कृषि विभाग द्वारा नई प्रक्रिया से कम समय में किसानों के आधार लिंक्ड बैंक खाते में डीजल अनुदान की राशि हस्तांतरित की जा रही है। वर्ष 2018-19 में खरीफ मौसम में राज्य में अनियमित माॅनसून/सूखे/अल्पवृष्टि जैसी स्थिति में खरीफ फसलों के एक एकड़ क्षेत्र में डीजल पम्पसेट से एक सिंचाई के लिए 10 लीटर डीजल खपत अनुमान के अनुसार 50 रुपये प्रति लीटर की दर से 500 रुपये प्रति एकड़ प्रति सिंचाई डीजल अनुदान देय है। एक किसान को धान का बीचड़ा बचाने एवं जूट फसल के लिए 2 सिंचाई के लिए 1,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से तथा धान, मक्का, अन्य खरीफ फसलों के अन्तर्गत दलहनी, तेलहनी, मौसमी सब्जी, औषधीय एवं सुगंधित पौधे के लिए एक ही खेत के लिए अधिकतम 3 सिंचाई के लिए 1,500 रू0 प्रति एकड़ की दर से डीजल अनुदान की स्वीकृति प्राप्त है, जिसमंे अल्प एवं अनियमित वर्षा के कारण फसलों का उत्पादन/उत्पादकता बनाये रखने के लिए धान फसल के लिए 3 सिंचाई को बढ़ाकर 5 सिंचाई के लिए प्रति सिंचाई 500 रुपये की दर से कुल 2,500 रुपये प्रति एक एकड़ का अनुदान अनुमान्य किया गया है। अन्य खरीफ फसलों के लिए पूर्व में स्वीकृत दर से ही डीजल अनुदान देय होगा।
इसी प्रकार रबी फसलों में भूमि की नमी को दूर कर भरपूर उपज प्राप्त करने के लिए सिंचाई पर डीजल अनुदान की आवश्यकता होगी। रबी मौसम में किसानों को 1 लीटर डीजल के क्रय करने पर 50 रुपये की दर से प्रति एकड़ 500 रुपये डीजल अनुदान अनुमान्य है। वर्तमान में इस योजना के अधीन गेहूं के लिए 3 सिंचाई तथा अन्य रबी फसलों के अन्तर्गत मक्का, दलहनी, तेलहनी, मौसमी सब्जी, औषधीय एवं सुगंधित पौधे के लिए 2 सिंचाई के लिए डीजल अनुदान की स्वीकृति प्राप्त है, जिसमें गेहूं के लिए 3 सिंचाई को बढा़कर 4 सिंचाई कर 2,000 रुपये प्रति एकड़ तथा मक्का के लिए 2 सिंचाई को बढ़ाकर 3 सिंचाई कर 1,500 रुपये प्रति एकड़ का अनुदान अनुमान्य किया गया है। अन्य रबी फसलों मक्का, दलहनी, तेलहनी, मौसमी सब्जी, औषधीय एवं सुगन्धित पौधे के लिए पूर्ववत् 2 सिंचाई के लिए डीजल अनुदान दिया जायेगा। आवेदन करने के 25 दिनों के अंदर डीजल अनुदान किसानों के आधार से जुड़े बैक खाते में डीबीटी के माध्यम से सीधे अंतरित की जा रही है। इस खरीफ मौसम में राज्य के 15,59,025 किसानों के बीच 1,93,68,79,841.85 रूपये वितरित किये गये हैं।
कृषि इनपुट सब्सिडी योजना खरीफ, 2018 में अल्पवृष्टि के कारण सुखाड़ जैसी स्थिति को देखते हुए सरकार द्वारा राज्य के सूखाग्रस्त चिह्नित प्रखण्डों के किसानों को राज्य अधिसूचित स्थानीय आपदाओं के लिए निर्धारित सहाय्य डीबीटी के माध्यम से फसलों के नुकसान को भरपाई करने हेतु अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। 24 जिला के सूखाग्रस्त चिह्नित 275 प्रखण्डों के किसानों को इस योजना का लाभ खरीफ मौसम के खड़ी फसलों में अल्पवृष्टि के कारण सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए अधिसूचित स्थानीय आपदाओं के अधीन निर्धारित सहाय्य मापदंडों के अनुरूप अनुदान दिया जायेगा। यह अनुदान किसानों को वर्षाश्रित फसल क्षेत्र के लिए 6,800 रुपये प्रति हेक्टेयर तथा सुनिश्चित सिंचाई आधारित फसल क्षेत्र के लिए 13,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अधिकतम 2 हेक्टेयर के लिए देय होगा। इस योजना का लाभ आॅनलाइन पंजीकृत किसानों को ही दिया जायेगा। कृषि इनपुट सब्सिडी योजना का लाभ डीजल अनुदान की प्रक्रिया के अनुरूप दिया जायेगा। राज्य के 24 जिला के सूखाग्रस्त चिह्नित 275 प्रखण्डों के किसानों से कृषि इनपुट सब्सिडी योजना का लाभ लेने के लिए 16,01,743 आवेदन प्राप्त हुए हंै।
दलहनी फसलों के निःशुल्क बीज वितरण कार्यक्रम: राज्य के सूखा प्रभावित 24 जिलों के 275 प्रखण्डों में किसानों के बीच दलहनी फसलों चना/मटर/मसूर के बीज निःशुल्क वितरित किया जा रहा है।
