सिवान : जबसे श्रीलंका ने आतंकी हमलों के बाद अपने यहां बुर्के पर बैन लगाया है, भारत में भी इसकी डिमांड होने लगी। लेकिन बिहार के सिवान में बुर्के पर बैन के लिए एक अलग ही तरह की बहस छिड़ी हुई है। चूंकि चुनावी माहौल है इसलिए यहां की लड़ाई को लोग बुर्का बनाम भगवा से जोड़कर एक नए प्रकार की बहस में जुटे हुए हैं। लोकसभा चुनाव के छठे चरण में 12 मई को सिवान सीट पर मतदान होगा। आइए जानते हैं कि सिवान में स्थानीय स्तर पर लोगों कैसे बुर्का बनाम भगवा की बहस में दिलचस्पी ले रहे हैं ।
भगवा बानाम बुर्के की दिलचस्प लड़ाई
सिवान के चुनावी मैदान में दो बाहुबली नेताओं की पत्नियां आमने—सामने हैं।
एक तरफ राजद के पूर्व सांसद और सजायाफ्ता मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब महागठबंधन प्रत्याशी के तौर पर यहां चुनाव लड़ रही हैं। उनका पहनावा बुर्का है। वहीं दूसरी तरफ एनडीए की तरफ से जदयू ने बाहुबली अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह को मैदान में उतारा है। कविता सिंह के पति सिवान में हिंदू युवा वाहिनी के मुखिया हैं, इसलिए उनका पहनावा भगवा है। यही कारण है कि सिवान में लोग ‘भगवा बनाम बुर्के’ की बहस में खासी दिलचस्पी ले रहे हैं।
प्रचार में हिना शहाब के बुर्के का जिक्र
सिवान में बुर्का बैन की मांग श्रीलंका आतंकी हमले के बाद नहीं, बल्कि चुनावी घोषणाओं के बाद ही उठने लगी। इस बहस की शुरुआत अजय सिंह ने काफी पहले एक चुनावी सभा में हिना शहाब के बुर्के पर टिप्पणी के साथ की। अब अजय सिंह अपनी पत्नी के लिए चुनाव प्रचार में प्रत्येक सभाओं में हिना शहाब के पहनावे का जिक्र कर रहे हैं। अजय सिंह चुनाव प्रचार के दौरान मोहम्मद शहाबुद्दीन की आपराधिक छवि और पाकिस्तान का जिक्र भी करते हैं। हालांकि उनकी पत्नी और जेडीयू प्रत्याशी कविता सिंह पीएम नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के विकास कार्यों पर भी वोट मांगती हैं।
पिछड़ापन मंजूर, मो. शहाबुद्दीन का आतंक नामंजूर
उधर दूसरी तरफ हिना शहाब हैं जो मो. शहाबुद्दीन और लालू यादव के नाम पर वोट मांग रही हैं। सिवान में वे लगातार दो बार से लोकसभा चुनाव हार रही हैं और उनके लिए यह आखिरी लड़ाई मानी जा रही है। ‘बुर्का बनाम भगवा’ की मौजूदा बहस का एक कारण उनके पति मोहम्मद शहाबुद्दीन की आपराधिक छवि को भी बताया जा रहा है। लोगों को विकल्प के रूप में नाकामी मंजूर है, लेकिन आतंक और टेरर राज बिल्कुल नहीं। साफ है कि मो. शहाबुद्दीन की छवि ही हिना शहाब के लिए बाधक बन रही है। यही वजह है कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके विरोधी शहाबुद्दीन के कार्यकाल का जिक्र कर ‘बुर्का बनाम भगवा’ और ‘बुर्का बैन’ की बहस को हवा दे रहे हैं।