्मीर को चला जाता है। यहां रोड, शिक्षा, रोजगार और अन्य सुविधाएं लद्दाख और जम्मू से कहीं ज्यादा बेहतर है। अब केन्द्र सरकार राज्य के सभी क्षेत्रों का बिना किसी भेद भाव के विकास करेंगी।  जम्मू-कश्मीर  केन्द्र सरकार को कर नहीं दिया करती है क्योंकि राज्य की आय खर्च से कहीं ज़्यादा है। केन्द्र सरकार को उल्टे राज्य के बजटीय व्यय का 90 प्रतिशत देना पड़ता है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि कश्मीर जहां केन्द्रीय अनुदान का 90प्रतिशत खर्च होता है। वहां के लोग बिजली और पानी का टैक्स नहीं देते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि वे भारत के निवासी हैं ही नहीं इसलिए राज्य सरकार को यह सारा कर वहन करना पड़ता है।

राज्य में आर्थिक विकास के नए पहिए

राज्य में चल रही योजनाएं उद्धम पुर श्रीनगर बारामुला रेल लिंक योजना जो 3,564 करोड़ की लागत से तैयार हो रही है। विश्व की सबसे ऊंची रेल ब्रिज होगी। केन्द्र सरकार राज्य में सड़क निर्माण के लिए कई योजनाएं चला रही है। एनएच-1, बातोते किशवर सिंह पास के लिए 1,200 करोड़ और अन्य कई योजनाएं जल्द ही धरातल पर नज़र आएंगी। राज्य में सलाल पावर प्रोजेक्ट, दुलहस्ती जल विद्युत परियोजना, उरी प्रोजेक्ट व अन्य कई योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार ने राशि उपलब्ध करा दी है। राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है।

भेदभाव का होग अंत

अब तक जम्मू, लद्दाख और कश्मीरी पंडितों के साथ हो रहे भेदभाव का अन्त होगा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अब केन्द्र सरकार प्रभावी तरीके से इन क्षेत्रों का विकास कर पाएंगी।