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घुसपैठ व मतांतरण से बदसूरत होती बिहार की जनसांख्यिकी

Mithilesh Kumar Singh

मिथिलेश कुमार सिंह

सह कुलसचिव
जीएनएस विवि, रोहतास

महात्मा गांधी भोले-भाले भारतीयों को बहला फुसलाकर मतांतरण कराए जाने के सख्त खिलाफ थे। महात्मा गांधी का दर्शन इसकी कभी इजाजत नहीं देता था। उन्होंने कहा था कि मैं विश्वास नहीं कर सकता कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का धर्मांतरण करे। दूसरे के धर्मों को कम करके आंकना ऐसा प्रयास कभी नहीं होना चाहिए। जिस तरह भारत और अन्य देशों में धर्मांतरण का कार्य चल रहा है मेरे लिए उससे सहमति रखना असंभव है। यह विश्व में शांति की स्थापना में सबसे बड़ा अवरोध है। विवेकानंद ने कहा था मतांतरण से राष्ट्रांतरण होता है।

प्रायः बिहार के अनेक क्षेत्रों में दलितों और आदिवासियों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरित किए जाने की घटनाएं सुनने में आती हैं। इस तरह की घटनाओं से सामाजिक सौहार्द्र को बड़ी क्षति पहुंचती है। इस प्रकार की गतिविधियों के खिलाफ जन असंतोष के हिंसक रूप में बदलने की संभावना बनी रहती है। एक तरफ बिहार के सीमांचल के इलाकों में बांग्लादेशी एवं रोहिंग्याओं के घुसपैठ से जनसंख्या का असंतुलन तेजी से बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बिहार के तमाम दलित और आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के द्वारा मतांतरण की घटनाएं बढ़ती जा रही है।

2017 में इस समस्या से रूबरू होने के लिए मैंने सीमांचल की इलाकों में दौरा किया था। मैंने वहां पाया कि वहां के जर्जर एवं निर्धन गांव में आलीशान मस्जिद बने है। एक बात गौर करने की है कि प्रायः प्रशासनिक केंद्र के आसपास भी मस्जिद और चर्च निर्मित हुए हैं। अगर हिंदू और अन्य धर्मों के अनुपातिक जनसंख्या पर गौर करेंगे तो हम पाएंगे कटिहार के बारसोई, बलरामपुर, अहमदाबाद, कटिहार ग्रामीण, मनिहारी कदवा एवं पूर्णिया के आमौर , बाईसी रौटा, डगरूआ, कस्बा, जलालगढ़, चिमनी बाजार आदि क्षेत्रों में हिंदुओं की जनसंख्या का अनुपात तेजी से घटा है। यह तथ्य एक गंभीर समस्या की तरफ संकेत करता है, जिसको बिहार सरकार जानबूझकर समझना नहीं चाह रही है। सीमांचल के जिलों के मुसलिम बहुल इलाकों से हिंदुओं का लगातार पलायन हो रहा है जैसे कटिहार के बसलगांव, दासग्राम और लालपुर पंचायतों से संपन्न हिंदू निरंतर पलायन कर रहे हैं, केवल निर्धन हिंदू ही यहाँ मजबूरी में रहते हैं। यही स्थिति कमोबेश सीमांचल के सारे जिलों में देखी जाती है। किशनगंज में हिंदुओं का अल्पसंख्यक हो जाना बिहार के गृह विभाग के लिए चिंता का विषय नहीं रहा है जो एक गंभीर बात है।

पिछले दिनों अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनलों में बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के मुस्लिम बहुल इलाकों के सरकारी स्कूलों में शुक्रवार को सप्ताहिक छुट्टी होने की बात काफी सुर्खियों में रही थी। पूछने पर पता चला कि यह परिपाटी काफी वर्षों से चल रही है। वैसे स्कूल जहां मुस्लिम लड़कों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक रहती है वहां प्रार्थना भी बदल दिए जाते हैं और वहां पढ़ने वाले अन्य धर्मों के बच्चे उसी प्रार्थना को करने के लिए मजबूर होते हैं। इसके अलावा भी बहुत सारे ऐसे प्रभाव देखने को मिलते हैं यहाँ लिखना उचित नहीं है।

