पूर्व से चल रहे मुकदमे को हटाने के लिए हुलासगंज थाना के घनश्याम बिगहा गांव में एक 19 सितंबर व्यक्ति ने अपने पड़ोस के तीन लोगों को छुरा मारकर किया घायल
हुलासगंज/जहानाबाद : स्थानीय थाना क्षेत्र के र्गत घनश्याम बिगहा गांव में पुराने मारपीट के मामले में दर्ज केस को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के क्रम में एक पक्ष के द्वारा दूसरे पक्ष पर हमला बोल दिया गया। इस दौरान मुकदमे का सूचक रहे लालदेव यादव उसके चाचा एवं भगीना बबलू कुमार को दूसरे पक्ष के उपेंद्र यादव ने छुरा मार कर घायल कर दिया। बताया जाता है कि दूसरे पक्ष द्वारा लालदेव यादव एवं उसके परिवार के लोगों को घर में बंद भी कर दिया गया था। बाद में किसी तरह इस बात की सूचना पुलिस को दी गई तब पुलिस ने मारपीट की इस घटना में सबसे अधिक गंभीर रूप से घायल बबलू कुमार को स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लाकर भर्ती कराया। जहां से उसे बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल में रेफर कर दिया गया।
हालांकि, सदर अस्पताल में बेहतर इलाज की व्यवस्था नहीं होने से घबराए युवक के स्वजनों ने उसे इस्लामपुर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया। जहां पर उसकी स्थिति गंभीर बताई जाती है। मारपीट की इस घटना में घायल लालदेव यादव ने बताया कि उसके भगीना बबलू कुमार को गर्दन पर उपेंद्र यादव ने छुरा से वार किया जिसके कारण गला से लेकर छाती तक में चौदह टांका उसके भगिना को लगा है। इस मामले की जानकारी देते हुए लालदेव यादव ने स्थानीय थाना में आवेदन देकर प्राथमिक दर्ज करने का आग्रह किया है। हालांकि सूचना प्राप्त होने तक अभी इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है।
इस संबंध में सूचक लालदेव यादव ने बताया कि 4 वर्ष पूर्व ऊपेंद्र यादव और उसके परिवार के लोगों ने उस पर घात लगाकर सर पर हमला किया था जिसमें काफी गहरी चोट उसके सर में लगी थी। लंबे इलाज के बाद वह ठीक हुआ। उस समय इस मामले में उसने थाने में केस दर्ज किया था। उसी मुकदमा को हटाने के लिए बराबर विपक्षी उपेंद्र यादव द्वारा धमकी और शराब पीकर गाली गलौज किया जा रहा था। इसी क्रम में सोमवार की रात 8 बजे के नशे में धुत उपेंद्र यादव उसके घर पर चढ़कर पूरे परिवार के लोगों को अभद्र गाली दे रहा था।
उसे समझाने के लिए जैसे ही उसके घर के लोग बाहर निकले इसी क्रम में घात लगाए उपेंद्र यादव ने उसके परिवार के तीन लोगों पर छुरे से हमला कर दिया। जिसमें एक व्यक्ति बबलू कुमार गंभीर रूप से घायल हो गया। इस घटना में घायल दो अन्य लोगों का इलाज करने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। इस संबंध में थाना अध्यक्ष चंद्रशेखर कुमार ने बताया कि इन दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। एक दूसरे पर मारपीट का आरोप भी लगाते रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस मामले में पुलिस जांच कर उचित कार्रवाई करेगी।
हुलासगंज बाजार के 1 किलोमीटर के क्षेत्र में संचालित हो रहा चार बस स्टैंड
