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मंथन

सबके साथ विकास

सहकारिता का अर्थ होता है ‘साथ मिलकर चलना’। यानी कहा जा सकता है कि सहकारिता शुरू से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। प्राचीनकाल से ही भारत में सहकारिता की संस्कृति चली आ रही है। भारत की संस्कृति ‘सबको साथ लेकर चलने’ में विश्वास करती है

सहकारिता का अर्थ होता है ‘साथ मिलकर चलना’। यानी कहा जा सकता है कि सहकारिता शुरू से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। प्राचीनकाल से ही भारत में सहकारिता की संस्कृति चली आ रही है। भारत की संस्कृति ‘सबको साथ लेकर चलने’ में विश्वास करती है। ऋग्वेद में संस्कृत का एक श्लोक आया है जिसका भावार्थ है ‘हम एक साथ चलें, एक मत रहें और सब लक्ष्य को प्राप्त करें’। यानी भारतीय संस्कृति में सहकारिता की अवधारणा पहले से ही मौजूद रही है। और यही कारण है कि पूरी दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे सफल सहकारी आंदोलन भारत में ही हुआ। भारत में सहकार भारती के संस्थापक लक्ष्मण राव इनामदार हैं। लक्ष्मण राव इनामदार ने सहकार भारती के माध्यम से पूरे भारत को जोड़ने का काम किया। लक्षमण राव इनामदार के अलावे आरएसएस की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लक्षमण राव इनामदार ने सहकार भारती की सफलता के लिए कहा था ‘बिना संस्कार नहीं सहकार’ जो आज सत्य साबित हो रहा है। आज पूरे भारत में 2 लाख से ज्यादा सहकार समितियां काम करती हैं। इन समितियों में 18 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं।

ये अलग बात है कि जब उद्योगिक क्रांति हुई तो इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत सहित दुनिया के कई देशों में औद्योगिक क्रांति के चलते जहां कुछ लोगों को बहुत फायदा पहुंचा, वहीं समाज के कई वर्ग को इससे काफी नुकसान भी हुआ। कुछ लोग औद्योगिक क्रांति की वजह से अमीर होते चले गए और दूसरी तरफ समाज के कई वर्गो के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई। इस संकट से निबटने के लिए पश्चिनी देशों में सहकार समितियों का गठन किया जाना शुरू हो गया। इस प्रकार पश्चिमी देशों में सहकार समितियों की शुरुआत हुई। अमेरिका, जापान और समाजवादी देशों को सहकारिता के क्षेत्र में अच्छी सफलता मिली है।
सहकारी समिति काम कैसे करती है

सहकारी संस्था आपसी सहयोग और परस्पर विश्वास एवं सहायता से संचालित होती है। सदस्यों के पास जो भी साधन-संसाधन उपलब्ध होता है, उसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके सभी सदस्यों में एकमतता होती है। लाभ को बराबर मात्रा में सभी सदस्य आपस में बांट लेते हैं। सहकारी संस्था के काम को और भी बेहतर तरीके से समझना है, तो इसे एक उदाहरण से समझाने को कोशिश की जा सकती है। जब दुकान से हम कोई सामान खरीदते हैं, तो उसका मूल्य एमआरपी के हिसाब से देते हैं। लेकिन, यदि उसी सामान को कई लोग एक साथ खरीदेंगे तो जाहिर बात है कि हमें वह सस्ता मिलेगा। और फिर उस सस्ते सामान को समूह के सभी सदस्य आपस में बांट लेते हैं। अब सस्ता मिलने से उसका फायदा समूह के सभी सदस्यों को तुरंत मिल जाता है।

सहकारी समिति एक स्वैछिक संस्था होती है। आसपास के लोग अपने जान-पहचान, विश्वास और सूझबूझ से उसमें शामिल होते हैं। फिर यदि समूह में रहना अच्छा नहीं लगता है तो उसे छोड़ भी देते हैं। यानी की समूह में शामिल होने के लिए कोई पैरवी नहीं की जाती है और समूह को छोड़ने के लिए भी कोई दबाब नहीं बनाया जाता है। आप जब चाहें शामिल रहें और जब चाहें छोड़े ये आपकी मर्जी है। इसलिए, सहकार समिति पूरी तरह से स्वैछिक इकाई माना जाता है।
सहकारी समिति का सरकारी पंजीकरण करवाना भी जरूरी होता है। लेकिन, ये पूरी तरह उस ग्रुप पर निर्भर करता है वो पंजीकरण करवाए या नहीं। बिना पंजीकरण करवाये भी सहकारी समिति बनाई जा सकती है और उसके सदस्य समान रूप से लाभ भी लेते रह सकते हैं। हालांकि, पंजीकरण करवाने के अपने फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा तो ये होता है कि आपको बैंक से लोन मिल जाता है। सरकार के द्वारा चलाये जाने वाली बहुत सी योजनाओं का भी लाभ उन्हें मिल जाता है और सरकार की तरफ से और भी कइ छूटे मिल जाती हैं, जिससे उस सहकारी समिति और उसके सदस्यों को बहुत फायदा हो जाता है। सहकारिता के माध्यम से जन-जन तक रोजगार दिया जा सकता है। अंतिम पायदान पर खडे व्यक्ति को भी सहकारिताओं के माध्यम से जोड़ कर लाभान्वित किया जा सकता है।

सहकारी बैंक

सहकारी बैंकों को तीन भागों में बांटा गया है। 1.प्राथमिक समितियां 2. केंद्रीय सहकारी बैंक 3. राज्य सहकारी बैंक। सूक्ष्म उद्योग, लघु उद्योग या कृषि संबंधी कार्यो के लिए ग्राम समिति ग्रमीणों को ऋण उपलब्ध कराती है।

