कानपुर : आजादी के आन्दोलन के दौरान यह किसी संगठन में व्यक्तिवाद के हावी होने का ही नतीजा था कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को 1939 में काग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा। उसी मानसिकता के चलते 1947 में सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सके। उक्त निष्कर्ष यूपी के कानपुर में आयोजित एक संगोष्ठी में उभर कर सामने आया। इसमें बिहार में भाजपा के पूर्व एमएलसी हरेंद्र प्रताप मुख्य वक्ता थे।
श्री प्रताप ने इस अवसर पर कहा कि “छात्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए, आज का छात्र कल का नागरिक” जैसे षडयंत्र का शिकार यह देश हुआ और तानाशाही मनोवृत्ति फलने—फूलने लगी।
उन्होंने आगे कहा कि पूर्वजों ने सावधान करते हुए कहा था कि “सत्ता कालक्रमेण भ्रष्ट होती है और निरंकुश होना चाहती है”। इसमें अपवाद कोई नहीं, अतः तानाशाही का खतरा कभी खत्म नहीं होता।
छात्र युवा जल्दी संगठित होता है, यथास्थितिवाद का विरोधी होता है। अतः लोकतंत्र तभी सफल होता है जब उस पर समाजसत्ता का अंकुश हो। समाजसत्ता की आवाज छात्र-युवा पर आज तानाशाही का खतरा बढ़ा है। सरकार और संगठन आज व्यक्ति और परिवार की कठपुतली बन गया है। देश के क्षेत्रीय दलों के मुख्यमंत्री ही अपने दल के अध्यक्ष हैं। किसी जय प्रकाश की तलाश में हम कब तक बैठे रहेंगे। मालूम हो कि बिहार आंदोलन पहले शुरू हुआ, जयप्रकाश जी बाद में इसमे जुड़़े। अज देश पर तानाशाही का खतरा गहराता जा रहा है। हमें इस तथ्य को पहचानना होगा और एक राष्ट्रीय विकल्प पर गंभीर होना होगा।
(आलोक शुक्ल)
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