हुलासगंज/जहानाबाद – पटना- गया शहर को जोड़ने वाली निर्माणाधीन राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या – 83 से अधिकतर वाहन डायवर्ट होकर गया से इस्लामपुर होकर बिहार शरीफ, राजगीर और पटना के लिए गुजरती है। इन दिनों अति व्यस्त माने जाने वाले इस मार्ग पर हुलासगंज बाजार में जाम लगना एक सामान्य बात हो गई है। बाजार में मुख्य सड़क के दोनों छोर पर अतिक्रमण होने के साथ-साथ सबसे बड़ी समस्या हुलासगंज बाजार के 1 किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में चार- पांच ऑटो स्टैंड कायम किए जाने से हो रही है। हुलासगंज बाजार के सबसे उत्तर दिशा में प्रांगकुश नगर मोड़ जहां से गया- पटना के वाहनों के ठहराव के साथ-साथ घोषि और जहानाबाद के लिए बस और ऑटो खुलती है, यहां पर सघन आबादी होने के साथ-साथ सड़क किनारे दुकान लगने से मुख्य सड़क से ही वाहनों का परिचालन स्टैंड के रूप में किया जा रहा है।
जिसके कारण अब तक आधा दर्जन से अधिक बड़ी सड़क दुर्घटना यहां पर हो चुकी है। यहां पर सड़क दुघर्टना में अब तक दर्जन भर लोगों की जान जा चुकी है। इससे 200 मीटर और दक्षिण दिशा में आगे बढ़ें तो मुख्य बाजार, थाना, तुलसीपुर मोड से होकर, सुरजपुर, दावथु सहित दर्जन भर अन्य गांवों को जोड़ने वाले इस व्यस्त चौराहे पर इस्लामपुर और खिजरसराय के लिए ऑटो चालक पैसेंजर को बैठने के लिए सड़क पर होड़ मचाए रहते हैं। लिहाजा बेतरतीब ढंग से सड़क पर ऑटो का पार्किंग यहां पर किया जाता है। बाजार से निकलकर आने वाले वाहनों को कई बार यहां पर दुर्घटना का शिकार होना पड़ा है।
इससे 100 मीटर दक्षिण और आगे बढ़े तो पुराना बस स्टैंड आता है जहां पर पहले से बस यात्री शेड बनी हुई है हालाकि बस यात्री शेड अब यहां भी सिर्फ नाम का बचा हुआ है। यहां पर भी सड़क के दोनों ओर खुदागंज, बंसीबिगहा,नई बाजार ,कुड़वा आदि जगहों के लिए जाने वाले ऑटो यहां पर सड़क किनारे जहां के तहत यात्रियों की टोह में सड़क किनारे लगाकर यात्रियों का इंतजार करते नजर आते हैं। इसके आगे हाई स्कूल के गेट के पास से भी ऑटो का संचालन किया जाता है। हालाकि देखा जाए तो यहां पर सड़क के चार्ट में ही पर्याप्त संख्या में ऑटो लगाने की व्यवस्था है। यहां से बौरी, खुदौरी जैसे छोटी दूरी के गांव में जाने वाले ऑटो का संचालन किया जाता है। यहां पर प्रयाप्त जगह के साथ-साथ वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था भी है।
देखा जाए तो ऑटो संचालन के दृष्टिकोण से यह सबसे उपयुक्त माना गया है। बाजार के सबसे दक्षिणी छोर पर चौहडमल चौक स्थित है जहां से मखदुमपुर और खुदागंज सहित पटना – गया के लिए वाहनों का ठहराव के साथ-साथ ऑटो का संचालन भी किया जाता है। यह सबसे व्यस्त चौराहा माना जाता है। यहां पर भी बेतरतीब सड़क के दोनों तरफ चौराहे पर वाहनों की पार्किंग की जाती है तथा अवैध रूप से यहां पर बस स्टैंड कायम कर अवैध वसूली वाहन चालकों से की जाती है।