1961 से लेकर 2022 तक के जनसंख्या के आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो भविष्य के प्रति सशंकित हो जाना स्वभाविक है। आंकड़ों पर अगर नजर डालें, तो सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार की कुल आबादी तकरीबन 1.08 करोड़ है। इसमें से कुल 47 फीसदी मुसलमान आबादी है, जबकि बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी 17 फीसदी है। सीमांचल में 1.08 करोड़ जनसंख्या में से तकरीबन 50 लाख की आबादी मुसलमानों की है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिम आबादी किशनगंज में सबसे अधिक 68 फीसदी, कटिहार में 44.5 फीसदी, अररिया 43 फीसदी और पूर्णिया में 39 फीसदी है । 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुस्लिमों की साझेदारी चार प्रतिशत बढ़ी हुई है जबकि इसी अवधि में सीमांचल में यह आँकड़ा लगभग 16 प्रतिशत है। इस बात का ध्यान रहे कि अररिया और किशनगंज विश्व में सबसे तेज गति से जनसंख्या वृद्धि वाला क्षेत्र बना हुआ है जो सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से समानुपातिक नहीं है और इसके पीछे तीव्र प्रजनन के अलावा घुसपैठ भी एक बहुत बड़ा कारण है।

अगर हम बिहार में ईसाई की संख्या में वृद्धि की बात करें, तो इनमें कई गुना वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 143.23 फीसदी तक हुई है। बिहार के ऐसे कई जिले हैं जहां 1991 में ईसाइयों की जनसंख्या दहाई में थी वह आज हजारों में पहुंच चुकी है। आंकड़े बताते हैं ईसाइयों की जनसंख्या का ग्रोथ रेट राष्ट्रीय स्तर पर जहां 15.52 फीसदी है वही बिहार मे 143.23 फीसदी है। इन आंकड़ों को देखने से स्पष्ट होता है कि पिछले दिनों बिहार में मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या में असामान्य वृद्धि हुई है जिससे सामाजिक और धार्मिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। इस बिंदु पर प्रशासनिक रूप से चिंता करने की आवश्यकता है।

बिहार के बक्सर जिले के चैगाई गांव में 2016 में 1,000 से अधिक मुसहरों के ईसाई बनने की बात राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनी थी। वहां जाकर पूछने पर पता चला कि मिशनरी के लोग वहां आकर जादू टोने से उनके रोगों को ठीक किए। वे आगे भी स्वस्थ रहें इस बाबत उन्होंने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया। जब उन्हें असली बातों को समझाया गया तब बात उनके समझ में आई और वे फिर वापस हिंदू बने।चंगाई सभा का पाखंड अक्सर देखने और सुनने को मिल जाता है।आए दिन इस तरह की घटनाएं होती ही रहती है।

जहां तक धर्मांतरण का सवाल है इस पर उच्चतम न्यायालय भी आज गंभीर हो चुका है। हाल ही में इस मसले पर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ एक राज्य विशेष से जुड़ा मसला नहीं है, हमारी चिंता देशभर में हो रहे ऐसे मामलों को लेकर है। इसे किसी एक राज्य से जोड़कर राजनीति करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस शाह ने अपनी सुनवाई में कहा कि बेशक लोगों को धर्म चुनने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन, बहला-फुसलाकर धर्मांतरण कराना ठीक नहीं है। केंद्रीय सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भारत का संविधान हर व्यक्ति को अपने धर्म का स्वतंत्रता पूर्वक पालन करने का अधिकार देता है। हालांकि इसमें किसी को भी अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है इसलिए महिलाओं, आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े और समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए अवैध धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून आवश्यक है। केंद्र ने कहा ऐसे मामलों पर रोक लगाने के लिए 9 राज्यों में कानून है। इसमें ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा शामिल हैं। यहां धर्मांतरण कानून बना हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी इस मुद्दे पर संसद में अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।

