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सामाजिक गुण—अवगुण की अभिव्यक्ति हैं फिल्में—पुस्तकें

पटना : भारत में फिल्में समाज का आईना हैं। भारतीय सभ्यता सबसे प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है और फिल्मों की कहानियां इन्हीं समाजों के बीच से निकाली जाती हैं। हमारे देश में फ़िल्म का इतिहास भले पारसी थिएटरों और नाटकों की देन हो, पर फिल्मों का संदर्भ और दायरा सिर्फ़ बॉलीवुड तक सीमित नहीं। उक्त बातें फ़िल्म निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने रविवार को पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में आज एक पुस्तक विमोचन गोष्ठी में कही।

इस मौके पर इंडिका फाउंडेशन के तत्वावधान में युवा लेखकों की तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। अभिषेक बनर्जी ने अपनी पुस्तक ऑपेरशन ‘जोहर-ए लव स्टोरी’ के विषय में बताया कि यह पुस्तक भारत के भविष्य की उम्मीद, अभिलाषा और डर के बीच की कहानी है। उन्होंने ‘अर्बन नक्सल’ को समाज में तनाव पैदा करने का जिम्मेदार ठहराया और किताब में इसी विषय पर चर्चा होने की बात कही।

वहीं ‘गंजहों की गोष्ठी’ के लेखक साकेत सूर्येश ने कहा कि यह किताब कोई कहानी नहीं, बहुत सारे व्यंग्यात्मक निबन्धों का एक संग्रह है। ‘गंजहा’ शब्द श्रीलाल शुक्ल के बहुचर्चित उपन्यास ‘रागदरबारी’ से लिया गया है। ‘ट्विस्टेड थ्रेड्स’ के लेखक भावेश कंसारा ने अपनी पुस्तक को एक व्यंग्य साहित्य कहा। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में शक्ति, राजनीति और गंदगी पर व्यंग्यात्मक टिपणियां हैं। इस मौके पर समाज चिंतक आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि छात्र जीवन में वो मार्क्सवादी हुआ करते थे। आप देश में, किसी भी सिंद्धांत से जुड़े होते हैं, पर जरूरी नहीं कि वह शत प्रतिशत सच हो। आचार्य किशोर कुणाल राममंदिर विवाद को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में मध्यस्थता कर चुके हैं।

वहीं नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति सुनैना सिंह ने युवा लेखकों को बधाई देते हुए कहा कि ज्ञान ही सच और विश्वास को बनाये रखता है। आज के युवाओं की कोशिश होनी चाहिए कि संस्कृति को बढ़ावा देने की ओर युवाओं का प्रयास हो, ज्ञान को बढ़ावा मिले और समाज में साहित्य की भूमिका इसमें बढ़ जाती है।

(सत्यम दुबे)