उन्नीस सौ इकावन की जनगणना के अनुसार बिहार की 88 प्रतिशत से भी अधिक आबादी गांवों में बसती थी। धीरे-घीरे यहां के पुरुषों का पलायन शहरों एवं देश के अन्य भागों की तरफ होने लगा, क्योंकि यहां के गांवों में रोजगार के साधनों का अभाव थ। नतीजतन बिहार के गांवों से पुरुषों की आबादी लगातार कम होने लगी। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गव्य सहकारी संस्था अमूल ने गुजरात के ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में विकास की अद्वितीय भूमिका निभायी। इससे प्रभावित होकर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आनन्द पद्धति को देश के अन्य भागों में लागू करने का आग्रह इस पद्धति के जन्मदाता डाॅ वर्गीज कुरियन से किया। इस बात को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की गयी और इस कार्यक्रम को ‘आॅपरेशन फ्लड’ नाम दिया गया। इसी क्रम में राज्य सरकार द्वारा केन्द्र के सहयोग से 1972 में बिहार में आॅपरेशन फ्लड योजना की शुरुआत की गयी। सार्थक परिणाम प्राप्त नहीं होने की स्थिति के मद्देनजर राज्य सरकार के अनुरोध पर अक्टूबर 1981 के प्रभाव से योजना का प्रभार राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एन.डी.डी.बी) आनन्द द्वारा ग्रहण किया गया। एन.डी.डी.बी. द्वारा आॅपरेशन फ्लड योजना के प्रबन्धन एवं उचित कार्यान्वयन के लिए पटना डेयरी प्रोजेक्ट की स्थापना की गयी और आनन्द पद्वति पर राज्य में दुग्ध सहकारिताओं का गठन एवं संचलान शुरू कर दिया गया।
आनन्द पद्धति सहकारी क्षेत्र में व्याप्त सहकारी नियन्त्रण एवं अफसरशाही के विरुद्ध है। वह सदस्यों की आर्थिक एवं सामाजिक बेहतरी के लिए पारस्परिक सहयोग पर आधारित उन्हीं के द्वारा स्वप्रबन्धित संस्था की पक्षधर है। यही वजह है वैशाली-पाटलीपुत्र दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि., बिहार में कार्यरत, अन्य दूसरे प्रकार की सहकारी संस्थाओं से भिन्न है। संघ की व्यवस्था शासकीय अधिकारियों के पास न होकर निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में है। बिहार की यह प्रमुख दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था बिहार सरकार की नहीं अपितु पचास हजार से भी अधिक किसानों/दुग्ध उत्पादकों की सम्पत्ति है। यह संस्था पूर्ण रुप से आनन्द पद्वति पर आधरित है। आनन्द पद्वति एक साधक की साधना है और इसे साध्य बनाने में जिस साधन का प्रयोग किया गया है वह है सहकारिता।
आनन्द पद्धति के साधक डाॅ. कुरियन का मानना है कि स्वार्थी राजनीतिज्ञों के सहकारी संस्थाओं में प्रवेश का लक्ष्य संस्था का विकास न होकर स्वयं का विकास करना होता है। उन्होंने बेबाक कहा है कि 1972 से लेकर 1981 तक बिहार में आॅपरेशन फ्लड के प्रथम चरण की उपलब्धि निराशाजनक रहने के मूल में अफसरशाही तथा स्वार्थी नेता ही थे, जो लोगों को उनका अधिकार नहीं देना चाहते थे। प्रस्तुत है डाॅ. वर्गीज कुरियन का मारिया अब्राहम के साथ ‘‘द वीक’’ सितंबर 12, 1993 को दिए गये साक्षात्कार के कुछ अंश:
डाॅ. कुरियन से जब यह पूछा गया कि आनन्द पद्धति कई राज्यों द्वारा अपनायी गयी है, लेकिन यह कुछ राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में बहुत सफल नहीं हुई इसके पीछे क्या कारण है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए डाॅ. कुरियन ने बिहार के संदर्भ में अपनी एक दास्तान सुनाते हुए कहा कि एक बार वह पटना गये थे। वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिले। मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री ने उनसे कहा कि उनकी सारी सूझ-बूझ, विचारधारा गलत साबित हुई। बिहार के किसान कभी भी गुजरात के किसान नहीं हो सकते, बिहार में सहकारिता कभी काम नहीं कर सकती।
