पटना : 2019 के लोकसभा चुनाव में अटूट नज़र आ रहे एनडीए गठबंधन की गांठ ढीली होने लगी है। मोदी कैबिनेट में जदयू की सांकेतिक भागीदारी से शुरू हुआ मामला अब नीतीश कुमार द्वारा केंद्र सरकार के हर स्टैंड पर ठीक अपोजिट खड़े होने के रूप में सामने आ रहा है। फिर चाहे वो मसला कश्मीर में धारा 370 का हो या राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पर जदयू के नये स्टैंड का।
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री की यूएसपी भले सुशासन बाबू के नाम से है, पर राजनीतिक दलबदल के मामले में वे मौसम वैज्ञानिक नहीं, बल्कि मौसम को पलटने वाले पलटीमार माने जाते हैं। नीतीश कुमार की पॉलिसी रही है कि वे ज्यादा शोर नहीं मचाते। बस हल्की चिंगारी देते हैं और उसे पकने देने का इंतजार करते हैं। भाजपा-जदयू में हालिया नोंकझोंक फिलहाल सतही जरूर है, पर आगामी विधानसभा चुनाव तक इसके परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं।
ताजा सियासी घटनाक्रम पर बिहार के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जदयू खुल कर अपनी नाराज़गी जाहिर नहीं कर रहा, पर पार्टी स्टैंड की आड़ में भाजपा पर दबाव बनाने की जुगत जरूर कर रहा है। हालांकि, भाजपा जो पूर्ण बहुमत से लौटी है, उस पर कुछ खास असर अभी तो नहीं हो रहा। लेकिन उसके लिए नीतीश अब 2014 से पहले जितने विश्वसनीय भी नहीं रहे। बहरहाल, भाजपा और जदयू दोनों अपना विनिंग कॉम्बिनेशन 2020 के विधानसभा चुनाव तक तो जरूर बरक़रार रखना चाहेंगे। लेकिन जब पार्टी विस्तार की बात आएगी तो भाजपा और जदयू के बीच टकराव भी अपेक्षित है।
नीतीश कुमार ने इस बात का स्पष्टीकरण दिया था कि एनडीए के अन्दर सब कुछ ठीक है। सही भी है। पर अगर असेंबली चुनाव तक राजनीतिक मूड एनडीए से अलग जाता दिखा तो नीतीश कुमार फिर से एक नए गठबंधन का हिस्सा बनते दिख सकते हैं। माना तो यह भी जाता है कि सोशल इंजीनियरिंग में माहिर सुशासन बाबू किसी खास तबके के वोट पर आश्रित नहीं होते। वो जिस भी गठबंधन से जुड़ते हैं, उसका फायदा उन्हें मिलता है।
सत्यम दुबे