पटना : ‘वादे वादे तत्व बोधा:’ अर्थात विचार—विमर्श से ही तत्व का ज्ञान होता है। ऐसा हमारे पूर्वजों ने स्थापित किया है। मुंडे मुंडे मति भिन्ना यानी अभिव्यक्ति का अधिकार हमारे यहां प्राचीन काल से है। कोई भी परिवर्तन रक्तपात से नहीं, बल्कि विचारों से होता है। उक्त बातें रविवार को बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने कहीं। वे राजभवन के राजेंद्रमंडपम में राष्ट्रीय शास्त्रार्थ सभा का उद्घाटन कर रहे थे।
अपने संबोधन में राज्यपाल ने भारतवर्ष की महान संस्कृति को रेखांकित करते हुए कहा कि एक समय जब हम दुनिया को ज्ञान बांटते थे और आज पश्चिम के ज्ञान पर निर्भर रहना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम अपनी ही चीजों को भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शाास्त्रार्थ सभा का आयोजन अपने आप में ऐतिहासिक है। जो लोग यहां उपस्थित हैं, वे इस बात के साक्षी होंगे कि शास्त्रार्थ क्या होता है। वे अपनी अगली पीढ़ी को गर्व से बता सकेंगे कि उन्होंने शास्त्रार्थ को जीवंत रूप में देखा है।
शास्त्रार्थ सभा को संबोधित करते हुए बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने राज्यपाल की पहल की सराहना करते हुए कहा कि भारत की महान शास्त्रार्थ परंपरा को जीवंत रूप में देखने का अवसर हमें मिल रहा है। उन्होंने इतालवी वैज्ञानिक गैलिलियो गैलिली की चर्चा करते हुए बताया कि उसने सूर्य को स्थिर बता दिया, तो यूरोप के तथाकथित विकसित लोगों ने उन्हें फांसी की सजा दी, क्योंकि बाइबिल में सूर्य को पृथ्वी के चारों ओर घूमने वाला बताया गया है। इसके मुकाबले हमारे यहां शास्त्रों में वर्णित तथ्यों पर खुलकर विमर्श और बहस होता रहा है। हमारी संस्कृति रही है कि हम कालबाह्य चीजों का बहिष्कार एवं पुरानी चीजों को युगानुकुल बनाकर अंगीकार करते हैं। शंकराचार्य के साथ मंडन मिश्र व उनकी पत्नी भारती के शास्त्रार्थ की चर्चा बिहार के लोक में होती है। हम रूढ़ियों में जकड़ गए, इसलिए पतन शुरू हुआ।
स्वागत संबोधन में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. सर्वनारायण झा ने कहा कि स्वातंत्रोत्तर भारत में शायद यह पहला अवसर है जब राज्यपाल के स्तर पर इस प्रकार के शास्त्रार्थ का आयेाजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब भी संस्कृत और शास्त्रार्थ का इतिहास लिखा जाएगा, तो इस आयोजन का जिक्र अवश्य होगा।
उद्घाटन के बाद मिथिला परंपरा के प्रो. शशिनाथ झा और प्रो. सुरेश्वर झा के बीच ब्रहं सत्यं जगत मिथ्या पर शास्त्रार्थ हुआ। उसके बाद काशी के प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी और रामपूजन पांडेय के बीच न्यायशास्त्र पर शास्त्रार्थ हुआ। तीसरा और अंतिम शास्त्रार्थ दक्षिण के श्रीपाद सुब्रमण्यम और सीआर वासुदेवन के बीच हुआ।