बिक्रमगंज/पटना : मोदी लहर पर सवार होकर काराकाट से पिछले चुनाव की वैतरणी पार करने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने 2019 में यहां खुद ही खाई खोद ली है। दूसरे उन्हें सबक सिखाने के लिए सीएम नीतीश कुमार ने भी कमर कस ली है। आलम ये है कि काराकाट सीट बचा पाना कुशवाहा के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। इसीलिए वे इस बार काराकाट के अलावा उजियारपुर से भी चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं स्थानीय होने के कारण जदयू उम्मीदवार महाबली सिंह अपने स्तर से भी उपेंद्र की नींद हराम किये हुए हैं। ज्ञात हो कि नए परिसीमन के बाद काराकाट सीट पर अब तक हुए दो चुनावों में एनडीए का दबदबा रहा है।
ताकत के सही आंकलन में चूक गए कुशवाहा
रालोसपा प्रत्याशी उपेन्द्र कुशवाहा ने 2014 की अपनी जीत खुद की मेहनत का नतीजा मानते हुए अपने दल के लिए ज्यादा सीटों की चाहत में एनडीए से नाता तोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया। यहीं वे बड़ी चूक कर गए। दरअसल वे इस सच्चाई को नहीं पहचान पाए कि 2014 की उनकी जीत मोदी लहर के कारण ही हुई थी। लेकिन इस बार वे महागठबंधन के साथ हैं। इससे जातीय समीकरण भी पलट गया है। मौजूदा चुनाव एक तरह से उनकी ताकत की असली तस्वीर पेश करेगी। उधर कुशवाहा द्वारा दो सीटों से चुनाव लड़ने पर एनडीए नेताओं का कहना है कि वे हार से डर गए हैं। अगर उन्हें काराकाट में जीत का भरोसा है तो उजियारपुर से चुनाव लड़ने की क्या जरूरत है।
जदयू के महाबली सिंह की राह हुई आसान
जदयू ने इस बार भी काराकाट से महाबली सिंह को एनडीए का उम्मीदवार बनाया है। वे 2009 में एनडीए से ही जदयू के टिकट पर लगभग 20 हजार वोटों से विजयी हुए थे। 2014 में भी महाबली सिंह जदयू के टिकट पर काराकाट से लड़े थे, लेकिन तब वे एनडीए का हिस्सा नहीं थे और उन्हें महज 76 हजार वोट ही आए थे। लेकिन इसबार बाजी पलट गई है। अब वे एनडीए का हिस्सा हैं। काराकाट संसदीय क्षेत्र में सवर्ण और यादव वोटरों का दबदबा है। मुस्लिम और कुशवाहा वोटर्स यहां गेमचेंजर साबित हो सकते हैं। यहां सवर्ण करीब 20%, यादव-16%, मुस्लिम-11% और कुशवाहा वोटरों की आबादी 8 प्रतिशत है।
बालू के मुद्दे ने महागठबंधन का बढ़ाया दर्द
डिहरी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा से यादव उम्मीदवार इंजीनियर सत्यनारायण सिंह की मौजूदगी और राजद की कांति सिंह का टिकट कटने से इस जाति के वोटरों की नाराजगी महागठबंधन और उपेंद्र कुशवाहा को भारी पड़ रही है। मल्लाह वोटर यहां खुलकर महाबली सिंह के पक्ष में हैं। यहां सोन में बालू उत्खनन को लेकर मल्लाहों और यादवों के बीच लड़ाई जगजाहिर है। ऐसे में काराकाट में जहां एनडीए के महाबली सिंह काफी सुखद स्थिति में हैं, वहीं कुशवाहा और महागठबंधन के लिए अपने कुनबे के वोटरों को एकजुट रखना मुश्किल हो गया है।
नीतीश ने की कुशवाहा की खास घेराबंदी
उपेंद्र कुशवाहा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच की कड़वाहट ने भी काराकाट सीट को हाईप्रोफाइल बना दिया है। नीतीश कुमार खुद इस सीट पर किसी भी कीमत पर कुशवाहा को हराने के लिए खास रुचि ले रहे हैं। जदयू के एनडीए में शामिल होने के बाद से कुशवाहा लगातार नीतीश पर हमलावर थे। अब नीतीश उन्हें यहां पटखनी देने में पूरा जोर लगा रहे हैं। नीतीश ने राजपूत, भूमिहार सहित जहां सवर्ण वोटरों को एनडीए के पक्ष में बांधे रखने के लिए अपने कई लोगों को लगा रखा है। यहां राजपूतों की संख्या दो लाख से अधिक है। कुशवाहा, मल्लाह और दलित वोटरों में भी एनडीए सेंधमारी लगाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। साफ है कि काराकाट में सवर्ण, वैश्य, कुर्मी और महादलित वोटरों के बड़े वर्ग को यदि जोड़ दें तो एनडीए अपने विरोधी पर भारी साबित हो रहा है।