पटना : बिहार में लाख कोशिशों के बावजूद क्राइम कंट्रोल से बाहर है। सीएम से झाड़ सुनने के बाद डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने खुद मोर्चा संभाला। कई स्तर पर वरिष्ट अधिकारियों की टीम बनाई। जेम्मेदारी फिक्स की। खुद भी थानों की गश्त पर निकले। लेकिन एक महीने तक तमाम कोशिशों के बाद जो नतीजा सामने आया वह कल डीजीपी के फेसबुक पर लाइव पीड़ा के रूप में उनकी मजबूरियों का दर्द बयां कर गया। डीजीपी की इस पीड़ा ने दीमक बने महकमे के भीतर क्राइम कनेक्शन का राज भी बाहर कर दिया। आइए जानते हैं क्या है डीजीपी की मजबूरी? क्यों वे चाहकर भी अपनी ही पुलिस से वह काम नहीं ले पा रहे जो क्राइम कंट्रोल के लिए वे लेना चाह रहे हैं।
राजनीति, गुटबाजी और बेलगाम अफसरशाही
बिहार में राज्य सरकार के काम करने का अपना तरीका है। लालू के दौर में जहां अफसरशाही का मनोबल तोड़ कर काम लेने की संस्कृति रही, वहीं नीतीश कुमार ने अफसरों को खुली छूट दी। नतीजा भी सामने आया और सुशासन नीतीश कुमार की यूएसपी बन गई। लेकिन जिस तरह ‘पॉवर’ निजाम को ताकत देता है, उसी तरह absolute पॉवर’ निजाम को अनियंत्रित भी कर देता है। नीतीश के बाद के काल में बिहार की अफसरशाही में धीरे—धीरे एक ट्रेंड डेवलप हुआ। इसमें विभिन्न विभागों और पुलिस में ऐसे पदाधिकारियों को बैठाया गया जो अपने मंत्रियों—प्रमुखों के अलावा डाइरेक्ट सत्ता शीर्ष को भी रिपोर्ट करते थे। ऐसा ही कुछ पुलिस में भी हुआ। पुलिस महकमे में इन ‘लाडले’ अफसरों की हनक बढ़ गई। यहीं absolute ‘पॉवर’ ने पुलिस महकमे में करप्शन का साथ पकड़ लिया।
शराबबंदी, बालू और भूमि माफिया से गठजोड़
शायद डीजीपी ने भी ऐसे ही अफसरों की तरफ अपने फेसबुक लाइव में इशारा किया। इन ‘टांग खींचने वाले अफसरों’ का कनेक्शन शराब, बालू, भू—माफिया से बने। पिछले माह जब मुख्यमंत्री ने क्राइम के बढ़ते ग्राफ पर पुलिस महकमे की क्लास लगाई तब डीजीपी ने चार वरिष्ठ अफसरों की ‘डीजी टीम’ बनाई जिसे सतत क्राइम कंट्रोल की मॉनिटरिंग करने की जिम्मेदारी दी गई। एक महीने के दौरान जब इस टीम में शामिल अफसरों के कार्यों की समीक्षा की गई तब डीजीपी ने इनके तौरतरीकों से नाखुश होकर इन्हें भी कार्रवाई की जद में लाना शुरू कर दिया। नतीजतन एडीजी स्तर के कई अफसरों—यथा कुंदन कृष्णण, डीएसगंगवार, गणेश कुमार, रत्नसंजीव को इधर—उधर किया गया। इसके बाद इन सभी अफसरों की टीम ने अंदर ही अंदर डीजीपी के खिलाफ एक अघोषित मोर्चा खोल दिया। सभी एक—दो दिन बाद सीएम की होने वाली क्राइम समीक्षा में डीजीपी को घेरने की जुगत में लग गए हैं।
डिजरैली की राह चले डीजीपी, जनता से की अपील
इधर इन सारी गतिविधियों से वाकिफ पुलिस प्रमुख गुप्तेश्वर पांडेय ने भी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे डिजरैली की नीति अपनाई—यानी जब कोई कुछ नहीं सुने, आपके हाथ बंधे हुए हों तथा विकल्प सीमित हों, तब लोकतंत्र में सीधे जनता के पास जाना चाहिए। डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने भी यही किया। उन्होंने अपने फेसबुक लाइव में इन टांग खींचने वाले अफसरों की चौकड़ी पर हमला करते हुए जनता के सामने सारी बातें ईशारों—ईशारों में रख दी। ऐसे में सुशासन के लिए छटपटा रहे बिहार में डीजीपी की इस पीड़ा और जनता की सीधी भागीदारी की अपील का क्या असर होता है, यह देखने वाली बात होगी।