सहकार भारती के उद्देश्य

सहकार भारती में अनुशासन का पूरा पालन किया जाता है। सहकार भारती अपने-आप में एक आंदोलन है। सहकार भारती लोंगो के द्वारा चलाया गया एक आंदोलन है, जिसका संचालन और नेतृत्व जनता खुद करती है। सहकार भारती का उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना है और मुख्यधारा से जोड़कर उसे सशक्त बनाना है।
चुकी आरएसएस से भी सहकारी संस्था जुड़ी है, इसलिए संघ सहकारी समिति के बहुत सारे अनछुए पहलुओं के बारे में लोगों को बताती है। गांव-गांव जाकर सहकारिता का प्रशिक्षण भी दिलाया जाता है। समय-समय पर इसका प्रचार-प्रसार भी होता है। बहुत सारी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से सहकारिता की सम्पूर्ण जानकारी पहुंचाने का काम भी संघ कर रहा है।

सहकारिता आंदोलन जान-जागरण और सामाजिक परिवर्तन का उत्तम साधन बना रहे ये इसकी मूल भावना है। सहकारी संस्था का उदेश्य है, इसमें किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप न हो, किसी तरह के शासकीय-प्रशासकीय सहारे के बगैर इसका विकास हो। सहकार भारती एक अखिल भारतीय संस्था का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए इसकी कोशिश रहती है कि इसमें पारदर्शिता हो और सभी लक्ष्य और उदेश्य पूरी होती रहे। इसमंे समर्पित, ईमानदार, संस्कारयुक्त, सेवाभावी कार्यकर्ता काम करते हैं।

सहकार भारती का सबसे बड़ा उदेश्य भारतीय संस्कृति और भारतीय विचारधारा के साथ आगे बढ़ना है। भारतीय परिवेश के अनुसार ही कार्यकर्ताओं का आचरण हो। सहकार भारती की यह दृढ़ मान्यता है कि जनता जनार्दन के लिए शुरू किए गए इस आंदोलन में सहकार भारती के माध्यम से भारत जैसे देश को फिर से सबसे पहले पायदान पर लाकर खड़ा करने की ताकत रखती है। भारत सब्जी उत्पादन में बहुत पीछे था, लेकिन सहकारी समितियों के माध्यम से और उसके समर्पित कार्यकर्ताओं के दम पर आज भारत सब्जी उत्पादन में पूरी दुनिया में बहुत आगे बढ़ चुका है। आज 272 मिलियन टन सब्जी का उत्पादन किया जाता है। इसी तरह से भारत में श्वेत क्रांति का श्रेय भी सहकारी समितियों को ही जाता है। कभी भारत दुग्ध उत्पादन में बहुत पीछे था, लेकिन आज भारत इसमें आत्मनिर्भर बन गया है। आज भी भारत में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां योजना बनाकर सहकार भारती काम करे तो और भी बड़ी क्रांति और बदलाव लाया जा सकता है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि यदि सहकार भारती कुछ क्षेत्रों को चुनौती के तौर पर ले, तो वहां भी परिवर्तन कर समृद्धि का एक नया इतिहास लिखा जा सकता है।

बिहार में सहकारिता

बिहार में सहकारिता का लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। सहकारिता का मतलब तो हम सब जानते ही हैं कि ऐसा काम जिसमंे एक के अलावे कई लोग शमिल हों और जिसे सामूहिक रूप से किया जाये। इसमें जो भी फायदा होता है सबको एक सामान मिलता है। सहकारिता की बदौलत बिहार सहित भारत के कई क्षेत्रो में क्रन्तिकारी बदलाव भी देखने को मिला है। हालांकि, हाल के वर्षो में बिहार में सहकारिता आन्दोलन कमजोर पड़ा है खासतौर से उत्तर बिहार में। बिहार सरकार ने भी कहा है कि सहकारिता को बढ़ाने में उसको शसक्त करने में कोई कसार नहीं रखेगी। सहकारिता का जितना विकास हमारे प्रदेश में होगा उतना ही कृषि के क्षेत्र में हम तरक्की करेंगे। सहकारिता तो भारत के हर क्षेत्र में होना चाहिए। बिहार में तो कृषि रोडमैप में भी सहकारिता के विकास और उसको आगे बढ़ान ेके लिए कई कदम उठाने की बात कही गई है। उदाहरण के लिए सुधा का दूध और उससे बनने वाले उत्पादों की पहचान आज बिहार के हर घर में देखने को मिल रहा है। आज अकेले सुधा डेयरी से बिहार में हजारों लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं। सहकारिता की सबसे बड़ी यही शक्ति है कि हजारों लोग एक साथ एक उद्देश्य और लाभ के लिए काम करते हैं। आज सुधा के उत्पाद बिहार से बहार भी पसंद किए जा रहे हैं। राजधानी पटना के 60 प्रतिशत घरो में सुधा के दूध ही इस्तेमाल किये जाते हैं। पटना और आसपास के जिलों में 6 लाख लीटर दूध की मांग रहती है। सुधा जितना भी दूध इकठ्ठा करती उसमे सहकारी ग्रुप की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी तरह बिहार में हाउसिंग को-आॅपरेटिव सोसाइटी भी बेहद सफल है। पटना में पीसी कॉलोनी, पाटलिपुत्र कॉलोनी सहित पटना की कई कालोनियों भी सहकारिता की मदद से बनी हैं। हां, सब्जी सहकारिता, ऋण सहकारिता की हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। इस तरह से हम देखते हैं कि बिहार में सहकारिता के विकास की रफ़्तार कुछ वर्षो से बहुत धीमी और निराशाजनक है और यदि समय रहते सरकार ने इसके उत्थान के लिए पर्याप्त और उचित कदम नहीं उठायेगी तो इसके भयंकर दुष्परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं।