अररिया : अररिया जिले के कुर्साकांटा सिकटी प्रखंड के मजरक पंचायत अंतर्गत डैनिया गांव में एक करोड़ 25 लाख की लागत से बने उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय टेन प्लस टू का भवन कई वर्षों से बन कर तैयार है। लेकिन आज तक इस विद्यालय में हमेशा ताला लटका रहता है। हालांकि कागजों पर विद्यालय भी खुला है और छात्रों की पढ़ाई भी चल रही है। हर साल छात्र एवं छात्राएं परीक्षा देकर उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय टेन प्लस टू से पास भी हो रहे हैं। नए सत्र में यहां कक्षा 9 में 50 और कक्षा 10 में 70 विद्यार्थियों का नामांकन लिया जा चुका है। बिहार सरकार के शिक्षा के क्षेत्र में हर दावों को झुठलाता यह विद्यालय अपने आप में शिक्षा व्यवस्था पर बड़ी चोट है।
उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय टेन प्लस टू का मामला
साफ है कि यह स्कूल बिहार के छात्रों के भविष्य को संगठित रूप से अंधकारमय करने का जीता—जागता सबूत महैया करा रहा है। ज्ञात हो कि दो मंजिला विद्यालय भवन की प्रयोगशाला में 3 लाख के सामान की खरीदारी भी हुई है। उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय टेन प्लस टू डैनिया में बिना कक्षा किये ही छात्र नामांकन लेकर परीक्षा देते हैं और उन्हें डिग्री भी मिल रही।
गांव के हीं हैं एचएम, ग्रामीण कुछ बोलने से करते हैं परहेज
उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय टेन प्लस टू डैनिया में गांव के ही एचएम पदस्थापित हैं। इसलिए ग्रामीण विद्यालय की व्यवस्था के खिलाफ बोलते तो जरूर हैं, लेकिन इस व्यवस्था का विरोध करने से परहेज करते हैं। ज्ञात हो कि इस विद्यालय का नाम पहले मध्य विद्यालय डैनिया था। वर्ष 2014 में इसका नाम बदलकर कर उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय टेन प्लस टू डैनिया किया गया। विडंबना यह है कि मध्य से उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय प्लस टू होने के बावजूद यहां पढ़ाने के लिए न तो कोई शिक्षक है और न बच्चों के बैठने के लिए बेंच-डेस्क। ऐसे में यह विद्यालय कागजों पर ही चल रहा है।
डीईओ को अवगत कराया गया : प्रधानाध्यापक
विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्रवण कुमार पंडित ने बताया कि नवम वर्ग, दशम वर्ग एवं टेन प्लस टू के लिए एक भी शिक्षक विद्यालय में नहीं है। कक्षा नवम, दशम एवं टेन प्लस टू में बेंच डेस्क की भी कोई व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों के संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी को कई बार सूचित किया जा चुका है लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। जब तक शिक्षक और बेंच डेस्क की व्यवस्था नहीं होती है, छात्रों के विद्यालय आने की उम्मीद कम है। अररिया में शिक्षा का यह नमूना बच्चों के भविष्य के प्रति सरकारी तंत्र की चिंताओं और संवेदनाओं की पोल खोलने के लिए काफी है।
संजीव कुमार झा