तेजस्वी के ‘दूध’ और राजग की ‘मलाई’ ने उपेन्द्र कुशवाहा की ‘खीर’ को कश्मकश में डाल दिया है। जहां बेताब तेजस्वी उनका चावल खरीदने को राजद के गेट पर तैयार खड़े हैं वहीं राजद के सहयोगियों—मांझी, कांग्रेस ने भी उन्हें दो नाव की सवारी से बचने की सलाह दे दी है। इधर कुशवाहा राजग की मलाई का मोह भी नहीं त्यागना चाह रहे, तो आजादी से पहले बने त्रिवेणी संघ जिसमें बिहार की राजसत्ता बारी—बारी से ‘यादव, कुर्मी और कोईरी’ को देने पर सहमति बनी थी, उसके तहत अब सीएम पद पर अपनी दवेदारी का हक भी पाना चाहते हैं।
‘खीर’ पकाएं या ‘मलाई’ खाएं?
बीपी मंडल जन्मशती समारोह में उन्होंने जिस ‘खीर’ को आग पर चढ़ाया अब उसकी तपिश हर तरफ पहुंचने लगी है। वे खुद भी साफ निर्णय नहीं ले पा रहे। सब शीर्ष पद पाने की अकुलाहट में उन्होंने खीर का जिक्र तो छेड़ दिया पर नफा— नुकसान, हानि—लाभ का निर्णय नहीं कर सके। तेजस्वी ने उन्हें जो आॅफर ट्वीट के माध्यम से दिया वह भी खास उत्साहजनक नहीं है। तेजस्वी ने ट्वीट कर कहा, “नि:संदेह उपेन्द्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है। पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्द्धक गुण न केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देते हैं। प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है। यह एक अच्छा व्यंजन है।” लेकिन उन्होंने इसके साथ ही यह संकेत भी दिया कि उन्हें सीएम पद खुद लेने की जिद से फिलहाल बचना होगा। यानी मतलब साफ है—ना खुदा ही मिले ना विसाले सनम। यही कारण है कि कुशवाहा ने गरमागरम छिड़ी बहस के बीच ही सफाई भी दे डाली—’मैंने न राजद से दूध मांगा, न भाजपा से चीनी। सब अपना—अपना मतलब निकाल रहे हैं, जिसकी कोई जरूरत नहीं है’।
उधर भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय और शाहनवाज हुसैन ने संकेत दे दिया है कि ‘दूध और चावल’ किसी एक दल की बपौती नहीं। सभी दलों में ‘दूध और चावल’ हैं। राजग एकजुट है। भाजपा, जदयू, लोजपा, रालोसपा आदि सभी दल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। बहरहाल, उपेन्द्र कुशवाहा ने बहस तो छेड़ ही दी है। भले खीर पके या नहीं, मलाई तो मिल ही रही है।