किसानों का निःशुल्क आॅन-लाईन निबंधन कार्यक्रम: समय पर किसानों को योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए राज्य के सभी किसानों का आॅनलाइन निबंधन कराया जा रहा है। यह निबंधन निःशुल्क किया जा रहा है। निबंधन की राशि विभाग द्वारा वहन किया जा रहा है। निबंधन के उपरान्त किसानों को एक पहचान संख्या प्राप्त होती है, जिससे वे भविष्य में सभी योजनाओं का लाभ ले पायेंगे। अब तक राज्य के 42,62,448 किसानों ने अपना आॅनलाइन निबंधन करवाया है।
रियायत
कृषि विभाग द्वारा किसानों को विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत अनुदानित दर पर उपादान मुहैया कराया जा रहा है। यह अनुदान मिट्टी स्वास्थ्य, मिट्टी संरक्षण, बीज, प्रत्यक्षण, यांत्रिकरण, सिंचाई, प्रसार एवं प्रशिक्षण, बागवानी, भूमि संरक्षण से संबंधित विभिन्न अवयवों पर उपलब्ध कराये जाते है। केन्द्र प्रायोजित योजनाएँ तथा राज्य योजना के अंतर्गत किसानों को उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु सरकार अनुदान उपलब्ध कराती है।
केन्द्र प्रायोजित योजनाएं
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन केन्द्र प्रायोजित योजना है, जिसे रबी 2007-08 से इस राज्य में चलाया जा रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य चावल, गेहूं, दलहन एवं कोर्स सीरीयल (मक्का) के उत्पादन में 4 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि लाकर खाद्यान्न के मामले में राज्य एवं देश को सुरक्षित करना है। इस मिशन के अन्तर्गत राज्य के उन्हीं जिलों को अंगीकृत किया गया है जिनमें चावल, गेहूं एवं दलहन की उत्पादकता राज्य की औसत उत्पादकता से कम है एवं उत्पादन बढ़ानें की असीम संभावना है। इस वित्तीय वर्ष में नेशनल मिशन आॅन आॅयल सीड्स एवं आॅयलपाम (नमूप) योजना अन्तर्गत तेलहनी फसलों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में शामिल किया गया है।
- चावल: चावल के विकास के लिए राज्य के 15 जिलों को 12वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया है। चयनित जिला का नाम अररिया, पूर्वी चम्पारण, दरभंगा, गोपालगंज, कटिहार, किशनगंज, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, सहरसा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, सिवान एवं सुपौल है।
- धान के उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए श्रीविधि, जीरो टिलेज/सीड ड्रिल से धान की सीधी बुआई, पैडी ट्रांसप्लांटर से धान की खेती, तनाव रोधी प्रभेदों, बोरो धान, फसल पद्यति आधारित विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्षण कार्यक्रम क्रियान्वित किये जाते है। साथ ही नवीनतम बीज प्रभेदो का अनुदानित दर पर वितरण, सुक्ष्म पोषक तत्वों, पौधा संरक्षण रासायण तथा खर पतवार नाशी रसायन तथा कृषि यंत्रों का अनुदानित दर वितरण शामिल है।
- गेहूं: गेहूं के उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के लिए 10 जिलों को चयनित किया गया है। चयनित जिलों में अररिया, औरंगाबाद, भोजपुर, गया, गोपालगंज, नालंदा, पटना, सीतामढ़ी, सिवान एवं सुपौल।
- दलहन: दलहनी फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि लानें के लिए सभी जिलों को आच्छादित किया गया है।
- कोर्स सीरीयल (मक्का) – 12वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में मोटे अनाज के उत्पादन के लिए कोर्स सीरीयल अन्तर्गत बाजरा एवं मक्का उत्पादन का कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है, जो राज्य के 11 जिलों यथा बेगूसराय, भागलपुर, पू चम्पारण, कटिहार, खगड़िया, मधेपुरा, पूर्णियां, सहरसा, समस्तीपुर, सारण एवं वैशाली जिलों में मोटे अनाज के उत्पादन एवं उत्पादकता की वृद्धि के लिए क्रियान्वित किया जा रहा है।
