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चुनाव कैंपेन में star रहे किसानों को दिखने लगे ‘दिन में तारे’

पटना : मॉनसून की लेटलतीफी और लगातार तीसरे साल औसत वर्षा दर में आई गिरावट से बिहार के 33 जिलों में हाहाकार मचना शुरू हो गया है। यहां न सिर्फ कृषि, बल्कि पीने के पानी की भी किल्लत होने लगी है। मई महीने में बिहार के 5 जिलों को छोड़ कहीं भी सामान्य वर्षा भी नहीं हुई। आंकड़ों की मानें तो इस सूखे से धान के रकबे में 10 फीसदी का नुकसान और इस कारण किसानों को 175 करोड़ का नुकसान संभावित है।

चिंतित सरकार, वर्षा न होने से बेहाल किसान

हाल ही में पटना के ज्ञान भवन में आयोजित पर्यावरण संरक्षण समारोह के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इशारों-इशारों में इस बार बिहार में मानसून के देर से आने के प्रति आगाह किया। सीएम ने बिहार में औसत वर्षा दर में कमी आने का अनुमान भी लगाया। जाहिर है बिहार में सूखे की समस्या विकराल होने के पूरे आसार नजर आने लगे हैं। कयास लगाया जा रहा था कि मई तक मानसून बिहार में दस्तक दे देगा। लेकिन जहानाबाद, पूर्णिया, और कोसी को छोड़ प्री—मानसून की बारिश का नामोनिशान नहीं है। हालांकि बिहार में मानसून 1 से 20 जून के बीच पहुंच जाता है जब रोहिणी नक्षत्र के ख़त्म होते ही अद्रा नक्षत्र चढ़ता है।

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति पर, नहीं पड़े धान के बिचडे

मुख्यमंत्री ने सम्बोधन में बताया था कि अमूमन मानसून 15 जून तक बिहार में दस्तक दे देता है। लेकिंन पिछले कुछ सालो में यह देरी से पहुंच रहा है। इससे फसल की कटाई-बोआई सही समय पर नहीं हो पाती। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो बिहार में इस बार मानसून 21 से 22 जून तक आने के आसार दिख रहे हैं। ऐसे में इस बात की चिंता बढ़ सकती है कि राहिणी नक्षत्र समाप्ति पर है और अभी तक धान के बिचडे नहीं डाले गए। चूंकि धान की रोपनी का काम जुलाई महीने में शुरू हो जाता है, पर इस वर्ष भी प्री-मानसून के दौरान वर्षा के नदारद होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सारण, सिवान, भोजपुर के क्षेत्र हों या रोहतास, पटना और चम्पारण, इन सभी जिलों में अब तक 5 मिलीमीटर की वर्षा भी नहीं हुई है।

पटना प्रमंडल के 7 जिलों का बुरा हाल

पटना प्रमंडल में कुछ जगहों को छोड़ दें तो जिलों में स्थिति अलार्मिंग हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि छह जून तक पटना में कम से कम 12 मिलीमीटर वर्षा हो जानी चाहिए थी। जबकि अभी तक 1 मिलीमीटर वर्षा भी नहीं हो सकी है। कमोबेश यही स्थिति राज्य के अन्य जिलों में भी है। पटना प्रमंडल के कुछ जिलों में मई में कुछ वर्षा जरूर हुई थी पर जून में जैसे अकाल सा पड़ गया है। जमीन में जगह-जगह दरार दिखने लगी है।

गंगा-तटीय क्षेत्रों में भी भारी समस्या

बिहार के उन क्षेत्रों में समस्याएं और भी गंभीर हैं, जहां गंगा नदी की पहुंच नहीं है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि बिहार में औसत वर्षा दर की कमी से निबटने के लिए सरकार ने कई जरूरी कदम उठाये हैं। जलाशयों के निर्माण से लेकर बिजली आपूर्ति का प्रबंध भी कर लिया गया है। हालांकि बिहार के उत्तर-पूर्वी इलाकों में पानी की समस्या तो होती ही है, पर हाल के दिनों में यह समस्या बिहार के मगध क्षेत्रों में और अंग क्षेत्रों में भी लगातार देखने को मिल रही है। नवादा, जमुई, जहानाबाद या फिर मुंगेर, लखीसराय हो या भागलपुर, इन सभी क्षेत्रों में जलस्तर नीचे गिर गया है। जमीन सूख रही है। बिहार में खेती का बड़ा भाग अब भी मानसून पर टिका हुआ है। पीने के पानी की समस्या भी खड़ी हो चुकी है। ऐसे में बिहार को सूखा से निबटने के और भी तरीके निकालने होंगे।

क्या है समस्या का बड़ा कारण

कृषि और ठोस अपशिष्टों को जलाना बिहार में बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। वायु प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण ठोस अपशिष्ट को जलाना ही है। वायु प्रदूषण का असर ही है कि बिहार में कई इलाकों का पारा 47 डिग्री के पार तक जाने लगा है। सूखे की समस्या से बिहार को हर साल हजारों टन फसलों का नुकसान तो होता ही है, पर इसके अलावा बिहार सरकार को एक बहुत बड़ी राशि अनुदान में देनी पड़ती है। वो राशि जिसे विकास के कार्य में खर्च किया जा सकता था। स्पष्ट है कि पर्यावरण संरक्षण न करने का खामियाज़ा हमें भारी नुकसान देने लगा है। धान की खेती से लेकर किसानों के क़र्ज़ में डूब जाने तक की भयावह स्थिति इस सूखे की तीव्रता बढ़ा सकती है। राज्य सरकार के आंकड़ें ये कहते हैं कि अगर धान का समर्थन मूल्य 1750 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से रख कर भी आंकलन करें तो तकरीबन 175 करोड़ का बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। बिजली आपूर्ति शायद थोड़ी सुगमता पहुंचा सके, पर 70-80 फ़ीसदी खेती तो मानसून पर ही निर्भर है। ऐसे में राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं।

सत्यम दुबे