डाॅ. कुरियन ने मुख्यमंत्री को जवाब दिया ‘‘बिहार के किसानों में कुछ भी गलत नहीं है। सारा दोष आप और आपकी सरकार में है। अगर स्वच्छ प्रशासन और ईमानदार सरकार है तो सब कुछ किया जा सकता है। हर राज्य के किसान एक जैसे हैं। वास्तविकता यह है कि बिहार के किसानों में गरीबी गुजरात के किसानों की अपेक्षा कहीं अधिक है। इसलिए बिहार में ऐसी अधिक से अधिक योजनाओं की जरूतर है। यह तो सरकार है जो इन योजनाओं के कार्यान्वयन में रूकावट बनी हुई है।’’
मुख्यमंत्री ने डाॅ. कुरियन से बिहार स्टेट डेयरी कारपोरेशन लि. को अपना लेने (एडोप्ट कर लेने) को कहा। यह संस्था केन्द्र की पहल पर राज्य सरकार द्वारा आॅपरेशन फ्लड योजना के अन्तर्गत गठित की गयी थी एवं राज्य सरकार क्षरा संचालित थी जो अपनी स्थापना के समय से ही भारी घाटे में चल रही थी। डाॅ. कुरियन ने मुख्यमंत्री से कहा वे ऐसा कर सकते हैं बशर्ते वह (मुख्यमंत्री) उनकी दो शर्तें मानने को तैयार हों। ‘‘जो भी लाभ होगा वह आपका होगा और घाटा हमारा होगा तथा आपकी तरफ से किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।’’
इसके बाद डाॅ. कुरियन डेयरी देखने गये। यह डेयरी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी द्वारा चलाई जा रही थी और लगातार भारी घाटे में चल रही थी। डेयरी में प्रयोग होने वाले स्टैनलैस स्टील के बर्तन, बैटरी यहां तक कि दुग्ध वाहनों के टायर एवं इंजन तक गायब थे और बेच दिये गये थे। ऐसी स्थिति में भी उन्होंने डेयरी अपना लेने की स्वीकृति मुख्यमंत्री को दे दी। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड को डेयरी हस्तान्तरण से ठीक एक दिन पहले राज्य सरकार ने 200 ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति डेयरी में कर दी जिन्हें एस क्षेत्र का कोई ज्ञान नहीं था। ऐसी परिस्थितियों मंे भी वह काम में लगे रहे। इसी दौरान उनके दो अधिकारियों को मार डाला गया। लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष करते रहे। थोड़े ही समय में डेयरी की कार्यप्रणाली में आशाजनक वृद्धि हुई और डेयरी लाभ में काम करने लगी।
जब कार्य तीव्र गति पर चलने लगा तो लाभ स्पष्ट दिखने लगा तब राज्य के मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य सरकार बिहार स्टेट डेयरी कारपोरेशन लि. को अपने अधिकार में लेगी। इस पर डा. कुरियन ने कहा, ‘‘ऐसा केवल उनके मृत शरीर पर ही हो सकता है’’ उन्होंने जोर देकर कहा कि डेयरी किसानों (दुग्ध उत्पादकों) के हवाले की जाये। उनकी हठ के आगे सरकार को झुकना पड़ा और डेयरी किसानों को समर्पित कर दी गयी। अब डेयरी लगातार लाभ में चल रही है और करोड़ों रुपये बचत के रूप में अर्जित कर चुकी है। डाॅ. कुरियन का कहना है कि कैसे कोई सहकारी संस्था, एक सहकारी संस्था हो सकती है जब तक उसकों चलाने वाला व्यक्ति (मुख्य कार्यकारी) सरकार द्वारा नियुक्त किया गया। भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी अथवा अन्य शासकीय अधिकारी होगा, न कि सदस्यों द्वारा पसंद किया एवं नियुक्त किया गया कोई व्यक्ति। आप ऐसी संस्था को सहकारी संस्था कहकर लोगों को मुर्ख बना रहे हैं। वास्तव में आपने आनन्द पद्वति अपनाने का मौका ही कहां दिया?