- टारगेटिंग राइस फेलो एरिया इन इस्टर्न इंडिया फाॅर पल्सेज – राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना अन्तर्गत खरीफ मौसम में धान के परती खेतों के समुचित उपयोग के लिए भारत सरकार द्वारा दलहन की उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि के लिए टारगेटिंग राइस फेलो एरिया इन इस्टर्न इंडिया फाॅर पल्सेज कार्यक्रम का कार्यान्वयन कराया जा रहा है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्ेश्य खरीफ मौसम में परती पड़े खेतो का समुचित उपयोग कर एसमें दलहनी फसलों की बुवाई करते हुए दलहन की उतपादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना है। यह राज्य के चार जिलों यथा कटिहार, बांका, गया एवं औरंगाबाद में क्रियान्वित की जा रही है।
- तेलहन: तेलहन के उत्पादन एवं उत्पादकता में नियमित वृद्धि लाने के लिए तेलहनी फसलों में सरसों/राई, सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी आदि को सम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तेलहन राज्य के सभी जिलों में क्रियान्वित किया जाता है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना:- वर्ष 2007-08 में कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों के समग्र एवं समेकित विकास को सुनिश्चित करने के लिए कृषि जलवायु, प्राकृतिक संसाधन प्रौद्योगिकी को ध्यान में रखते हुए गहन कृषि विकास करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरूआत की गयी। वित्तीय वर्ष 2014-15 से इसको केन्द्र प्रायोजित योजना में परिवर्तित कर दिया गया है। वित्तीय वर्ष 2017 से इस योजना को अधिक प्रभावी, दक्ष एवं समावेशी बनाने के उद्देश्य से चैदहवें वित्त आयोग द्वारा इसका नाम संशोधित कर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार कर दिया गया है एवं मार्गदर्शिका में भी संशोधन किया गया है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार:- किसानों के प्रयासों के सुदृढ़ीकरण, जोखिम न्यूनीकरण एवं कृषि-व्यवसाय उद्यमिता को प्रोत्साहित कर खेती को एक लाभाकारी आर्थिक गतिविधि बनाना चाहता है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार के मुख्य उद्देश्य:-
- फसल कटाई के पूर्व एवं फसल कटाई के पश्चात के लिए आवश्यक कृषि आधारभूत संरचनाओं का सृजन कर किसानों तक गुणवत्तायुक्त उपादानों की पहुंच, भंडारण, बाजार सुविधाओं आदि को बढ़ावा देकर किसानों के प्रयासों को सुदृढ़ करना एवं किसानों का ज्ञानबर्द्धन कर विकल्पों का चुनाव करने योग्य बनाना।
- राज्यों को स्थानीय/कृषकों की आवश्यकतानुसार योजनाओं के सूत्रीकरण एवं कार्यान्वयन के लिए स्वायतता एवं नम्यता प्रदान करना।
- मूल श्रंखला संबंर्द्धन से जुड़े उत्पादन माॅडलों को बढ़ावा देना जो किसानों की आय के साथ-साथ उत्पादन/उत्पादकता वृद्धि में सहायक हो।
- समेकित कृषि, मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन, सुगंधित पौधों की खेती, फूलों की खेती आदि जैसे अतिरिक्त आय सृजन करने वाली गतिविधियों को ध्यान में रख कर किसानों की जोखिम का न्यूनीकरण करना।
- विविध उप योजनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की प्राप्ति करना।
- कौशल विकास, नवाचार एवं कृषि उद्यमिता आधारित व्यावसायिक माॅडल, जो युवाओं को कृषि के प्रति आकर्षित करंे, के माध्यम से युवाओं का सशक्तिकरण।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार के अन्तर्गत तीन मुख्य घटक है:-
1. सामान्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार – कुल उद्व्यय का 70ः उद्व्यय इस मद में राज्यों को उपलब्ध कराया जायेगा। इसके अंतर्गत निम्न तीन उप घटक हैः-
(क) आधारभूत संरचना एवं परिसम्पत्ति:- सामान्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना- रफ्तार अंतर्गत प्राप्त उद्व्यय का 50ः उद्व्यय इस मद में व्यय किया जायेगा। इस 50ः में से 20ः फसल कटाई के पूर्व की आधारभूत संरचनाओं पर एवं 30ः फसल कटाई के पश्चात की आधारभूत संरचनाओं पर व्यय की जायेगी।
(ख) मूल्य संबर्द्धन से जुड़ी उत्पादन परियोजनाएं जो किसानों को सुनिश्चित/ अतिरिक्त आय दे, पर सामान्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार के उद्व्यय का 30ः व्यय किया जायेगा। इसके अंतर्गत समेकित कृषि विकास के लिए सरकारी निजी भागीदारी की योजनाएं ली जा सकेंगी।
