बचपन से आज तक जब कभी भी निराश हुआ, माँ ने दिया हौसला। मुझे आज भी याद है, हमारे घर से विद्यालय थोड़ी दूर पड़ता था और रास्ते में एक पागल रहता था जिससे मुझे काफी डर लगता था। मैं उसके डर से विद्यालय जाना नहीं चाहता था। फिर माँ ने काफी समझाया। मुझे गोद में बैठाकर कहा कि वो भी एक इन्सान है और उसको भी किसी माँ ने हीन जन्म दिया होगा। उसकी माँ का प्यार उसको नहीं मिल पाया, सो उसके बाल बिखरे हैं। दाढी बड़ी—बड़ी है और वह मैले कुचैले कपडे पहनता है। लेकीन वह बुरा नहीं। मैं अगर उससे प्यार से बात करूं तो वह मुझे नहीं डरायेगा। फिर माँ रोज मुझे उसको खिलाने को कुछ देती और मैं उसको अपने हाथों से खिलाता था। और वो मुझे परेशान नहीं करता था। फिर एक दिन मेरे पिताजी भी मेरे साथ गए और उसकी दाढ़ी वगैरह कटवाई। नये कपडे दिए और भरपेट खाना खिलाया। और फिर पिताजी ने उसके घर परिवार का पता लगा कर समझाया बुझाया और इलाज करवाने को कहा। कुछ दिनों बाद उसके परिवार वाले उसे ले गए। आज उस व्यक्ति की मानसिक स्थिती काफी हद तक सुधर गयी है।
पिता की मृत्यु के बाद परिवार का पालन—पोषण
पिताजी को डाईबटीज थी लो शूगर के साथ साथ हाईपर टेंशन और यूरिक एसीड की भी समस्या थी एक लम्बे समय अंतराल से पिताजी बीमार चल रहे थे और अचानक एक रात ब्लड में शुगर नील होने कि वजह से उनकी मौत हो गयी। घर की माली हालत बेहद खराब हो गयी हम दाने दाने को मोहताज हो चुके थे और सौतेली माँ ने संपती में हिस्से के लिए केस बी ही कर दिया था पर माँ हिम्मत नहीं हारी और प्राईवेट स्कूल में व् ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। महीने का दो हजार स्कूल वाले तनख्वा देते थे और कुछ पैसे ट्यूशन से आ जाते थे । माँ दिन रात मेहनत करती थी।
माँ का बस एक हीं सपना था बच्चों को शिक्षित बनाना। एक योग्य और काबील इन्सान बनाना।
माँ और बाप दोनों किरदार निभाया
सुबह चार बजे जगना हमारे लिए खाना वगैरह बनाना फिर हमें तैयार करके स्कूल भेजना। स्कूल से आने पर रात को माँ हम सभी भाई बहनों की कॉपी चेक करती थी दिन बहे का हिसाब किताब माँ बहुत गहन रूप से जानती थी। फिर बेटियाँ बड़ी हुयी और माँ ने भली भांती अपनी जिम्मेदारी निभाई दोनों बेटियों की शादी आदर्श हुयी और दोनों के पती बिहार पुलिस में दारोगा के पद पर कार्यरत हैं।
माँ का थप्पड़ आज भी है याद
माँ ने सिखाया मेहनत करना कमाना और खुद अपने पैरों पर खड़े होना। मुझे हमेशा से बाईक राईडिंग का बड़ा शौक था ,एक बार अपने दोस्त की बाईक पर मैं तेज रफ़्तार में जा रहा था और पीछे डो दोस्त और बैठे थे। माँ की नजर पड गयी। घर पहुंचा तो माँ की आँखों में आँसू थे मैंने पूछा माँ क्या हुआ। इतने में माँ ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल पर जड़ दिया और जोर जोर से फूट फूट कर रोने लगी। फिर मैं माँ के पास गया पूछा की बचपन से आज तक कभी हाथ नहीं उठाया पर आज ये थप्पड़ क्यों माँ …..? माँ ने कहा तू गरीब का बेटा है। तेरी हैसियत नहीं जिस काम को करने की वो क्यों करना भला जब तेरी अपनी बाईक नहीं तो फिर दूसरों की बाईक पर क्यों मटरगस्ती करता है तू। मुझे खुशी उस दिन होगी जब तू चार पैसे ईमानदारी से कमा कर खुद अपने पैसों से बाईक खरीदेगा फिर गर्व से मेरा कलेजा चौड़ा हो जाएगा।