याचिका में धमकी, छल, उपहार व आर्थिक लालच और धोखाधड़ी के अन्य माध्यमों से कराए जा रहे धर्म परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की गुहार लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है। अगर ऐसे धर्मांतरण पर रोक नहीं लगी तो भारत में हिंदू जल्दी अल्पसंख्यक हो जाएंगे। जब अनुच्छेद 25 के तहत आने वाले ’प्रचार’ शब्द की बात आई तो उस पर व्यापक बहस हुई। इस संदर्भ में सरकार ने कहा कि प्रचार शब्द के अर्थ और तात्पर्य पर संविधान सभा में विस्तार से चर्चा हुई थी। संविधान सभा की ओर से इस स्पष्टीकरण के बाद ही इस शब्द को शामिल किया गया था कि अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने माना कि ’प्रचार’ शब्द किसी व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार की परिकल्पना नहीं करता है। कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान यह भी माना कि धर्म परिवर्तन बहुत ही गंभीर मुद्दा है और देश की सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने धर्मांतरण की बढ़ती हुई घटनाओं की शिकायतों के कारण चर्च की धर्मांतरण गतिविधियों तथा इनके कार्यकलापों की जांच के लिए 1956 में न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी की खास बात यह थी कि इसमें एसके जार्ज नाम के एक ईसाई विद्वान भी थे। इस समिति के अन्य सदस्य थे मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व स्पीकर घनश्याम सिंह गुप्ता, जबलपुर से सांसद सेठ गोविंद दास, कृतिमंत राव व मध्य प्रदेश के सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा सचिव बी पी पाठक। समिति ने वस्तुस्थिति जानने के लिए 14 जिलों का दौरा किया- रायगढ़, सरगुजा, अकोला, रायपुर, मंडला, बिलासपुर, जबलपुर, अमरावती, बैतूल, नीमा, छिंदवाड़ा, यवतमाल और बालाघाट। समिति ने 77 केंद्रों पर प्रवास किया व 11360 लोगों से संपर्क किया। समिति को 375 लिखित वक्तव्य प्राप्त हुए। कुल मिलाकर 700 गांव में समिति के सदस्यों ने वस्तुस्थिति को देखा ,जांचा और परखा।समिति की प्रमुख संस्तुति में धर्मांतरण के उद्देश्य से आए विदेशी मिशनरियों को बाहर निकालना और उन पर पाबंदी लगाने की बात प्रमुख थी। उसमें कहा गया कि बल प्रयोग, लालच, धोखाधड़ी, अनुचित श्रद्धा, अनुभवहीनता, मानसिक दुर्बलता का उपयोग धर्मांतरण के लिए नहीं होना चाहिए। बाद में देश के कई अन्य भागों में गठित समितियों ने भी नियोगी आयोग की संस्तुतियों को उचित ठहराया। लेकिन, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आयोग की संस्तुतियों को लागू करने से मना कर दिया।बाद के दिनों में मूल रिपोर्ट की कॉपी को ही गायब कर दिया गया ।

बिहार में पटना, बांका, रोहतास, भोजपुर, नालंदा सहित अनेक जिले धर्मांतरण से बुरी तरह प्रभावित है, जहां विभिन्न हथकंडों के जरिए आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को धर्मांतरण का शिकार बनाया जाता है। ईसाई मिशनरीयों के ही एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 5000 से अधिक हाउस चर्च की स्थापना हो चुकी है जबकि बिहार में 8471 पंचायत है।
अगर समय रहते इस समस्या पर काबू नहीं पाया गया, तो बिहार जनसंख्या असंतुलन से बुरी तरह ग्रस्त हो जाएगा। बिहार के गौरवपूर्ण प्राचीन सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को बचाने के लिए इस समस्या से निपटना अत्यावश्यक है। बिहार सरकार को निरपेक्ष भाव से समस्या की गंभीरता को देखते हुए संज्ञान लेने की आवश्यकता है। इस मुद्दे पर दल की सीमाओं से ऊपर उठकर विमर्श करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह मुद्दा किसी दल या संगठन का न होकर बिहार के मूल अस्तित्व का है।