(ग) नम्य निधिः- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना- रफ्तार के उद्व्यय का 20ः राज्य अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार नवाचार गतिविधियों को प्राथमिकता देते हुए व्यय कर सकेगी।
2. विशेष उप योजना:- राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के आधार पर भारत सरकार के द्वारा क्षेत्रीय एवं समस्याग्रस्त विशिष्ट क्षेत्रों के विकास के लिए भारत सरकार द्वारा उप योजनाएँ अधिसूचित की जायेगी। जिसके उपर सामान्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार के उद्व्यय का 20ः व्यय किया जायेगा।
3. नवाचार एवं कृषि उद्यमी विकास के लिए सामान्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार के कुल उद्व्यय का 10ः व्यय किया जायेगा। यह निधि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के पास रहेगी जिसमें प्रशासनिक व्यय का 2ः भी सम्मिलित है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की उप योजना – हरित क्रांति योजना:- पूर्वी भारत में चावल आधारित फसल प्रणाली में उत्पादकता में वृद्धि लाने के उद्देश्य से पूर्वी भारत के सात राज्यों में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की उपयोजना के रूप में वर्ष 2010-11 से पूर्वी भारत में हरित क्रांति योजना की शुरूआत की गई। हरित क्रांति योजना का मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैः-
(1) नवीनतम फसल उत्पादन तकनीक के द्वारा चावल एवं गेहूं के उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना।
(2) चावल की खेती के बाद परती रहने वाली भूमि में खेती को प्रोत्साहित कर फसल सघनता एवं किसानों की आमदनी में वृद्धि लाना।
(3) जल संग्रहण संरचनाओं का निर्माण तथा जल क्षमता का कुशल उपयोग करना।
हरित क्रांति उपयोजना अन्तर्गत निम्न अतःक्षेप लिया जा सकते है।
(1) समूह प्रत्यक्षण
(2) बीज वितरण (अधिक उपजशील/ संकर प्रभेद)
(3) बीज उत्पादन (अधिक उपजशील/ संकर प्रभेद)
(4) आवश्यकता आधारित उपादानों का वितरण
- सूक्ष्म पोषक तत्व एवं मृदा सुधारक
- पौधा संरक्षण रसायन
- फसल पद्धति आधारित प्रशिक्षण
(5) परिसम्पति निर्माण (फार्म यंत्र/मशीन/सिंचाई संयंत्र)
(6) स्थलीय विशिष्ट आवश्यकताएं
(7) विपणन सहायता
राष्ट्रीय संधारणीय कृषि मिशन
रेनफेड एरिया डेवलपमेन्ट :- इस योजना के अंतर्गत राज्य के 11 जिलों यथा- शेखपुरा, मुंगेर, नालंदा, नवादा, रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर, जमुई, बांका, लखीसराय तथा गया में कुल 11 कलस्टरों में फसल आधारित, उद्यान आधारित एवं पशुधन आधारित समेकित कृषि प्रणाली के माध्यम से किसानों के समूह को योजना का लाभ दिया जा रहा है।
परम्परागत कृषि विकास योजना रू. अत्याधिक एवं अनुचित रसायनों के प्रयोग से मृृदा के सुक्ष्म जीवों का विनाश हो रहा है, फलस्वरूप मृृदा की उर्वरता एवं उत्पादन के टिकाउपन में लगातार कमी हो रही है। रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशियों के आसमूान छूते मूल्य के कारण खेती की लागत में लगातार वृृद्वि हो रही है एवं किसानों को उस अनुपात में आर्थिक लाभ नहीं हो पा रहा है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा जैविक खेती एवं उसके पीजीएस आधारित जैविक प्रमाणीकरण के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना की शुरूआत की गई है। पीजीएस आधारित जैविक खेती एवं प्रमाणीकरण में उत्पादक-विपणनकर्ता- उपभोक्ता तीनों की सहभागिता होगी। इसमें उत्पादक समूह स्वयं निर्णय लेने में सक्षम होंगे। इसमें किसानों को जैविक खेती, प्रमाणीकरण, पैकेजिंग, ब्रान्डिंग तथा मार्केटिंग के लिए सहायता अनुदान दिया जा रहा है। यह योजना एक ही खेती में लगातार तीन वर्ष तक संचालित किया जायेगा।