वो मेरी जिन्दगी का सच में बहुत बड़े परिवर्तन का दिन था और वहां के बाद मेरी जिन्दगी बदलनी शुरू हुयी। मैंने काम करना शुरू किया।
माँ ने सिखाया अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना; अधिकार के लिये लड़ना और जिन्दगी में एक निडर योद्धा की तरह अत्याचारियों से आर पार का युद्ध लड़ना। हर इन्सान केवल अपने विषय में सोचता है माँ ने मुझे लोगों समाज देश और दुनियाँ के बारे में सोचना सिखाया। गरीबों मजलूमों बेसहारों की मदद करना उनके अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया। माँ ने कहा राजनीती से परे जाती धर्म सम्प्रदाय से अलग कमजोर लोगों का एक संगठन बनाओ और उनके अन्दर ताकत भरो शोषण करने वाले दबंग और बर्बर लोगों से मुकाबला करने को गरीबों बेसहारों मजदूरों किसानों का एक ऐसा भयंकर संगठन बनाओ जो देश और समाज में कुकुरमुत्ते जैसे फैले असमानता सामंतवाद दादागिरी भ्रष्टाचार अपराध आतंकवाद महिला उत्पीड़न बाल मजदूरी बाल यौन शोषण महिला अत्याचार छेड़खानी अन्धविश्वास जात पात और सामाजिक धार्मिक कुरितियों की जड़ें उखाड़ कर फेक दे। माँ ने हौसला दिया और मेरे इरादों को हवा मिल गयी चिंगारी सुलग उठी और आक्रोश सैलाब बन कर फूट पडा।
युवा संघर्ष सेना नाम से मैंने एक सामाजिक संगठन बनाया और फिर गाँव गाँव गली गली जा जा कर लोगों की समस्याएं सुनने लगा जानने लगा समझने लगा और उनके लिए लागातार काम करता आ रहा हूँ। बेहद कम समय में शुरू हुए इस संगठन में आज बिहार के अलग अलग जगहों काफी बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे हैं और वह दिन दूर नहीं जब हर व्यक्ती इस संगठन से जुड़ कर समाज की पूर्ण रूपेण सेवा करेगा।
माँ ने सिखाया लिखना
आज जो भी हूँ अपनी माँ के बदौलत हूँ। माँ नहीं तो मेरा वजूद कहाँ। माँ को साहित्य से हमेशा से प्रेम रहा है माँ मुझे बचपन से कोइ विषय डे देती थी और उसपर लिखने को कहती थी। फिर मुझे समझाती थी घुमाती थी नये नये दृश्य दिखाती थी सामाजिक समस्याओं पर माँ मुझसे चर्चा करती थी। धीरी धीरे माँ ने जगाया मेरे अन्दर के एक कलमकार को।
सच में माँ वो मूर्तिकार है जो हमें हमसे ज्यादा जानती है साथ साथ हमारे जीवन का हर एक पल हर लम्हा माँ हीं गढ़ती है। चाहे हजारो लाखों रिश्ते बन जाए टूट जाएँ पर माँ की जगह न कभी कोइ ले सकता है न कभी कोइ माँ की बराबरी कर सकता है। मेरी माँ को नतमस्तक हो कर मेरा कोटी कोटी प्रणाम।
माता का नाम:- रंजना झा,हाई स्कूल रोड फारबिसगंज जिला अररिया बिहार
“संजीव आनन्द”
संस्थापक एवं अध्यक्ष
(युवा संघर्ष सेना,सामाजिक संगठन,बिहार)