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तब फूट—फूटकर रो पड़े थे जॉर्ज फर्नांडिस, जानें क्यों?

पटना : प्रखर समाजवादी नेता एवं एनडीए के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक श्री जॉर्ज फर्नाडिस का आज सुबह लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पांच बार लोकसभा सांसद रह चुके जॉर्ज फ़र्नान्डिस से जुड़ी यादें मुज़फ़्फ़रपुर के उनके करीबी रह चुके लोगों ने आज उनके निधन के संदर्भ में साझा करना मुनासिब समझा। बहुत कम लोगों को पता है कि जॉर्ज साहब दो बार फूटफूट कर रोते देखे गये थे। पहली बार जब उनके मेंटर तथा राजनीतिक गुरु श्री पांडुरंग सदाशिव साने जिन्हें साने गुरु के नाम से भी जाना जाता है, का निधन 1950 में हुआ था। उस वक्त जॉर्ज साहब फूटफूट कर रोते देखे गये थे। रोते भी क्यों नहीं। उनके गुरु जो एक स्वतंत्रता सेनानी के अलावे एक सामाजिक चिंतक भी थे, का उनके सिर पर से साया जो उठ गया था।
दूसरा वाकया तब का है जब 1989 में जॉर्ज साहब ने संसद में जनता पार्टी के अविश्वास प्रस्ताब का समर्थन करते हुए मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था। उस समय वे भारत सरकार के संचार एवं उद्योग मंत्री थे। उन्होंने प्रसिद्ध समाजवादी नेता और विचारक मधु लिमये के कहने पर इस्तीफा दे दिया था। अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करना उनके दिल को छू गया तथा उन्होंने फूटफूट कर रोते हुए अपने दिल का बोझ हल्का किया। ये दोंनो वाकया जॉर्ज साहब के कभी करीबी माने जाने वाले राजनेता हरेंद्र कुमार ने साझा किया। हरेंद्र को जॉर्ज ने दो बार चुनाव लड़ने के लिया समता पार्टी से टिकट दिया। लेकिन भाग्य और जनता दोनो ने ही साथ नहीं दिया। फलतः हरेंद्र दोनों चुनाव हार गये।
जॉर्ज साहब जिनको मुज़फ़्फ़रपुर की जनता ने चार बार संसद में अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजा, उन्होंने बिजली एवं उद्योग पर काफी बल दिया। उनकी सोच थी कि बिना बिजली के विकास होना संभव नहीं है। अतः विकास के लिए बिजली और उद्योग जरूरी है। यही कारण है कि चाहे कांटी का थर्मल पॉवर स्टेशन हो या बर्टलर या आइडीपीएल, इन सभी प्लांट को लगवाने में जॉर्ज साहब का योगदान है।
एक और खास बात कहना मुनासिब ही नहीं, एकदम यथोचित लगता है। जॉर्ज साहब हमेशा चुनाव के समय छोटी—छोटी सभा को संबोधित करते थे। जब वे 1977 में जेल में बंद थे तो उनकी पत्नी लैला कबीर फ़र्नान्डिस चुनाव की बागडोर संभालती थीं। गैराज के ऊपर बने एक छोटे से कमरे में रहकर लैला कबीर फर्नाडिस ने चुनाव प्रचार का संचालन किया था। सिर्फ एक बार नीतीश कुमार के कहने पर वे नालंदा से चुनाव लड़े। लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर से उनका रिश्ता हमेशा बना रहा। 1995 में समता पार्टी का गठन कर जॉर्ज ने लालू यादव को भी औकात बताने का काम किया था। कहते हैं कि जॉर्ज फ़र्नान्डिस किसी से नहीं डरते थे और बड़े से बड़े कद्दावर नेता के सामने नहीं झुके। केवल मधु लिमये से ही थोड़ा सहमे लगते थे। पहली बार महाराष्ट्र के कद्दावर कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री एसके पाटिल को हराकर जॉर्ज फ़र्नान्डिस ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की थी। लेकिन अपनी कर्मभूमि बिहार में वे हिन्द मजदूर किसान पंचायत की नीव नहीं रख सके जिनके बैंनर तले वे किसान मजदूर नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। बिहार सरकार ने उनके निधन पर राजकीय शोक की घोषणा की है।
रमाशंकर