नमामि गंगे स्वच्छता अभियान: नमामि गंगे स्वच्छता अभियान अन्तर्गत जैविक ग्राम कलस्टर की योजना का कार्यान्वयन परम्परागत कृषि विकास योजना के तर्ज पर गंगा नदी के किनारे के पंचायतों में किया जायगा। परम्परागत कृषि विकास योजना अंतर्गत राज्य के 17 जिलों यथा- पटना, नालन्दा, रोहतास, कैमूर, गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, मुंगेर, बांका, जमुई, लखीसराय, शेखपुरा, दरभंगा एवं बेगूसराय में जैविक खेती एवं उसके पीजीएस आधारित प्रमाणीकरण के लिए 427 कलस्टर का निर्माण किया गया है।
स्वायल हेल्थ कार्ड:- मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि मृदा जांच आधारित संतुलित उर्वरक का प्रयोग किया जाए। मिट्टी जांच, रासायनिक विश्लेषण की वैज्ञानिक विधा है जिससे मिट्टियों के कार्बनिक कार्बन एवं उर्वरता स्तर का पता चलता है तथा इस विश्लेषण के आधार पर खेतों के लिए आवश्यक कार्बनिक कार्बन को बढ़ाने एवं फसलों के लिए आवश्यक संतुलित उर्वरक की मात्रा को अनुशंसित किया जा सकता है। राज्य में 38 जिला स्तरीय मिट्टी जांच प्रयोगशालाएं एवं 9 चलंत मिट्टी जांच प्रयोगशाला कार्यरत हैं। इन प्रयोगशालाओं के सुदृढ़ीकरण के लिए कर्मियों का पदस्थापन एवं यंत्र, रसायन, ग्लासवेयर से युक्त किया गया है। इनके अतिरिक्त इन प्रयोगशालाओं के तकनीकी नियंत्रण के लिए राज्य में तीन रेफरल प्रयोगशाला के रूप में केन्द्रीय मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला, मीठापुर, बिहार, पटना, राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर कार्यरत हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के द्वितीय चक्र 2017-19 में 13.08 लाख सिंचित एवं असिंचित ग्रीडों से नमूना संग्रहण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वर्ष 2017-18 में 622330 मिट्टी नमूना संग्रहित कर किसानों को 3618116 स्वायल हेल्थ कार्ड उपलब्ध कराया गया। द्वितीय चक्र में वर्ष 2018-19 में 654389 मिट्टी नमूनों का संग्रहण किया जाना है। इस प्रकार द्वितीय चक्र के अंत में 7236332 किसानों को स्वायल हेल्थ कार्ड उपलब्ध हो जायेगा।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन:- राज्य के 23 जिलों यथा- अररिया, औरंगाबाद, बांका, बेगूसराय, भागलपुर, दरभंगा, पूर्वी चम्पारण, गया, जमूई, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, मधुबनी, मुगेंर, मुजफ्फरपुर, नालन्दा, पटना, पूर्णियां, रोहतास, सहरसा, समस्तीपुर, वैशाली एवं पश्चिम चम्पारण में राष्ट्रीय बागवानी मिशन की योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं।
मुख्यमंत्री बागवानी मिशन:– शेष 15 जिले जो राष्ट्रीय बागवानी मिशन से आच्छादित नहीं होते है, उन्में भारत सरकार के मार्गदर्शिका के अनुसार ही राज्य योजना से मुख्यमंत्री बागवानी मिशन का क्रियान्वयन किया जाता है।
सब मिशन आॅन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन (आत्मा योजना):- इसके अंतर्गत मुख्य कार्यक्रम क्रमशः किसान पाठशाला का आयोजन, किसानों का प्रशिक्षण ( राज्य के बाहर, राज्य के अंदर, जिला के अंदर), फसल का प्रत्यक्षण (कृषि), फसल प्रत्यक्षण (कृषि के संबद्ध क्षेत्र) किसानों का परिभ्रमण ( राज्य के बाहर, राज्य के अंदर, जिला के अंदर), किसान हित समूह का गठन, खाद्य सुरक्षा समूह का गठन (महिलाओं के लिए), किसान मेले का आयोजन, किसान गोष्ठी का आयोजन, किसान पुरस्कार कार्यक्रम (राज्य, जिला एवं प्रखंड स्तरीय) तथा किसान वैज्ञानिक वार्तालाप आदि सम्मिलित है।
सब मिशन आॅन सीड एंड प्लांटिंग मेटेरियल अंतर्गत बीज ग्राम योजना:- सब मिशन आॅन सीड एण्ड प्लांटिंग मेटेरियल योजनान्तर्गत बीज ग्राम योजना एवं प्रमाणित बीज उत्पादन द्वारा बीज ग्राम एक केन्द्र प्रायोजित योजना है। योजनान्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा 60 प्रतिशत राशि एवं राज्य सरकार द्वारा 40 प्रतिशत राशि की सहभागिता है।
1. योजना के लिए चयनित बीज ग्राम के चयनित किसानों को एक एकड़ के लिए धान, अरहर/उड़द, गेहूं, चना, मसूर, मटर एवं राई/सरसो के आधार/प्रमाणित बीज बीज उत्पादन हेतु उपलब्ध कराया जाता है।
2. योजनान्तर्गत धान एवं गेहूं के आधार/प्रमाणित बीज 50 प्रतिशत अनुदान पर तथा चना, मसूर, मटर एवं राई/सरसो के आधार/प्रमाणित बीज 60 प्रतिशत।