जुलाई 1987 में वैशाली-पाटलीपुत्र दुग्ध उत्पाकद सरकारी संघ लि. की स्थापना की गयी और एक साल तक सफलतापूर्वक कार्य को देखकर जुलाई 1988 के प्रभाव से पटना डेयरी प्रोजेक्ट का प्रबन्धन संघ को सौंप दिया गया। तब से यह सहकारी दुग्ध संघ अपनी समितियों, उपभोक्ताओं, पदाधिकारियां एवं कर्मचारियां के परस्पर सहयोग से सर्वदा प्रगति के पथ पर अग्रसर है। वैशाली पाटलीपुत्र दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि. पटना के मुख्य कार्यकलाप निम्नलिखित है
1. अपने कार्यक्षेत्र के ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों द्वारा उत्पादित अतिरिक्त दूध की बिक्री के लिए स्थाई बाजार उपलब्ध कराना।
2. समितियों से प्राप्त दूध से विशुद्ध पास्च्युराइज्ड दूध, घी, मक्खन, पनीर, पेड़ा एवं आईसक्रीम आदि तैयार कर उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराना।
3. ग्रामीण स्तर पर दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए आवश्यक सेवाएं यथा पशुओं को संक्रामक बीमारी से रक्षा के लिए टीकाकरण कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से नस्ल सुधार, सन्तुलित पशु-आहार की आपूर्ति उपलब्ध कराना इत्यादि।
4. म्हिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए गव्य सहकारिताओं में महिलाओं की सहभागिता को बढ़ाने के उद्देश्य से आवश्यक योजनाएं कार्यान्वित करना।
‘‘दुग्ध संघ ने अपने कार्यकलापों को पूर्ण निष्ठा एवं व्यावसायिक दृष्टिकोण से लागू किया है और यही उसकी सफलता का प्रमुख कारण है। संघ की कार्यकारिणी का मानना है कि दुग्ध सहकारी समितियां कोई चैरिटेबिल ट्रस्ट नहीं है। व्यवसाय को व्यवसाय की तरह चलाने पर ही वर्तमान आर्थिक उदारीकरण की दौड़ को जीता जा सकता है।’’
तालिका से स्पष्ट है कि दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लगातार लाभ की ओर अग्रसर है और क्षेत्र के पशुपालकों को दूध की सही कीमत दिलाने को कृतसंकल्प है। बिहार की राजधानी में स्थित, वैशाली-पाटलीपुत्र दुग्ध उत्पादन सहकारी संघ लि., पटना की, 894 दुग्ध सहकारी समितियों के 55525 सदस्यों का सहकारिता के माध्यम से आये बढ़ाना, वर्ष में 3907.47 लाख रुपये दूध के मूल्य के रूप में पटना-नालन्दा एवं वैशाली जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त आय के रूप में आना, बिहार जैसे गरीब एवं पिछड़े राज्य को ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मील का पत्थर साबित हो रहा है।
संघ एवं समितियों के माध्यम से ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों एवं शहरी उपभोक्ताओं के बीच सीधा संबंध स्थापित कर दोनों को लाभन्वित किया जा रहा है। दूध का नियमित बाजार-गांव स्तर पर उपलब्ध होने से किसानों के साथ-साथ ग्रामीण शिक्षित बेरोजगार भी दुग्ध उत्पादन को एक रोजगार के रूप में अपनाने में रुचि लेने लगे है। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र से पुरुषों के पलायन पर रोक लगी है और गांव में अतिरिक्त आय के साधन विकसित होने से ग्रामीर्णों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है। यदि आनन्द पद्धति को सम्पूर्ण बिहार में ईमानदारी और निष्ठापूर्वक लागू किया जाये तो ग्रामीण क्षेत्र से गरीबी उन्मूलन की दिशा में तो एक प्रभावी कदम होगा ही। साथ ही ग्रामीण शिक्षित बेरोजगार के लिए भी रोजगार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
विनोद कुमार सिंह