स्थानीय प्रशासन संचालित हो रहे हैं इन सभी ऑटो और बस स्टैंड के बारे में पूरी जानकारी रखती है लेकिन इसके बावजूद भी इसमें कोई हाथ डालना नहीं चाहता है। सड़क सुरक्षा के नाम पर प्रशासन जहां लापरवाह दिखती है तो वहीं आए दिन हो रहे सड़क दुर्घटना के बावजूद इस पर प्रशासन की ओर से ठोस कदम नहीं उठाने के कारण स्थानीय लोग में अंदर ही अंदर रोस देखने को मिलता है। कई लोग यह बताते हैं कि 1 किलोमीटर की दूरी में चार-पांच स्टैंड बनाने का क्या औचित्य है। वैसे में जबकि कहीं भी वाहन पार्किंग के लिए कोई जगह नहीं है और सड़क से ही गाड़ियों का परिचालन किया जाता है। जिससे आए दिन सड़क जाम और लोगों को मुसीबत के साथ साथ जान माल का छतीभी उठाना पड़ता है।
मिट चुका कुओं का अस्तित्व, नई पीढ़ी कुआं के अस्तित्व से हैं अनजान
हुलासगंज/जहानाबाद- कभी प्रेमचंद्र जैसे उपन्यासकारों के कहानियों के मुख्य शीर्षक रहे ‘ठाकुर का कुआं ‘ जो उस समय के ग्रामीण परिवेश के संस्कृति का मुख्य धरोहर था । वही कुआं पिछले दो दशक में देखते देखते ग्रामीण परिवेश से भी विलुप्त हो गए हैं। सिंचाई से लेकर पेयजल तक आम आदमी की निर्भरता जिस कुएं पर रहती थी। आज उसका स्थान समरसेबल और गहरे बोरवेल में ले लिया है।
कहीं गांव में जहां घर और खुले बधार में पक्का कुआं होता था वही बदलते सामाजिक परिवेश ने घर-घर में हैंडपंप और समरसेबल स्थापित कर दिया है। पूजा पाठ हो या कोई धार्मिक अनुष्ठान आज कुएं का पानी दुर्लभ हो गई है। जिस कुए के पनघट पर महिलाओं के झुंड होती थी आज परिवेश ने लोगों को एकांकी बना दिया है। जलचरों और जैव विविधता के पोषक कुएं के लुप्त होने से जैव संरक्षण को भी काफी नुकसान हुआ है। जल संरक्षण के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाने वाले कुएं के लुप्त होने से पेयजल की समस्या गांव में भी आज देखने को मिल रही है। शहरी परिवेश का अनुसरण करती ग्रामीण जनता धीरे धीरे कर अपनी मूल संस्कृति को भूल रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब आने वाले पीढ़ी को कुएं के बारे में कुछ ज्ञात नहीं होगा।
कई बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि 1967 के अकाल के समय में जब खाद्यान्न और पेयजल का संकट हुआ था तो बड़ी संख्या में गांव में कुएं खोदे गए थे। लेकिन 55 वर्षों के इस अंतराल में तेजी से कुए का अस्तित्व सिमटता गया। आज स्थिति है कि धीरे धीरे कर कुएं का अस्तित्व समाप्त हो गया है गांव में भी अब लोग कुएं की कोई जरूरत नहीं समझते। जिले में कितने कुएं आजादी के बाद अपना अस्तित्व खो चुके हैं इसका आंकड़ा शायद किसी विभाग के पास नहीं होगा लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आज प्रत्येक राजस्व गांव में कम से कम 10 से 15 कुएं अपना अस्तित्व जरूर हो चुका है।
केंद्र सरकार के जल जीवन हरियाली मिशन योजना की शुरुआत करने के बाद परंपरागत कुओं के संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास पिछले दो-तीन वर्षों में जरूर किए गए हैं लेकिन सिर्फ योजना का लाभ संवेदक को मिले इतना ही तक इस योजना का उद्देश्य दिखता है। अधिकतर कुओं के ऊपरी ढांचा को सुसज्जित करने का ही काम इस योजना के अंतर्गत किया गया है। 13 वीं वित योजना से कुओं के संरक्षण पंचायतों द्वारा इसपर काफी धन खर्च किया गया लेकिन कुओं की उपयोगिता और सार्थकता को साबित करने में विफल रही है