3. बीज ग्राम के किसानों को बीज उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण दिया जायेगा। प्रशिक्षण का संचालन परियोजना निदेशक, आत्मा द्वारा किया जायेगा। एक समूह में 150 किसान को प्रशिक्षण दिया जायेगा। एक समूह के प्रशिक्षण पर 15000 रुपये व्यय अनुमान्य है।
मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम इस योजना के अंतर्गत किसान से किसान तक बीज के तीव्र विस्तार के लिए धान के लिए 6 किलो बीज पर 90ः अनुदान (आधा एकड़ के लिए), गेहूं के लिए 20 किलो बीज पर 90ः अनुदान (आधा एकड़ के लिए) अरहर के लिए 2 किलो बीज पर 90ः अनुदान (एक चैथाई एकड़ के लिए), चना के लिए 8 किलो बीज पर 90ः अनुदान (एक चैथाई एकड़ के लिए) तथा मसूर 4 किलो बीज पर 90ः अनुदान (एक चैथाई एकड़ के लिए) उपलब्ध कराया जाता है।
जैविक प्रोत्साहन योजना/जैविक काॅरिडोर योजना: राज्य योजना के अंतर्गत जैविक प्रोत्साहन योजना/जैविक काॅरिडोर योजना निम्नलिखित अवयव हैं:-
- पक्का वर्मी कम्पोस्ट इकाईः- वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन में वृद्धि के लिए किसानों को 75 घन फीट क्षमता के स्थायी उत्पादन इकाई पर मूल्य का 50 प्रतिशत अधिकतम 5000 रुपये प्रति इकाई की दर से अनुदान देने का प्रस्ताव है। एक किसान अधिक से अधिक 5 इकाई के निर्माण के लिए अनुदान का लाभ ले सकता है तथा अगले वित्तीय वर्ष में वर्मी कम्पोस्ट इकाई से वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन करते रहने पर अतिरिक्त 5 इकाई के लिए अनुदान का लाभ ले सकता है।
- जैविक ग्राम के तहत एक ग्राम में पूर्ण वर्मी कम्पोस्ट इकाईः- वर्ष 2018-19 में प्रत्येक जिले में एक गाॅंव का चयन कर सभी ईच्छुक लोगों को वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए इकाई निर्माण कराना प्रस्तावित है, जिससे अन्य किसान भी योजना के प्रति जागरूक हो सके। योजनान्तर्गत एक किसान अधिक से अधिक 5 इकाई के निर्माण के लिए अनुदान का लाभ ले सकता है।
- वर्मी कम्पोस्ट वितरणः- वर्मी कम्पोस्ट वितरण में मूल्य का 50 प्रतिशत अधिकतम 300 रुपये/क्विं0 की दर से अधिकतम 2 हेक्टेयर के लिए अनुदान दिया जाता है।
- गोबर गैसः- गोबर गैस को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 2 एवं 3 घनमीटर के संयंत्र पर अनुदान देने का प्रावधान प्रस्तावित है। 2 घनमीटर क्षमता पर लागत मूल्य का 50 प्रतिशत अधिकतम 21,000 रुपये एवं 3 घनमीटर क्षमता पर लागत मूल्य का 50 प्रतिशत अधिकतम 25,000 रुपये प्रति इकाई की दर से अनुदान देने का प्रस्ताव है।
- व्यवसायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाईः- व्यावसायिक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्यमी/सरकारी प्रतिष्ठानों/सरकारी नियंत्रण में चल रहे निबंधित गौशालाओं को प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव है। व्यवसायिक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई की स्थापना के लिए निजी उद्यमी/ कृषि कार्य से जुडे़ गैर सरकारी संस्थाओं को प्रतिवर्ष 1000, 2000 एवं 3000 टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता के लिए लागत मूल्य का 40 प्रतिशत अधिकतम 6.40, 12.80 एवं 20.00 लाख रूपये क्रमशः अनुदान देने का प्रावधान किया गया है।
- व्यवसायिक जैव उर्वरकः- व्यवसायिक जैव उर्वरक उत्पादन इकाईयों की स्थापना के लिए अनुदान दर स्वीकृति का प्रस्ताव है। व्यावसायिक जैव उर्वरक इकाई में उद्यमी/कृषि कार्य से जुडे़ गैर सरकारी संस्थाओं को प्रतिवर्ष 600 मे0 टन उत्पादन क्षमता के लिए लागत मूल्य का 40 प्रतिशत अधिकतम 64 लाख रूपये अनुदान देने का प्रावधान किया गया है।
- जैव उर्वरक वितरणः- किसान को जैव उर्वरक क्रय पर मूल्य का 50 प्रतिशत अधिकतम 300 रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान दर प्रस्तावित की गई है।
- हरी चादर योजनाः- गरमा/पूर्व खरीफ 2018 के लिए इस कार्यक्रम में ढैंचा बीज 90 प्रतिशत तथा मूंग का बीज 80 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध कराने का कार्यक्रम प्रस्तावित किया गया है।
