बांका में एनडीए ने क्यों दी वर्षों पुरानी राजनीतिक विरासत की बलि?

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पटना : बिहार में लोकसभा की कुछ सीटें बड़ी और सीधी टक्कर के लिए जानी जाती हैं। बांका लोकसभा सीट भी उन्हीं में से एक है, जहां वर्षों से दो जातीय ध्रुवों के बीच राजनितिक विभाजन स्पष्ट परिलक्षित होता रहा है। बांका में दिग्विजय सिंह और गिरिधारी यादव, ये दो बड़े नाम हैं। लेकिन बांका में वर्तमान राजनीतिक गणित कुछ और ही तस्वीर बयां कर रही है।
दरअसल, शनिवार को राजग ने अपने 40 में से 39 पत्ते खोले जिसमे भाजपा-जदयू ने 17-17 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की। बांका लोकसभा की सीट इस बार जदयू के पाले में थी, जहां से कयास लगाया जा रहा था कि पिछली बार भाजपा में शामिल हुई स्व. दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी इस बार जदयू की ओर से मैदान में होंगी। लेकिन हुआ ठीक विपरीत। जदयू की पार्लियामेंट्री बोर्ड ने दिग्विजय सिंह के धुर-विरोधी उम्मीदवार गिरिधारी यादव को टिकट देकर पहली बार दिग्विजय सिंह के परिवार को राजनितिक कश्मकश से दूर कर दिया है। दरअसल पुतुल कुमारी 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से मैदान में थी। पर बांका लोकसभा सीट पर राजद के उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव ने उन्हें करीबी मुकाबले में हरा दिया था।
1994 से जारी बांका के संग्राम में दिग्विजय सिंह और गिरिधारी यादव आमने-सामने होते रहे थे जिसमें कभी दिग्विजय सिंह तो कभी गिरिधारी यादव बाजी मार जाते थे। बहरहाल, दिग्विजय सिंह बिहार में नितीश कुमार की छवि के नेता माने जाते रहे हैं। वर्तमान स्तिथि को देखते हुए पुतुल कुमारी का राजनितिक कैरियर दांव पर है और फ़िलहाल इस चुनाव में उनके मैदान में होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे।

(सत्यम दुबे)

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