बापू से मिलना हो, तो गांधी संग्रहालय आइए

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पटना : वर्तमान में यदि महात्मा गाँधी के बारे में जानना हो और इतिहास के पन्नों में झांकना हो, तो गाँधी संग्राहलय से अच्छा कोई स्थान नहीं है। यहां एक ही छत के निचे गाँधी की जीवन की सारी झलकियां देखने को मिल जाएगा। बापू के जीवन यात्रा की अद्भुत झलकियां गाँधी संग्रालय में देखने को मिलती है।

 

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जब आप संग्राहलय के गेट से प्रवेश करते हैं, तो सबसे पहले गाँधी-टैगोर मंडप मिलेगा जिसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है। जैसे दोनों अभी-अभी एक साथ बैठ किसी बात पर मंत्रणा कर रहे हो।

जब आप थोड़ा आगे बढ़ेंगे तो टेरकोट के चित्र के माध्यम से बच्चपन से लेकर जीवन के अंतिम दौर तक को दर्शाया गया है। थोड़ी आगे बढ़ाने पर सत्याग्रह-शताब्दी-स्मृति मंडप मिलेगा जो दक्षिण अफ्रीका सत्याग्रह की सफलता की स्मृति 2006 में बना है। इसके थोड़ी दूर पर तीन महापुरुष की परिणति भवन मिलेगा जिसमें बुद्ध, ईसा मसीह और महात्मा गाँधी के अंत को दर्शाया गया है। इसे प्रसिद्ध चित्रकार उपेंद्र महारथी द्वारा बनाया विश्व प्रसिद्ध चित्र को फ्लैक्स बोर्ड पर प्रिंट कर लगाया है। वहीं सत्य की खोज मूर्ति में गाँधीजी को माइक्रोस्कोप से सूक्ष्म कीटाणुओं की गतिविधि का अध्ययन करते दर्शाया गया है। वहीं वर्तमान पुराने भवन से उत्तर और नये भवन से पश्चिम एक पार्क है जहाँ चरखा काटते गांधीजी की एक बड़ी प्रतिमा लगाई गई है। यहां देश के नव-निर्माण के लिए “स्वराज्य” की रुप-रेखा तैयार की थी। जिसमे एकादश-व्रत प्रमुख थे।

गाँधी संग्रहालय स्वर्ण जयंती एवं चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी स्मृति भवन


यह चम्पारण सत्याग्रह के सौ वर्ष 2017 पूरा होने पर गाँधी संग्रहलय, पटना अपनी गोल्डेन जुबली मनाया उसकी यादगार स्वरूप यह पहला भवन बना।

देवघर-बैद्यनाथ धाम मंडप

जब अछूत उद्धार, छुआछूत निवारण और हरिजनों के मंदिरों में प्रवेश के अभियान के क्रम में 25 अप्रैल 1934 को गाँधीजी देवघर पहुंचे थे।, तो सनातनी पंडों ने उनपर जानलेवा हमला किया। जिस काली रंग की गाड़ी पर पंडों ने हमला किया था। वह समय बीतने के साथ वह टूटने लगा, इसलिए उस ढांचे को स्मृति के तौर पर गाँधी संग्रहालय पटना मंगवा लिया गया। उसी के स्थायी रूप देने के लिए देवघर-बैधनाथ धाम बनाया गया।

पुस्तकालय

गाँधी संग्रहालय में पुस्तकालय मूल गाँधी और अपने 25 हजार पुस्तकों के साथ डॉ बीपी सिन्हा, प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद, आचार्य शिवपूजन सहाय, आचार्य रंजन सूर्यदेव, डॉ नवल किशोर नवल, उपेंद्र महारथी, डॉ प्रभाकर सिन्हा, डॉ रामचंद्र पूर्व, श्रीकांत, चंद्रप्रकाश सिंह, डॉ बीपी सिंह, के किताबों के कलेक्शन के साथ 1970 के बाद से अब तक के अख़बारों के संकलन है। जिससे रिसर्च स्कालर्स के लिए पुस्तकालय में विशेष व्यवस्था है।

जब गाँधी संग्रहालय के निर्देशक आसीफ वसी से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि गाँधी संग्राहलय में गांधीजी से संबधित उनके बच्चपन से जीवन के अंतिम क्षण की सारी सामग्री यहां पर है। 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को यहां पर स्कूली और कॉलेज के छात्र-छात्रों से लेख, भाषण, कविता, संगीत, पेंटिग की प्रतियोगिता कराया जाता है। शोधार्थोयों के लिए पुस्तकाय में विशेष व्यवस्था है।

गाँधी संग्रालय में जय प्रकास जो 20 साल से अपनी सेवा दे रहे है, वह बताते है की यहां गाँधी को गहराई से जानने वाले आते रहते है। खास कर स्कूली बच्चें गर्मी के छुट्टी में या फिर स्कूल की तरफ से भ्रमण के लिए आते है। और गाँधी को जानते और उनके विचारों को जानते है। संग्रालय में रखी वस्तुओं को आश्चर्य से पूछते है की ये क्या है। हमें भी बताने में अच्छा लगता है। जब अनवर अली से बात की तो हँसते हुए कहते हैं, जब से संग्रालय बना है तभी से गाँधी जी की नौकरी कर रहे है। यहां इतने दिनों से काम कर अच्छा लग रहा है। लोग घूमने आते है और गाँधी जी को जानने की कोशिश करते हैं। गांधी संग्रहालय में प्रवेश नि:शुल्क है। सोमवार को यह संग्रहालय बंद रहता है।
(वंदना कुमारी)

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