- बीजोपचार के लिए जैविक उपादानः किसानों को बीजोपचार करने पर बीज की मात्रा के अनुरूप अधिकतम 100 रूपये प्रति हेक्टेयर अनुदान प्रस्तावित है, जो प्रति किसान अधिकतम 2 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए देय होगा।
कृषि यांत्रिकरण योजना: कृषि यांत्रिकरण योजना बिहार के सभी जिलों में लागू है, जिसके अंतर्गत खेत की जुताई, बुआई, निकाई, गुराई, सिंचाई, पौधा संरक्षण, फसल की कटाई, दौनी इत्यादि कार्यो के लिए कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जाता है। कृषि यांत्रिकरण योजनान्तर्गत वर्ष 2018-19 के लिए कुल 76 प्रकार के कृषि यंत्रों के क्रय पर अनुदान देय है। कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2014-15 में यांत्रिकरण साॅफ्टवेयर विकसित किया गया है जिसके माध्यम से राज्य के कृषकों को सुविधानुसार कहीं से भी आॅनलाइन आवेदन करने की सुविधा उपलब्ध है। कृषि यंत्रों पर अनुदान प्राप्त करने के लिए आवेदन कृषि विभाग के Website: www.krishi.bin.nic.in पर लिये जाते हैं। वत्र्तमान वित्तीय वर्ष सभी जिलों में कृषि यांत्रिकरण मेला आयोजित किया जाना है। स्वीकृति पत्र के आधार पर मेला अथवा मेले के बाहर भी आॅनलाइन पंजीकृत विक्रेता से सूचीबद्ध यंत्र क्रय करने पर कृषको के लिए अनुदान का प्रावधान किया गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में विभिन्न यंत्रों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पम्पसेट एवं एचडीपीई लेमिनेटेड वुभेन ले फ्लैट ट्यूब का राज्य स्तर से लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जबकि शेष यंत्रों को मांग आधारित किया गया है। जिला कृषि पदाधिकारी को प्राप्त दावा पत्र के आलोक में कृषि यंत्रों का भौतिक सत्यापन कराकर अनुदान की राशि डीबीटी के अन्तर्गत सम्बंधित लाभार्थी के बैंक खाते में आरटीजीएस या एनईएफटी के माध्यम से 15 दिनों के अन्दर प्राथमिकता के आधार पर भुगतान किया जायेगा। भारत सरकार द्वारा संचालित योजना सब मिशन आॅन एग्रीकल्चरल मेकेनाईजेशन अन्तर्गत कस्टम हायरिंग केन्द्र की स्थापना की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत 10.00 लाख, 25.00 लाख एवं 40.00 लाख तक की लागत से कस्टम हायरिंग के लिए कृषि यंत्र बैंक तथा 80.00 लाख रुपये की लागत वाले दो हाईटेक हब की स्थापना किया जाना है। उक्त सभी कृषि यंत्र बैंक/हाईटेक हब की स्थापना पर 40ः अनुदान का प्रावधान है। इसके अलावा चयनित ग्रामों में 10.00 लाख रुपये ेतक की लागत से कृषि यंत्र बैंकों की स्थापना की जानी है जिसमें 80ः अनुदान का प्रावधान है। कस्टम हायरिंग केन्द्र स्थापित करने के इच्छुक जीविका के ग्राम संगठन/आत्मा से सम्बद्ध फारमर्स इंटरेस्ट ग्रुप (F.I.G)/ नाबार्ड/ राष्ट्रीयकृत बैंक से सम्बद्ध किसान क्लब/स्वयं सहायता समूह (SHG)/पैक्स/व्यापार मंडल/कृषि यंत्र निर्माता/उद्यमी द्वारा विहित प्रपत्र में जिला कृषि पदाधिकारी को आवेदन दिया जायेगा। यंत्र बंैक में यंत्रों के अधिप्राप्ति के लिए 40ः राशि सरकार द्वारा वहन किया जायगा। शेष 60ः राशि आवेदक समूह/निर्माता/उद्यमी द्वारा वहन किया जायेगा। उक्त योजना का लाभ प्रगतिशील कृषक भी प्राप्त कर सकते हैं। सब मिशन आॅन एग्रीकल्चरल मैकेनाईजेशन योजनान्तर्गत ही वत्र्तमान वित्तीय वर्ष 2018-19 में किसान कल्याण अभियान के तहत बिहार में चयनित 13 आकांक्षी जिलों यथा- अररिया, औरंगाबाद, बांका, बेगूसराय, गया, जमुई, कटिहार, खगड़िया मुजफ्फरपुर, नवादा, पूर्णिया, शेखपुरा एवं सीतामढ़ी में चयनित 25-25 ग्रामों में प्रत्येक ग्राम में कम-से-कम 10-10 लाभार्थियों/कृषकों को अनुदानित दर पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराने के लिए 32.50 करोड़ रुपये को लागत से योजना के कार्यान्वयन किया जाना है।
