पीके नीतीश को करा रहे दो नावों की सवारी, जानें कैसे?

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पटना : जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कल एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी को कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा बताया और कहा था कि वे आनें वाले दिनों में और सशक्त नेत्री के रूप में उभरकर देश के सामने आ सकती हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव में प्रियंका का बहुत प्रभाव नहीं पड़नेवाला है।

प्रशांत किशोर ने यह भी स्वीकार किया कि प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने से कांग्रेस को आनेवाले दिनों में फायदा जरुर होगा। उन्होंने प्रियंका को लम्बी रेस का घोडा बताते हुए कहा कि वे आने वाले वक्त में पार्टी को सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने दावा किया कि जब वे कांग्रेस से जुड़े थे तो उन्होंने प्रियंका को उत्तर प्रदेश में पार्टी का चेहरा बनाने का प्रस्ताव दिया था।

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अब पीके द्वारा प्रियंका को लेकर यह कहना क्या महज इत्तेफाक है, या इसके पीछे भी उनकी कोई खास मंशा है? वह भी तब जब एक तरफ वे उद्धव ठाकरे से मुंबई जाकर मिल आते हैं तथा दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव की तिथि की घोषणा होने में भी मात्र कुछ सप्ताह ही बचे हैंं।

अगर प्रशांत किशोर द्वारा कांग्रेस नेत्री का जिक्र करने की टाइमिंग को देखा जाए तो इसके कई मायने निकलते हैं। क्या प्रशांत किशोर एनडीए और यूपीए दोनों की सेकंड लाइन ऑफ़ लीडरशिप तैयार करने की मंशा रखते हैं? क्या वो नितीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर पुनः लाने की कोशिश कर रहें है? क्या एनडीए में अन्दर ही अन्दर कुछ खिचड़ी पक रही है?

अवकाश प्राप्त नौकरशाह और पूर्व राज्यसभा सदस्य एके सिंह के बाद प्रशांत किशोर ही ऐसे व्यक्ति हैं जो नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने को फिलवक्त साकार करने में लगे दिख रहें हैं। प्रशांत किशोर ने एक सबाल के उत्तर में कहा कि श्री नरेन्द्र मोदी ही एनडीए के प्रधानमंत्री पद के एकमात्र उम्मीदवार हैं और वे ही अगला प्रधानमंत्री होंगे।

लेकिन उनकी इस बात को मान भी लिया जाय तो प्रशांत किशोर के शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से मुलाकात को क्या महज राजनीतिक शिष्टाचार भर कहा जा सकता है? क्या इसके यह मायने नहीं निकाले जा सकते कि अन्दर ही अन्दर प्रशांत सेकंड लाइन ऑफ़ लीडरशिप तैयार रखना चाह रहे हैं। अगर एनडीए को जादुई नंबर पाने में दिक्कत हुई तो नीतीश कुमार के नाम पर कई छोटे—छोटे दल एकजुट हो सकते हैं।

नीतीश आसन्न लोकसभा चुनाव में तो एनडीए के साथ जरुर लड़ेंगे, लेकिन उनको यह मालूम है कि अगर दबदबा कम होगा तो उनकी पार्टी को केंद्रीय कैबिनेट में तवज्जो नहीं मिल पायेगी। अतः किसी भी स्थिति में प्रशांत पार्टी को चुनाव से पहले और चुनाव के बाद लाइमलाइट में बनाए रखना चाहते हैं। अगर नरेन्द्र मोदी ही एनडीए के पीएम पद के उम्मीदवार हैं तो प्रशांत किशोर इतने सक्रिय क्यों दिख रहे हैं?

अब आइए सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करते हैं। पीके एक मंझे हुए रणनीतिकार हैं जो पूरी तरह प्रोफेशनल हैं। अब यदि बात एनडीए में नहीं बन पाती, तो इसके लिए भी उन्होंने यूपीए के विकल्प पर काम शुरू कर दिया है। वे जानते हैं कि अकेले राहुल के दम पर 2019 में चुनावी बैतरणी पार करना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगी। ऐसे में यदि अपनी दादी इंदिरा जैसी दिखने वाली प्रियंका सक्रिय हुई तो कुछ लाभ जरूर होगा। लेकिन यह भी पीके जानते हैं कि प्रियंका 2019 में कांग्रेस को थोड़ा लाभ ही दिलवा सकती हैं। ऐसे में इधर भी माइनस कांग्रेस लीडरशीप नीतीश के चेहरे पर अन्य दलों की एकजुटता की गुंजाइश बनती है। संभवत: पीके के हालिया प्रेस कांफ्रेंस में दिये मोदी, राहुल और पियंका पर बयानों और उद्धव से मुलाकात के पीछे का मकसद और मतलब भी यही है।

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