योग अपने शाब्दिक अर्थ के अनुसार सब को जोड़ता है। आपके शरीर को मन से, आपके आस पास के वातावरण को आपसे, आपको इस सृष्टि से और आपके आत्मा को परमात्मा से। योग एक तकनीक है, जो हमारे मन और आत्मा को एक करती है। यह हमारे अंदर से तनाव और बेचैनी को दूर करता है, जिससे हमारा मन शांत रहता है और हम खुद को प्रसन्न पाते हैं।भगवत गीता के अध्याय छः में कहा गया है कि हम संसार में जितने भी कर्म करते है, उसके लिए कौशल प्रदान करने वाली विधा ही योग है।
अगर हमारा मन और शरीर एक साथ नहीं है, तो वह योग नहीं है। ऐसी स्थिति में हमारे शरीर में संचित ऊर्जा का सिर्फ क्षय होता है। योग हमारा सर्वांगिक विकास करता है। यह हमारे शरीर, मन, बुद्धि,आत्मा और प्राण के बीच समन्वय का कार्य करता है। इसका प्रभाव हमारे अंग से लेकर कोशिकाओं तक होता है। यह सिर्फ हमारे शरीर हीं नहीं बल्कि मन को शांत, बुद्धि को तीव्र भी करता है। विश्व के एकलौते पूर्णतः योग विश्वविद्यालय ‘स्वामी विवेकानंद योग अनुसन्धान संसथान’ में एक अनुसन्धान के बाद बताया गया कि योग का शरीर और मन ही नहीं बल्कि कोशिकाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को सूक्ष्मता से दूर करता है। इससे यह साबित होता है कि योग एक उच्च कोटि का विज्ञान है, जो विश्व को भारत द्वारा उपहार स्वरुप दिया गया है।
अगर हम निरंतर योग करते हैं तो हम कई बीमारियों और दुष्विचारो से खुद को दूर पाते हैं। श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि सृष्टि के साथ जुड़ाव का विज्ञान हीं योग है। वो बताते हैं कि हमें सृष्टि के हरेक चीज के साथ जुड़ना चाहिए। अगर हम सुबह उठते है और सूर्य प्राणायाम करते हैं तो हमें कई तरीको से इसका लाभ मिलता है। हमारे शरीर में विटामिन डी की प्राप्ति होती है, शुद्ध हवा श्वास लेने के लिए मिलती है।
(सुचित कुमार)