भूमि संरक्षण कार्यक्रम: वित्तीय वर्ष 2018-19 में बिहार के कुल 17 जिलों यथा पटना, नालंदा, रोहतास, कैमूर, गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, जमुई, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, बांका, भागलपुर, बक्सर एवं भोजपुर में भूमि एवं जल संरक्षण की योजना चलायी जा रही हैं। योजनान्तर्गत मुख्य रूप से कृषि वानिकी अन्तर्गत फलदार एवं वन वृक्षारोपण, जल संग्रह संरचनायें साद अवरोधक बांध, चेक डैम इत्यादि के निमार्ण कार्य कराये जा रहे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य निम्न रूपेण है: –
क) फसलोत्पादन उद्यान विकास तथा मत्स्य पालन आदि कार्यों के लिए वर्षा जल का अधिक से अधिक संरक्षण।
ख) संरक्षित जल का समुचित उपयोग, भूमिगत जल स्तर को ऊपर उठाना एवं जलछाजन क्षेत्र के ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना।
ग) उपजाऊ मिट्टी के क्षरण को रोकना।
घ) प्राकृतिक संसाधनों का विकास कर पर्यावरण को संतुलित करना।
केन्द्र प्रायोजित योजना
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना पूर्वोत्तर भारत के लिए हरित क्रांति योजना अन्तर्गत कुल 1124 सामुदायिक सिंचाई कूप, निजी बोरवेल एवं सामुदायिक बोरवेल के निर्माण का कार्य कराये गये हैं।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जलछाजन विकास: समेकित जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम अन्तर्गत चालू विŸाीय वर्ष 2018-19 में 183 जल संरक्षण से संबंधित संरचना का निर्माण कराया गया है। साथ ही इस योजनान्तर्गत उक्त कार्य के अतिरिक्त क्षमतावर्द्धन कार्य/ जागरूकता अभियान /प्रवेश बिन्दु कार्य/ उत्पादन प्रणाली एवं भूमिहीन कृषकों के लिए रोजगार का कार्य किया गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – प्रति बूंद अधिक फसल
चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 में राज्य योजना अन्तर्गत 5000.00 लाख रुपये की योजना स्वीकृत है। इसी प्रकार चालू वित्तीय वर्ष में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई येाजना प्रति बूंद अधिक फसल योजनान्तर्गत 5635.57 लाख रुपये एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जलछाजन (जलछाजन विकास) अन्तर्गत 294.26 लाख रुपये की कार्य योजना है।
किसान चैपाल: किसानों के द्वार पर किसानों की समस्या से अवगत होने तथा उनका समाधान करने के लिए वर्ष 2018-19 में राज्य के सभी पंचायतों में किसान चैपाल कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा। सरकार द्वारा राज्य में किसान चैपाल कार्यक्रम के कार्यान्वयन करने के लिए राज्य योजना मद से 1849.10 लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों के माध्यम से किसानों को कृषि से संबंधित नवीनतम तकनीक की जानकारियां पहुंचाई जायंेगी। साथ ही किसान हित समूह, खाद्य सुरक्षा समूह तथा किसान उत्पादन संगठन के गठन की जानकारी किसानों को उपलब्ध कराते हुए उत्पादन से लेकर विपणन तक में आने वाली समस्याओं का समाधान किया जायेगा।
पंचायत कृषि कार्यालय: राज्य के सभी 8405 पंचायतों में पंचायत कृषि कार्यालय खोला जायेगा। इसके लिए 4221.175 लाख रुपये की स्वीकृति भी प्रदान कर दी गई है। पंचायतों में कृषि कार्यालय खुल जाने से राज्य के किसानों को कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रखण्ड अथवा जिला कृषि कार्यालय का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। पंचायत कृषि कार्यालय की स्थापना पंचायत सरकार भवन में की जायेगी। इसके लिए पंचायत सरकार भवन में कमरा लिया जायेगा। इनके अतिरिक्त वैसे पंचायतों में जहां पंचायत सरकार भवन का निर्माण नहीं हुआ है, उन पंचायतों में पंचायत कृषि कार्यालय के लिए किराये पर कमरे लिये जायेंगे तथा इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किराया का भुगतान किया जायेगा। पंचायत कृषि कार्यालय में किसान सलाहकार नियमित रूप से उपस्थित रहेंगे, इसके अतिरिक्त कृषि समन्वयक भी हर सप्ताह में 3-3 दिन प्रत्येक पंचायत कृषि कार्यालय में उपस्थित रह कर अपने कार्यों का सम्पादन करेंगे।
डाॅ. प्रेम कुमार
कृषि मंत्री, बिहार