पटना : दो पूर्व विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इनमें पूर्व विधायक बिजेन्द्र चौधरी एवं सतीश कुमार शामिल हैं। चर्चा है कि मुजफ्फरपुर से चार बार विधायक चुने गए बिजेन्द्र को आगामी लोकसभा चुनाव में उम्मीदबर बनाया जा सकता है। मुजफ्फरपुर शुरू से ही काफी चर्चित सीट रहा है। अभी वहां से बीजेपी के अजय निषाद, जो कैप्टन जयनारायण निषाद के पुत्र हैं, सांसद हैं। चर्चा यह भी है कि सतीश कुमार को भी कुछ आश्वासन मिला है और वो काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं। इस बीच यह भी खबर आ रही है कि महागठबंधन आगामी 17 मार्च को सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान करेगा। होली के पूर्व सीट बंटवारे का ऐलान कई लोगों के लिए ख़ुशियां लाएगा। लेकिन अब भी कुछ ऐसी सीटें हैं, खासकर बेगूसराय और मुंगेर, जिनपर पेंच फंसा हुआ है। उधर जीतनराम मांझी भी नाराज हैं। वे दिल्ली में महागठबंधन की बैठक से नाराज हो कर पटना रवाना हो गए थे। वाम दलों का भी मसला है। ऐसे में यह दिलचस्प होगा कि महागठबंधन सीट शेयरिंग की ‘होली’ तय समय पर मना पाती है या नहीं।
मांझी और उपेंद्र की बार्गेनिंग शक्ति में ह्रास
जहां तक मांझी का प्रश्न है, उनको एक सीट देने की बात कही जा रही है, जिससे वो संतुष्ट नहीं हैं और कम से कम दो सीट गया और नालंदा की मांग पर अड़े हैं। उन्हें मनाने की कोशिश हो रही है। उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा की बात करें तो उनको अभी तक काराकाट और मोतिहारी सीट देने को लेकर महागठबंधन में एकमत है। हालांकि वो पांच सीटों पर दावा ठोंक रहे हैं। हालांकि उनकी मोल—जोल करने की ताकत में काफी ह्रास हुआ है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव राम बिहारी सिंह ने भी उपेन्द्र कुशवाहा का साथ छोड़ दिया है। राम बिहारी आरएलएसपी के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। इसके पूर्व नागमणि ने उपेन्द्र से अपने रिश्ते तोड़ लिये।
वाम दलों और अनंत सिंह पर रार
अभी तक सूत्रों से मिली जानकारी से अनुसार राजद 20-22, कांग्रेस 11, आरएलएसपी को 3, हम (सेक्युलर) 2, मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी 1 और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की पार्टी एलजेडी को 1 सीट देने पर सहमती बन चुकी है। लेफ्ट पार्टी को इसमें शामिल नहीं किया गया है। जहां कांग्रेस चाह रही है कि वाम प्रभाव वाले बेगूसराय और कुछ और सीटें देकर वामदलों को भी महागठबंधन में शामिल किया जाए, वहीं राजद वामदलों को शामिल करने का विरोध कर रहा है। राजद का मानना है कि राज्य में युवा चेहरे के तौर पर सिर्फ तेजस्वी ही एकमात्र विपक्ष का चेहरा हो सकते हैं। ऐसे में उसे डर है कि कहीं कन्हैया जीत जाते हैं तो वे भविष्य में तेजस्वी की ‘युवा’ दावेदारी को चैलेंज कर सकते हैं। महागठबंधन में सीट बंटवारे के औपराचिक ऐलान में देरी की एक वजह यह भी है। वहीं मुंगेर सीट को लेकर भी जिच बना हुआ है। कांग्रेस यहां से अनंत सिंह को चुनाव लड़ाना चाह रही है, जबकि राजद पहले ही उनको ‘बैड एलिमेंट’ कह चुका है।
पप्पू यादव को भी महागठबंधन में जगह नहीं मिली है। लालू यादव पप्पू से काफी नाराज थे। यही कारण है कि पप्पू यादव को महागठबंधन में शामिल नहीं किया गया। पप्पू मधेपुरा एवं पूर्णिया सीट पर पार्टी उम्मीदबार खड़ा करने की बात कह चुके हैं। चर्चा तो यह भी है की मुकेश साहनी दरभंगा और खगड़िया सीट पर दावा ठोंक रहे हैं। बहरहाल आगामी लोकसभा चुनाव की घंटी बज चुकी है। अब देखना यह है कि क्या महागठबंधन का होली मिलन तय समय पर हो पाता है या नहीं।